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 मुस्लिम वोट बैंक के बिखराव से बीजेपी को बड़ी उम्मीद

 मुस्लिम वोट बैंक के बिखराव से बीजेपी को बड़ी उम्मीद

कोलकाता । जब-जब पश्चिम बंगाल में चुनाव होते हैं तो दो समुदायों की सबसे ज्यादा चर्चा रहती है। ये समुदाय हैं मुस्लिम और मतुआ। दोनों ही समुदाय राज्य के बड़े वोट बैंक हैं। बंगाल में एक तरफ जहां 30 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं तो वहीं 15 प्रतिशत हिस्सेदारी मतुआ समुदाय के वोटरों की भी है। हालांकि, इस बार राज्य में मुस्लिम वोटों का बिखराव होता दिख रहा है, जिसका फायदा बीजेपी को हो सकता है। मतुआ समुदाय पर बीजेपी और टीएमएस दोनों ही नजरें रखे हुए हैं। बीजेपी जहां बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और टीएमसी के खिलाफ मतुआ समुदाय का साथ चाहती है तो वहीं टीएमसी भी इस समुदाय को साधने में जुटी हुई है। मुस्लिम समुदाय ऐसा है जो बंगाल के विधानसभा चुनावों में एक बड़ी भूमिका निभा सकता है। दरअसल, कई दशकों से बंगाल में मुस्लिम समुदाय को वाम मोर्चे का वोट बैंक माना जाता रहा है। इस बार मुस्लिम समुदाय का चेहरा बनकर दो बड़े नेता चुनावी मैदान में उतरे हैं। इनमें से पहले हैं हूगली जिले के फुरफुरा शरीफ दरगाह के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी और दूसरे हैं एआईएमआईएम चीफ और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी। चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ओवैसी ने जब बंगाल का दौरा किया था तो वह फुरफुरा शरीफ के पीरजादा सिद्दीकी से भी मुलाकात की थी। उस समय सिद्दीकी ने खुद को ओवैसी का फैन बताया था और उम्मीद की जा रही थी कि बंगाल में दोनों मिलकर चुनाव लड़ेंगे। हालांकि, अब अब्बास सिद्दीकी लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन में शामिल हो गए हैं। यह फैसला ओवैसी को खास पसंद नहीं आया और उन्होंने ऐलान किया कि वह बंगाल में अकेले दम पर चुनाव लड़ेंगे। सिद्दीकी संग बात न बनने के एआईएमआईएम ने बंगाल में हाल के महीनों में अपना विस्तार भी किया है। अभी तक की स्थिति के मुताबिक, ओवैसी को उर्दू भाषी मुस्लिमों के कुछ वोट भी मिल सकते हैं। वहीं, अब्बास सिद्दीकी ने भी अपना अलग इंडियन सेक्युलर फ्रंट बना लिया है, जिसके अध्यक्ष उनके भाई नौशाद सिद्दीकी हैं। बंगाल में मुस्लिम वोट का जहां बंटवारा हो रहा है तो वहीं बीजेपी लगातार टीएमसी के खिलाफ अभियान चला रही है। बीजेपी का चुनावी कैंपेन दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा और जय श्री राम पर टिका हुआ है। बीजेपी के इसी चुनावी अभियान ने उसे साल 2019 के लोकसभा चुनाव में फायदा पहुंचाया था जब राज्य में जबरदस्त ध्रुवीकरण देखा गया था। अब्बास सिद्दीकी और ओवैसी की ओर से अलग-अलग चुनावी अभियानों से मुस्लिम वोट बैंक में बड़ा बिखराव देखने को मिल सकता है। अब्बास सिद्दीकी इस चुनाव में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। उनका फुरफुरा शरीफ अहले सुन्नतुल जमात के सिद्धांतों का पालन करता है, जो बंगाल में, खासतौर पर सीमावर्ती इलाकों में लोकप्रिय इस्लामी समुदाय है। ऐसे में अगर बंगाल के विधानसभा चुनावों में सिद्दीकी और ओवैसी बड़ी भूमिका निभाते हैं तो यह न सिर्फ बीजेपी के लिए फायदेमंद होगा बल्कि यह ममता बनर्जी की टेंशन भी बढ़ाएगा।
 

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