अगर 2 मई 2021 के बाद कांग्रेस असम में सर्बानंद सोनोवाल को और केरल में पी विजयन को सत्ता से बेदखल करने में नाकामयाब रहती है तो कांग्रेस को एक कर उसका नेतृत्व अपने हाथ में लेने की राहुल गांधी की संभावनाएं गहरे पानी में गोते लगाते नजर आएंगी। 'दीवार क्या गिरी मेरे खस्ता मकान की, लोगों ने मेरे सेहन में रस्ते बना लिए' क्या 2 मई 2021 के बाद गांधी कुनबा सिब्त अली सबा के इस दोहे को गुनगुनाएंगे? कांग्रेस के असंतुष्टों और पार्टी नेतृत्व के बीच खींचतान एक निर्णायक दौर में पहुंच गया है। लंबे समय से चल रहे इस जंग के नतीजे पांच राज्यों के चुनावी चुनावी नतीजों पर निर्भर करता है. विधानसभा चुनाव के ये नतीजे 2 मई 2021 को आने वाले हैं।सोनिया, राहुल और प्रियंका की तिकड़ी के नेतृत्व में गांधी कुनबा चुनावी सफलता हासिल करने के लिए बेकरार है।
लेकिन अगर हाल में आए एक ओपिनियन पोल पर यकीन किया जाए तो तमिलनाडु को छोड़कर जहां कि कांग्रेस जूनियर पार्टनर की भूमिका में है, भारत की इस ग्रैंड ओल्ड पार्टी को दूसरे राज्यों में चुनावी सफलता मिलने के कम ही आसार हैं।गांधी परिवार के लिए ये एक चिंताजनक संकेत है जो कि कठिन मेहनत कर असम और केरल के चुनावी पूर्वानुमानों को झुठलाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर 2 मई 2021 के बाद पार्टी असम में सर्बानंद सोनोवाल को और केरल में पी विजयन को सत्ता से बेदखल करने में नाकामयाब रहती है तो कांग्रेस को एककर उसका नेतृत्व अपने हाथ में लेने की राहुल गांधी की संभावनाएं गहरे पानी में गोते लगाते नजर आएंगी। ऐसी स्थिति में उन्हें या तो 'स्वतंत्र और निष्पक्ष' चुनाव करवाने होंगे, जिसमें की गांधी परिवार का कोई भी व्यक्ति रेस में नहीं होगा, या फिर उन्हे कांग्रेस के 87वें अध्यक्ष के रूप में खुद को स्थापित करना होगा, इसकी वजह से चाहे कांग्रेस में और टूट क्यों न हो जाए। इन दोनों परिदृश्यों में गांधी परिव परिवार का अथॉरिटी और राजनीतिक नेतृत्व कमजोर होता दिखता है। इस असहज स्थिति को भांपते हुए गांधी परिवार के राजकुमार ने देश के दक्षिणी हिस्सों में फोकस करने का फैसला किया है, जैसे कि केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी।राहुल गांधी की ओर से हाल ही में उत्तर बनाम दक्षिण को लेकर दिए गए बयान के बाद केरल राहुल गांधी के बेहद अहम हो गया है।
इधर कांग्रेस के असंतुष्टों का गुट, जिन्हें मीडिया में जी-23 के नाम से ख्याति मिली है, भी चुपचाप नहीं बैठा है। उन्होंने शनिवार 27 फरवरी को जम्मू में एक जमावड़ा कर अपनी मौजूदगी का एहसास करा दिया है। गांधी ग्लोबल मीट में की गई इन नेताओं की घोषणा को न तो विद्रोह कहा जा सकता है और न ही पार्टी की अनुशासन की लक्ष्मण रेखा को पार करना कहा जाएगा, लेकिन इन नेताओं ने कुछ ऐसा संकेत दिया है जो असहजता से आगे की स्थिति को दर्शाता है। कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से परिचित लोगों का कहना है कि जी-23 में शामिल कम से कम 8 नेताओं ने पार्टी के स्थापित नेतृत्व के खिलाफ पब्लिक में जाने का फैसला कर लिया है।
कांग्रेस में एक ही दिन में ऐसा बिखराव शायद ही पहले कभी देखने को मिला हो। राहुल गांधी तमिलनाडु के दौरे पर निकले हुए थे। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा संत रविदास जयंती के मौके पर वाराणसी में लंगर के दौरान पहुंची हुई थीं और जी-23 के नेता जम्मू पहुंच कर गांधी परिवार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक रहे थे।गांधी ग्लोबल फेमिली के बैनर तल जम्मू में शांति सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें कांग्रेस के बागी गुट जी-23 के सात नेता जुटे जिसमे प्रमुख गुलाम नबी आजाद , कपिल सिब्बल , आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, विवेक तन्खा, राज बब्बर और भूपेंद्र सिंह हुड्डा।मंच से किसी भी कांग्रेस नेता ने राहुल गांधी या सोनिया गांधी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन जो कुछ भी बोला उससे साफ था कि निशाने पर गांधी परिवार ही है।
नेताओं के बयान बड़े ही तल्ख रहे और ये संदेश देने की कोशिश भी लगी कि असली कांग्रेस वही हैं और कांग्रेस भी उनसे ही है।बोले भी सभी और गुलाम नबी आजाद को कांग्रेस की तरफ से राज्य सभा न भेजे जाने को लेकर गहरी नाराजगी भी जतायी, लगे हाथ गुलाम नबी आजाद ने ये भी साफ कर दिया कि वो राज्य सभा से रिटायर हुए हैं लेकिन राजनीति से नहीं और ये कोई पहली बार नहीं हुआ है।बगावती लहजा कदम कदम पर नजर आ रहा था।सिर्फ लफ्जों में नहीं बल्कि पूरे हाव भाव से और सबके सिर पर भगवा साफा तो जैसे कहर ही ढा रहा था! बताया भी गया और जताया भी जा रहा था कि कांग्रेस नेताओं का वो गांधी ग्लोबल फैमिली शांति सम्मेलन था, लेकिन उनकी बातें बता रही थी कि अंदर घोर अशांति है और सभी के मन में कूट कूट कर भरी हुई है।
इस सब कारण स्वयं कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व ही रहा। लम्बे समय से खबर आती रही थी कि जनवरी में ही कांग्रेस का सम्मेलन होगा और पार्टी अपना नया अध्यक्ष चुन लेगी।फिर खबर आयी कि राहुल गांधी ही दोबारा कांग्रेस की कमान संभाल सकते हैं और भी ये भी संशय जताये जाने लगे कि राहुल गांधी अभी पूरी तरह मानसिक तौर पर कुर्सी संभालने को लेकर हां नहीं कहे हैं। और फिर एक दिन अचानक एक मीटिंग बुला कर फैसला हो गया कि नहीं, अभी तो बिलकुल नहीं अब जो कुछ भी होगा वो मई के बाद होगा , शायद जून तक।अंदाजा सही था। 2 जून को राज्यों के विधानसभा चुनाव में हुई वोटिंग की गिनती होगी और तब कहीं जाकर कांग्रेस में नया अध्यक्ष चुनने की कवायद शुरू होगी।
(लेखक - अशोक भाटिया)
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जी-23 के बहाने कांग्रेस में बगावत के सुर , एक ही दिन में आया बड़ा बिखराव