यों तो गणितीय शास्त्र का उपयोग लोक व्यवहार को चलाने होता हैं। पर आध्यात्मिक क्षेत्र में भी इस शास्त्र का उपयोग प्राचीन कल से होता चला आ रहा हैं।
मन को स्थिर रखने के लिए गणित एक प्रधान साधन हैं। गणित की पेचीद गुत्थियों में उलझा मन स्थिर हो जाता हैं तथा एक निश्चित केंद्र बिंदु पर आश्रित होकर त्मिक विकास में सहायक होता हैं।
या साधक जब ध्यान क अभ्यास करता हैं तब उसके सामने सबसेबड़ी कठिनाई यह आती हैं कि अन्य समय में जिन सड़ी गली एवं घिनौनी बातों कि उसने कभी कल्पना की थी वो भी उसी समय याद आती हैं और वह घबरा जाता हैं इसका प्रधान कारण यही हैं कि वह ध्यान करना चाहता हैं उसमे मन अभ्यस्त नहीं हैं उनसे उसे हटा दिया गया हैं। इस प्रकार कि परिस्तिथी में मन निकम्मा हो जाता हैं। आचार्यों ने धार्मिक गणित कि गुत्थियों को सुलझाने के मार्ग द्वारा मन को स्थिर करने कि प्रक्रिया बतलायी हैं, क्योकि मंत्र विषय में लगने से मन ऊबता हैं, रक्त हैं और कभी कभी विरोध भी करने लगता हैं।
जिस प्रकार पशु किसी नवीन स्थान पर नए खूंटे से बांधने पर विद्रोह करता हैं चाहे ने जगह उनके लिए कितनी ही सुन्दर व सुखप्रद ही क्यों न हो, फिर भी वह असर पाकर बंधन तोड़कर पुराने स्थान पर लग जाना चाहता हैं। इसी प्रकार मन भी नए विचार में नहीं लगना चाहता क्योकि विषय चिंतन का अभ्यस्त मन आत्मिक चिंतन में लगने से घबराता हैं यह बड़ाही दुनिग्रह व चंचल हैं।
धार्मिक गणित के सतत अभ्यास से यह आत्म -चिंतन में लगता हैं और व्यर्थ कि बातें विचार क्षेत्र में प्रविष्ट नहीं हो पाती।
णमोकार महामंत्र गणित भी इसी प्रकार हैं जिसके अभ्यास से मन विषय -चिंतन से विमुख हो जाता हैं और णमोकार मन्त्र कि साधना में लग जाता हैं।
प्रारम्भ में साधक णमोकार मंत्र का ध्यान करता हैं तो मन स्थिर नहीं रहता हैं। किन्तु इस महामंत्र के गणित द्वारा मन को थोड़े ही दिन में अभ्यस्त कर लिया जाता हैं।
इधर -उधर के विषयों में भटकने वाला चंचल मन जो कि घर छोड़कर वन में रहने पर भी व्यक्ति को आंदोलित करता हैं। वह इस मन्त्र के अर्थ चिंतन में स्थिर हो जाता हैं तथा पंच परमेष्टि शुद्धात्मा का ध्यान करने लगता हैं।
प्रस्तार,अंक, संख्या, नष्ट, उदिष्ट आनुपूर्वी, अननुपूर्वी इस गणितीय विधियों द्वारा णमोकार मन्त्र का वर्णन किया गया हैं। इस प्रकार के गीतों में चंचल मन एकाग्र हो जाता हैं। मन के एकाग्र होने से आत्मा कि मलिनता दूर होने लगती हिन् और स्वरूपाचरण कि प्राप्ति हो जाती हैं।
इस प्रकार श्रावक अंतिम समय में भी णमोकार मंत्र कि साधना कर उत्तम गति कि प्राप्ति करता हैं और उसके जन्म -जन्मान्तरों के पाप का विनाश होता हैं। अंतिम समय में ध्यान किया गया मन्त्र अत्यधिक कल्याणकारी होता हैं।
इस मन्त्र कि महिमा अद्भुत हैं भक्ति भाव पूर्वक इस मन्त्र का ध्यान करने से परिणाम स्थिर होते हैं तथा सभी प्रकार कि बाधाएं टल जाती हैं।
मनुष्य कि तो बात ही क्या त्रियंच भी इस महामंत्र के प्रभाव से स्वर्गिक सुखों को प्राप्त हुए हाँ इस मन्त्र के प्रति अटूट श्रद्धा होना चाहिए। श्रद्धा द्वारा ही इसका वास्तविक फल प्राप्त होता हैं। यों तो इस मन्त्र के उच्चारण मात्र से ही आत्मा मेअसंख्यातगुणी विशुद्धि उतपन्न होती हैं।
अतःयह पद विपर्यय का सिद्धांत थी नहीं जंचता श्रद्धालु व्यक्ति जब साधारण मन्त्रों के पद विपर्यय से डरता हैं तथा अनिष्ट फल प्राप्त होने के अनेक उदहारण सामने प्रस्तुत हैं। अतः इस महामंत्र में इस प्रकार का परिवर्तन उचित नहीं लगता।
इस शंका का उत्तर यह हैं कि किसी फल कि प्राप्ति करने के लिए गृहस्थ कि मंत्र संख्या द्वारा णमोकार मंत्र के ध्यान कि आवश्यकता नहीं। जब तक वह गृहस्थ अपरिग्रही ही बना रहता हैं। घर में रहकर भी साधना करना चाहता हैं तब तक उसे उस कर्म से ध्यान करना चाहिए। अतः जिन गृहस्थ व्यक्ति का मन संसार के कार्यों में आसक्त हैं वह इस मन्त्र को संख्या द्वारा स्थिर नहीं कर सकता हैं.त्रिगुणियों का पालन करना जिसने प्रारम्भ कर दिया हैं। ऐसा दिगम्बर अपरिग्रही साधु अपने मन को एकाग्र करने के लिए इस कर्म द्वारा ध्यान करता हैं।
मन को स्थिर करने के लिए उक्त कर्म का ध्यान करता हैं मन को स्थिर करने के लिए व्यक्ति को क्रम रूप से ध्यान करने कि आवश्यकता पड़ती हैं अतः गृहस्थ को इस प्रयोग कि प्रारंभिक अवस्था में आवश्यकता भी हैं। हालांकि ऐसा व्रती श्र्रावक जो प्रतिमायोग धारण करता हैं। वह इस विधि से णमोकार मन्त्र क ध्यान करने का अधिकरी हैं। अतः ध्यान करते समय अपना पद, पनि शक्ति और अपने परिणामों का विचार कर आगे बढ़ना चाहिए.
णमोकार मन्त्र का उपर्युक्त विधि के उच्चारण तथा ध्यान करने पर लक्ष्य कि दृढ़ता होती हैं तथा मन एकाग्र होता हैं, जिससे कर्मों कि असंख्यातगुणी निर्जरा होती हैं। इस अंकों को क्रमबद्ध इसलिए नहीं रखा गया हैं कि क्रमबद्ध होने से मन को विचार करने का असर कम मिलता हैं फलतः मन संसारतंत्र में पड़कर धर्म कि जगह मार धाड़ कर बैठता हैं। आनुपूर्वी कर्म से मंत्र का स्मरण और मनन करने से आत्मिक शांति मिलती हैं
विधि ---
नमो अरिहंताणं बोलकर कोष्ठक में लिखे अंक १ पर अंगुली रखे, नमो सिद्धाणं बोलकर अंक २ पर, नमो आयरियाणं बोलकर ३ अंक पर, नमो उबबज्झायानाम बोलकर ४ अंक और नमो लोए सव्वसाहूणं बोलकर ५ अंक पर अंगुली रखे। इस प्रकार अंको पर अंगुली रखकर मंत्र उच्चारण करने से ध्यान केवल णमोकार मंत्र जपने में ही केंद्रित होगा
फल ----
आनुपूर्व प्रतिदिन जपिये चंचल मन स्थिर हो जावे।
छःमाही तप का फल होव, पाप-पंक सब धूल जावे। .
मंत्रराज नवकार हृदय में, शांति सुधारस बरसाता हैं
लौकिक जीवन सुखमय करके, अजर अमर पद पहुंचाता
जिनवाणी का सार हैं, मंत्रराज नवकार
भाव-सहित पढ़िए सदा, यही साधना सार।
इस प्रकार इस पद्धति से जाप और ध्यान दोनों हो जाते हैं।
(लेखक-डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)
आर्टिकल
जैन दर्शन की आनुपूर्वी पद्धति जाप अद्वितीय (नवकार मंत्र का जाप और ध्यान एक साथ)