इन दिनों सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विश्वस्तरीय राजनीतिक समीक्षक यह महसूस करने लगे है कि 2024 के बाद देश पर वर्तमान में राज कर रही भारतीय जनता पार्टी का दैदित्यमान सितारा जिसे नरेन्द्र दामोदर मोदी के नाम से जाना जाता है, राजनीति से विलुप्त हो जाएगा, अर्थात् राजनीति से ये शख्स सन्यास ले लेगा और स्वयं मोदी जी ने अपने उत्तराधिकारी की खोज शुरू कर दी है? .....और जिस तरह से इन दिनों केन्द्रीय गृहमंत्री अमित भाई शाह और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सक्रियता बढ़ रही है, उससे आमतौर पर राजनीतिक क्षेत्रों में यही कयास लगाया जा रहा है कि इन दोनों नेताओं में से ही कोई मोदी जी का उत्तराधिकारी होगा? संभव है एक सत्ता की बागडोर संभाले तो दूसरा शख्स संगठन को? चूंकि अभी वर्तमान सरकार का सवा तीन साल का समय शेष है, इस अवधि में इन दिनों शीर्ष नेताओं को उनके दायित्वों की पूरी ट्रेनिंग दे दी जाएगी।
इसमें कोई दो राय नहीं की, नरेन्द्र भाई मोदी ने अपने पिछले सात साल के प्रधानमंत्रित्व काल में पूरे विश्व में भारत की एक नई पहचान बनाई है, इसलिए विश्व के अग्रगण्य नेताओं की सूची में मोदी जी का भी नाम भी शामिल हो गया है, अब मोदी जी की रीति-नीति को उन्ही के अनुरूप जो आगे बढ़ा सके वहीं प्रधानमंत्री पद का चयनित उम्मीदवार होगा। अर्थात् यह तय है कि 2024 का चुनाव भी भाजपा ही जीतेगी और 2029 तक वहीं सत्ता में भी रहेगी, पर मोदी जी दिल्ली में नहीं बल्कि उत्तराखण्ड के केदारनाथ तीर्थ के निकट स्थित उस पूर्व चयनित गुफा में रहेंगे, जहाँ वे पहले प्रधनमंत्री रहते हुए एक रात गुजार चुके है, यह भी संभव है कि मोदी जी सिर्फ सक्रिय राजनीति से सन्यास ले लें और राजनीतिक सलाहकार (बहुत संकट के समय) की भूमिका अदा करें?
भारतीय जनता पार्टी में यह खबर काफी पहलें पहुंच चुकी है, इसीलिए पार्टी के अंदरूनी क्षेत्रों और कार्यकर्ताओं में खलबली मची हुई है, फिर पंजाब के स्थानीय निकायों के जो ताजा परिणाम सामने आए है, जिनमें अकाली दल, भाजपा और आम आदमी पार्टी का पूरी तरह सफाया हुआ है, उससे भाजपा और चैकन्नी हो गई है, फिर मोदी के प्रस्तावित सन्यास की खबर को इसलिए भी अत्यंत गोपनीय रखा जा रहा है, जिससे कि निकट भविष्य में आधा दर्जन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों विशेषकर पश्चिम बंगाल व असम में भाजपा को कोई नुकसान न हो? इन्हीं सब मुद्दों पर भाजपा में शीर्ष स्तर पर काफी गंभीर चिंतन चल रहा है, और भारतीय राजनीति में विचारधाराओं को लेकर नई मोर्चाबंदी या ‘प्लानिंग’ तैयार की जा रही है, इस कार्य में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिका अहम् मानी जा रही है।
यह तो हुई भाजपा की बात। अब यदि हम देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की बात करें और भाजपा से उसकी तुलना करें तो दादी (कांग्रेस) व पोती (भाजपा) के बीच मूल अंतर यही है कि दादी ‘सठिया’ गई है और ‘पोती’ सक्रिय है, अर्थात् रसातल में जा रही कांग्रेस को उसके ही नेता उसे धक्का देने में सक्रिय है और भाजपा का छोटे से छोटा कार्यकर्ता भी उसके ‘नट-बोल्ट’ की सक्रिय भूमिका में है, जो भाजपा की इस मशीन को चुस्त-दुरूस्त रखना चाहते है।
काँग्रेस की हालत तो यह है कि उसके अपने कुनबे को थोड़ी-बहुत उम्मीद सिर्फ प्रियंका गांधी से ही है, क्योंकि राहुल अभी तक ‘पप्पू’ के स्तर को त्याग कर ‘वरिष्ठ’ की श्रेणी में नहीं आ पाए है और जहां तक पार्टी के वरिष्ठों का सवाल है, उन्हें अब उन्हें अपने रोजगार में व्यस्त रहने का संदेश दिया जा चुका है, फिर वह चाहे कपिल सिब्बल हो या कि गुलाम नबी आजाद? क्योंकि अब तो सोनिया जी के पास मोतीलाल वोरा जैसा सशक्त सलाहकार या मार्गदर्शक भी नहीं रहें? इसलिए स्वयं में उलझी कांग्रेस यह समझ नहीं पा रही कि उसे क्या करना है? प्रियंका वाड्रा (गांधी) जिसे इन्दिरा जी के रूप में देखा जा रहा है, उन्हें उत्तरप्रदेश तक ही सीमित करके रख दिया गया है और पूरे देश की पार्टी की बागडोर अघोषित रूप से संभालने वाले राहुल आए दिन एक नया ‘शगूफा’ छोड़ देते है, जो पूरे देश के लिए मनोरंजन का केन्द्र बन जाता है।
इस प्रकार कुल मिलाकर यदि यह कहा जाए कि देश में राष्ट्रीय स्तर के दो ही मुख्य राजनीतिक दल भाजपा व कांग्रेस रह गए है और कांग्रेस अस्ताचल में है तो कतई गलत नहीं होगा, किंतु फिलहाल यह भी निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि भाजपा रूपि सूर्य की नई आभा के साथ उदित होने का वक्त आ गया है।
(लेखक - ओमप्रकाश मेहता)
आर्टिकल
मोदी के बाद कौन....? - क्या स्वयं मोदी ने अपने उत्तराधिकारी की खोज शुरू कर दी...?