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हाय मंहगाई -तुझे क्यों मौत न आई ? 

हाय मंहगाई -तुझे क्यों मौत न आई ? 

2014 से अभी तक जिस 'अच्छे दिन आने वाले हैं ' जैसे लोक लुभावन नारे का इंतज़ार देश की आम जनता को था वह शायद आ चुके हैं। अंतर केवल इतना है कि यह अच्छे दिन उनके हैं जिन्होंने सत्ता संरक्षण में आपदा को अवसर में बदलने के हुनर को अपनाया या उस सरकार व सत्ताधीशों के अच्छे दिन आ चुके जिन्होंने कोरोना संकट के बहाने अकूत धनराशि विभिन्न माध्यमों से इकट्ठी की और अनेकानेक जनहितकारी योजनाओं को भी समाप्त कर दिया। जबकि जो आम जनता गला फाड़ फाड़ कर चीख़ा करती थी कि -'बहुत हुई मंहगाई की मार -अब की बार मोदी सरकार' उस आम जनता के हिस्से में सिर्फ़ और सिर्फ़ भीषण मंहगाई ही आ चुकी है। देश के इतिहास में पहली बार प्रीमियम पेट्रोल की क़ीमत भाजपा शासित राज्य मध्य प्रदेश में 100 रूपये प्रति लीटर से पार कर चुकी है। जबकि महाराष्ट्र में भी  100 रूपये प्रति लीटर का आंकड़ा छूने के क़रीब है। तेल ही नहीं बल्कि तेल कंपनियों ने घरेलू रसोई गैस का दाम भी एक बार फिर 50 रूपये प्रति सिलिंडर बढ़ा दिया है। फ़रवरी में दूसरी बार  गैस का दाम इतना ज़्यादा बढ़ाया गया है। इसके पूर्व 4 फ़रवरी को भी रसोई गैस का दाम 25 /- सिलिंडर मंहगा किया गया था।अर्थात गैस की क़ीमतें मात्र 15 दिनों के भीतर 75 /-प्रति  सिलिंडरबढ़ चुकी हैं।जबकि दिसंबर से अब तक 125 रूपये प्रति सिलिंडर का इज़ाफ़ा हो चुका है। इसी प्रकार पेट्रोल की क़ीमत भी एक वर्ष के दौरान 17 रूपये प्रति लीटर से अधिक बढ़  चुकी है।लगभग यही अनुपात  डीज़ल की मूल्य बढ़ोतरी का भी है। इस तेल मूल्य वृद्धि से आहत देश के सबसे बड़े  परिवहन संगठन 'द आल इण्डिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस' ने तो सरकार को चेतावनी दे डाली है कि यदि तेलों में हुई मूल्य वृद्धि यथा शीघ्र वापस नहीं ली गयी तो AIMTC राष्ट्रव्यापी हड़ताल भी बुला सकती है। ग़ौर तलब है कि AIMTC देश भर में लगभग 95 लाख ट्रकों व लगभग 50 लाख बसों के अतिरिक्त हज़ारों टूरिस्ट ऑपरेटर्स का भी प्रतिनिधित्व करती है। यदि यह संस्था हड़ताल करती है तो भी पूरे देश के लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। और यदि तेल की बढ़ी क़ीमतों के अनुसार किराया भाड़ा बढ़ाती है तो माल भाड़े की ढुलाई मंहगी होने से लगभग सभी चीज़ों के दाम तो बढ़ेंगे ही साथ साथ लोगों की यात्रा भी काफ़ी मंहगी हो सकती है।
मंहगाई के मसले पर स्वयं कुछ कहने या किसी विपक्षी नेता की मंहगाई पर टिप्पणी का ज़िक्र करने से बेहतर यही होगा कि 2014 में केंद्र की सत्ता में आने की जद्दोजहद के दौरान जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी जी देश की भोली भाली जनता के हमदर्द बनकर उनके बीच चिकनी चुपड़ी बातें किया करते थे और मंहगाई को लेकर ऐसे दुखी नज़र आते थे गोया इनके सत्ता में आते ही मंहगाई उड़न छू हो जाएगी, उसी दौर का उन्हीं का विभिन्न स्थानों पर दिए गए एक भाषण का ज़िक्र करना बेहद प्रासंगिक होगा। तब मोदी जी इन शब्दों से तत्कालीन संप्रग सरकार पर हमलावर होते थे - ' मंहगाई कहाँ से कहाँ  पहुँच गई है,एक तरफ़ जी डी पी का गिरना दूसरी तरफ़ मुद्रास्फूर्ति का बढ़ना,प्रधानमंत्री कहते हैं फ़लानी तारीख़ के बाद मंहगाई कम हो जाएगी,फ़सल के बाद मंहगाई कम हो जाएगी ,बजट के बाद मंहगाई कम हो जाएगी ,दीवाली के बाद मंहगाई कम हो जाएगी,हर तीन महीने बाद यही कहते थे,अब तो मंहगाई के विषय में बोलना ही छोड़ दिया है। उन्हें चिंता नहीं है। और उन्होंने वादा किया था कि 100 दिन में मंहगाई कम करेंगे। प्रधानमंत्री जी आप मंहगाई कम कर पाओ या न कर पाओ कम से कम अटल बिहारी वाजपेई जहां छोड़ गए थे वहां तो ला के रख दो। वहां तो लेकर रख दो तब भी ग़रीब के घर में चूल्हा जलेगा।' प्रधानमंत्री के भाषण में उस समय जो आत्मविश्वास झलकता था उसे देख सुनकर जनता ख़ूब तालियां भी पीटती थी और यक़ीन भी करती थी कि वास्तव में देश को कोई नेहरू -इंदिरा से बड़ा नेता और मनमोहन सिंह से महान अर्थ शास्त्री मिल गया है जो देश की जनता के अच्छे दिन लाए बिना मानने वाला नहीं। 
परन्तु आज आप इन्हीं भाजपाइयों के मंहगाई पर तर्क सुनें तो वह हैरान करने वाले हैं ? मंहगाई कम करने के प्रति इनकी गंभीरता के बजाए इनकी प्राथमिकताएं देखनी हों तो इन दिनों बंगाल और आसाम में इनकी व्यस्तताएं,प्राथमिकताएं व सक्रियता देख सकते हैं। जबकि इनके प्रवक्ता जो संप्रग सरकार में जनता के इतने हितैषी नज़र आते थे कि ज़रा सी भी मंहगाई बढ़ने पर अर्ध नग्न होकर प्रदर्शन किया करते थे। आज इनसे पूछिए कि रसोई गैस क्यों इतनी मंहगी कर दी? जवाब मिलेगा हमने उज्ज्वला के तहत जनता को फ़्री गैस कनेक्शन दिया। तेल क्यों मंहगा किया तो जवाब यह तो कंपनियां निर्धारित करती हैं और तेल का दाम तो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार तय करता है,सरकार नहीं। गोया संप्रग सरकार को मंहगाई को लेकर कटघरे में खड़ा करने वाले आज मंहगाई को जायज़ ठहरने में लगे हैं। और यदि विपक्षी दल आवाज़ उठाएं तो 70 साल शासन करने वाले पहले अपना हिसाब दें जैसी बेवक़ूफ़ाना बातें सुनें । या राष्ट्रद्रोही,अराजक,आन्दोलनजीवी,देश विरोधी जैसे तमग़े धारण करने को तैयार रहें।
बहुमत के नशे में चूर केंद्र सरकार यह भी नहीं सोच रही कि जिस कोरोना काल ने करोड़ों लोगों को बेरोज़गार किया। जिस संकट ने करोड़ों लोगों को आधी या उससे भी कम मासिक आय पर काम करने के लिए मजबूर कर दिया। करोड़ों लोग ग़रीबी रेखा से नीचे आ गए आज वही लोग आख़िर किस तरह इस भीषण मंहगाई में आपने पेट पालेंगे ? जब सरकार संकट में है तो देश की बेरोज़गार ग़रीब जनता का क्या हाल होगा? आज प्रधानमंत्री के ही वाक्य के अनुसार - प्रधानमंत्री जी आप मंहगाई कम कर पाओ या न कर पाओ कम से कम मनमोहन सिंह जहां छोड़ गए थे वहां तो ला के रख दो। तब भी ग़रीब के घर में चूल्हा जलेगा। बेशक जब सत्ता पर बहुमत का अहंकार हावी हो जाए और जनता निराश हो जाए तो सत्ता से शिकवा करने के बजाए यही कहना बेहतर होगा कि -'हाय मंहगाई -तुझे क्यों मौत न आई' ?
(लेखक-निर्मल रानी)
 

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