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काँग्रेस: एक और विभाजन तय  काँग्रेस (आई) के बाद अब काँग्रेस (एम)....? 

काँग्रेस: एक और विभाजन तय  काँग्रेस (आई) के बाद अब काँग्रेस (एम)....? 

देश का सबसे प्राचीन राजनीतिक दल कांग्रेस एक बार फिर विभाजन के कगार पर है और अब संभावना व्यक्त की जा रही है कि कांग्रेस (इंदिरा) के बाद अब कांग्रेस (मोदी) बनने की संभावना है, जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष कश्मीरी नेता श्री गुलाम नबी आजाद होंगे जो कांग्रेस पार्टी नहीं छोड़ने के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जी भरकर तारीफ कर चुके है। हाल ही में जम्मू में आयोजित ’जी23‘ सम्मेलन में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल सहित कई बड़े नेता कांग्रेस नेतृत्व की रीति-नीति की खुलकर आलोचना कर चुके है।  
देश पर राज कर रही भारतीय जनता पार्टी के जन्म (1980) के आसपास ही स्व. इंदिरा जी की रीति-नीति से परेशान होकर उस समय के दिग्गज नेता निजलिंगअप्पा ने अपनी कांग्रेस अलग गठित कर ली थी जिसका नाम कांग्रेस (ओ) रखा था और इंदिरा जी की कांग्रेस के आगे ”आई“ अर्थात्् कांग्रेस (इंदिरा) जुड़ गया था, तभी से यह पार्टी कांग्रेस (आई) के नाम से ही जानी जाती रही है, किंतु अब सोनिया राहुल की रीति-नीति से परेशान कुछ वरिष्ठ दिग्गज नेता भाजपा का दामन थामने के बजाए अपनी नई कांग्रेस को जन्म देने की तैयारी में है, जम्मू में सम्पन्न ’जी23‘ सम्मेलन में उसी मुद्दें पर गंभीर विचार विमर्श हुआ है तथा इस बात की खोज शुरू कर दी गई है कि विभिन्न राज्यों में कौन से नेता मौजूदा नेतृत्व की रीति-नीति से परेशान है, जिनका सहयोग लेकर ये अपनी नई पार्टी का विस्तार राज्यों के स्तर तक कर दें। मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में तो कांग्रेसी नेताओं का असंतोष उभरकर सामने भी आने लगा है, जो उत्तरी मध्यप्रदेश के एक गोडसे पूजक नेता को कांग्रेस में शामिल करने को लेकर अपनी नाराजी व्यक्त कर रहे है, इस तरह पार्टी के शीर्ष नेताओं की तरह राज्यस्तर पर भी असंतोष उभर कर सामने आने लगा है और कांग्रेस नेतृत्व से असंतुष्ट शीर्ष नेताओं ने इन राज्यस्तरीय नाराज नेताओं से सम्पर्क स्थापित करना भी शुरू कर दिया है।  
अब चूंकि पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जमकर तारीफ की इसलिए मजाकिया अंदाज में यह कहा जाने लगा है कि ये असंतुष्ट नेता अब कांग्रेस (मोदी) का गठन करेंगे।  
खैर, यह तो परिहास की बात हुई किंतु राजनीतिक क्षेत्रों में कांग्रेस के मौजूदा परिदृष्य को मोदी की कूटनीतिज्ञ राजनीतिक चाल का एक अंग माना जा रहा है, मोदी जी अस्ताचल में जा रही कांग्रेस को इन नेताओं से एक और धक्का दिलवा कर इस पार्टी को रसातल में स्थापित करना चाहते है, क्योंकि मौजूदा समय में राष्ट्रीय स्तर पर अपना अस्तित्व खोती जा रही कांग्रेस ही मोदी की आंखों की किरकिरी बनी हुई है, यद्यपि कांग्रेस शासित राज्य अब देश में आधा दर्जन भी नहीं बचे है, किंतु इसके बावजूद इस पार्टी की बुजुर्गियत व उसका बचा कुचा अस्तित्व मोदी जी को खटक रहा है, मोदी की धारणा है कि यदि कांग्रेस खत्म हो गई तो प्रतिपक्ष खत्म हो जाएगा, क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर अपना अस्तित्व कायम करने वाला कांग्रेस के अलावा कोई प्रतिपक्षी दल नहीं है, फिर वह चाहे बसपा हो या सपा या कि अकाली दल, आप या राजद, किसी की भी राष्ट्रीय स्तर पर न पहचान है न ही अस्तित्व। सब अपने-अपने राज्यस्तरीय प्रभाव क्षेत्र तक ही सीमित है। इन्हीं सब कारणों से मोदी की सोच है कि यदि कांग्रेस का अस्तित्व खत्म हो जाता है तो फिर देश में कोई भी अन्य मुख्य प्रतिपक्षी दल नहीं रहेगा और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी निश्चित होकर दीर्घकाल तक देश पर राज कर सकेगी, इसलिए यदि यह कहा जाए कि कांग्रेस के इन असंतुष्ट शीर्ष नेता की मोदी जी से मिलीभगत है तो वह भी गलत नही होगा?  
यद्यपि यह भी सही है कि मौजूदा कांग्रेस में एकमात्र प्रियंका ही ऐसी नैत्री है, जिसमें इंदिरा जी की झलक दिखने से कांग्रेस उसके साथ है, वर्ना राहुल को तो स्वयं कांग्रेसियों ने ही पहले ही ”रिजेक्ट“ कर दिया है और चूंकि सोनिया जी की नजर में राहुल के प्यार का पलड़ा भारी है, इसलिए प्रियंका कांग्रेस के लिए कितना कुछ कर पाती है? यह भविष्य के गर्भ में है।  
जो भी हो.... किंतु यह तय है कि कांग्रेस के दिन अभी ठीक नहीं चल रहे है और उसमें व्यस्त असंतोष ही उसे रसातल में पहुंचाने का सहभागी बनेगा, फिर मोदी जी का तो सहयोग है ही....? 
(लेखक-ओमप्रकाश मेहता)

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