शिव - पार्वती विवाह की याद दिलाता है महाशिवरात्रि का पर्व । यह महान पर्व स्मरण कराता है
शिव -पार्वती के अलौकिक प्रेम की । यह बात भले ही अद्भुत लगे लेकिन यह सत्य है कि पार्वती ने शिव से विवाह के लिये अपने पिता के द्वारा चुने गये वर के विरुद्ध जाकर शिव को पसन्द किया इस संबंध में प्रचलित कथा यह बताती है कि ऋषियों के सुझाव पर हिमालय अपनी पुत्री पार्वती का विवाह विष्णु से करने के लिये तैयार हो गए थे । लेकिन पार्वती महादेव अर्थात शिव से विवाह के लिये ठान चुकी थीं । उनकी सखियां उन्हें जंगल ले गईं । यहां उन्होंने (पार्वती ने ) तपस्या की और पिता हिमालय शिव से अपनी पुत्री के विवाह के लिये तैयार हो गये ।हरतालिका का त्यौहार ,जिसे लोकभाषा में तीज भी कहते हैं इसी कथा का अंश है ।यह प्राचीन कथा बताती है उस समय में भी नारी अपने निर्णय स्वयं लेने और विवाह करने के लिये स्वतंत्र थी । नारी स्वातंत्र्य की आज बहुत चर्चा होती है । यह कथा बताती है कि नारी उस समय भी अपने भविष्य के फैसले स्वयं करती थी ।
भगवान शिव की यह कथा बहुत कही सुनी जाती है कि उन्होंने मानव कल्याण के लिये विष पान किया था । इस कारण उन्हें नीलकण्ठ भी कहा जाता है ।यह कथा अद्भुत है । विश्व इतिहास में ऐसा कोई प्रसंग नहीं मिलता जिसमें मानव मात्र के कल्याण के लिये किसी ने हलाहल विष का पान इतनी सफलता के साथ किया हो और वह जीवित हो । उन्हें मृत्युंजय और महाकाल भी कहा जाता है । महाकाल का अर्थ होता है वह जो समय के परे हो । शिव को अजन्मा और अनादि माना जाता है इसलिये वह महाकाल हैं । मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल के दर्शन होते हैं ।
शिव को भोले भण्डारी , आशुतोष और अर्धनारीश्वर भी कहते हैं ।ये नाम उनको सही प्रतिविम्बित करते हैं । वे भोले भण्डारी हैं । उनकी कृपा पाना आसान है। शिव का अर्धनारीश्वर रूप इसका प्रतीक है कि वे नारी शक्ति को महत्व देते है । नारी स्वातंत्र्य तो आज की बात है लेकिन शिव का अर्धनारीश्वर रूप इसका स्पष्ट संकेत है कि उन्होंने सदैव नारी का सम्मान किया ।शिव का एक नाम मृत्युंजय भी है । जो महाकाल है वह मृत्युंजय भी होगा । वैसे महामृत्युंजय मंत्र का जाप रोगों से मुक्ति के लिये किया जाता है ।
कामदेव का नाम सदैव मानव के लिये उत्तेजक रूप में लिया जाता है । शिव ने काम देव को भस्म कर काम विजय का अनुपम उदाहरण मानव के लिये प्रस्तुत किया । इसके विपरीत उनका अर्धनारीश्वर रूप है । यह इस बात का प्रमाण है कि शिव ने हमेशा महिलाओं को प्रतिष्ठा दी ।नारी शक्ति के प्रति आस्था का परिचय उन्होंने सती के प्रसंग में भी दिया । जब सती ने अपने पिता के यज्ञ में अपने पति शिव का अपमान देखा तो उनसे सहन नहीं हुआ । उन्होंने यज्ञ कुण्ड में कूदकर प्राण दे दिये । शिव ने यज्ञ का ध्वंस कराया और वे सती का शव लेकर दुनिया घूमने लगे । वे सती के शव के दाह संस्कार के लिये तैयार नहीं हुए । तब विष्णु ने चक्र चलाकर उस शव के ५१ टुकड़े किये । यह कहा जाता है कि सती के शव के टुकड़े जहां जहां गिरे वहां शक्ति पीठ स्थापित हुई सती अगले जन्म में पार्वती के रूप में प्रकट हुईं और शिव ने उनसे विवाह किया । शिव का यह अद्भुत प्रेम था जब वे सती के शव को लेकर विश्व भ्रमण पर निकले और उनके दाह संस्कार के लिये भी तैयार नहीं हुए यद्यपि यह आवश्यक था । यह सती के प्रति अद्भुत प्रेम का परिचायक
था ।
लेकिन शिव ने सदा लोक हित को प्राथमिकता दी । समुद्र मंथन इसका प्रमाण है । समुद्र मंथन में जब हलाहल विष निकला तब संपूर्ण जगत में हाहाकार मच गया । तब उसे पीने के लिये उनका तत्पर होना इसका साक्ष्य है कि वे सदा लोक कल्याण के लिये सोचते हैं ।
प्रसंग वश यह भी उल्लेखनीय है यद्यपि गणेश शिव - पार्वती के पुत्र माने जाते हैं लेकिन शिव - पार्वती विवाह के पूर्व गणेश पूजन हुआ था ।तुलसी के राम चरित मानस में इस का
वर्णन मिलता है ।
मध्य प्रदेश के लिये शिव नाम का अत्यधिक महत्व है । यहां अमर कंटक से नर्मदा नदी का उद्गम होता है । नर्मदा को शिवपुत्री कहा जाता है क्योंकि शिव के शरीर से बहने वाले स्वेद से नर्मदा का जन्म हुआ था । यह कहा जाता है कि नर्मदा नदी में विद्यमान हर कंकर फत्थर शिव शंकर होता है । शायद इसी कारण नार्मदेय शिवलिंग का बड़ा महत्व होता है ।
(लेखक -हर्षवर्धन पाठक)
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शिव का अर्धनारीश्वर रूप है नारी स्वातंत्र्य का पर्यायवाची