नई दिल्ली । शादी का झूठा वादा करके बलात्कार के आरोप में एक प्राथमिकी को रद्द करने के संबंध में भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने एक मामले में पूछा, "जब दो लोग पति और पत्नी के रूप में रह रहे होते हैं, हालाँकि पति क्रूर है, तो क्या उनके बीच बने यौन-संबंध को बलात्कार कहा जा सकता है?"
याचिकाकर्ता ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि उसके और महिला के बीच सहमति के आधार पर यौन संबंध बने थे। उसने दावा किया कि उनके संबंधों में कड़ावहट आने के बाद महिला की ओर से यह प्राथमिकी दर्ज की गई थी। सुप्रीम कोर्ट बेंच, जिसमें जस्टिस एएस बोपन्ना और वी. रामसुब्रमण्यन भी शामिल थे, प्राथमिकी को रद्द करने की प्रार्थना पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं थी। बेंच ने हालांकि याचिकाकर्ता को डिस्चार्ज के लिए आवेदन करने स्वतंत्रता के साथ अपनी याचिका वापस लेने की अनुमति दी। हालांकि, इसके साथ ही पीठ ने उसकी गिरफ्तारी पर 8 सप्ताह के लिए रोक लगा दी। सुनवाई के दौरान, एडवोकेट आदित्य वशिष्ठ ने रिस्पोंडेंट-कम्प्लेंट के लिए अपील करते हुए बेंच के समक्ष कहा कि याचिकाकर्ता शादी का वादा करने वाली महिला के साथ रहता था और उसे बेरहमी से मारता-पीटता था। उन्होंने महिला के शरीर पर चोटों का मेडिकल सर्टिफिकेट भी दिखाया। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विभा दत्ता मखीजा ने कहा कि आरोपों से बलात्कार के लिए कोई मामला नहीं बनता और प्रतिवादी ने स्पष्ट रूप से उसकी सहमति को दिखाया है। मखीजा ने कहा, "यह महिला की आदत है, उसने ऑफिस में दो और लोगों के साथ ऐसा ही किया है।"
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पति क्रूर है, तो क्या पति-पत्नी के बीच बने यौन-संबंध को बलात्कार कहा जा सकता है?