पटना । बिहार में स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी पर लाने का सरकार दावा गलत साबित हो रहे हैं। राज्य में महज 17 फीसदी कर्मियों के सहारे एनएचएम चल रहा है। स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टर से लेकर परा मेडिकल स्टाफ, नर्सेज और लैब टेक्नीशियन की 83 फीसदी कमी है। आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में एनएचएम के तहत कुल 814 विशेषज्ञ चिकित्सक में मात्र 113 विशेषज्ञ चिकित्सक सेवा दे रहे हैं, जबकि 915 सामान्य चिकित्सकों के स्थान पर महज 289 चिकित्सक कार्यरत हैं। वहीं, नर्सों की बात की जाए तो राज्य में मिशन के तहत महज 19 फीसदी नर्सिंग स्टाफ कार्यरत हैं। राज्य में जहां स्टाफ नर्सेज के स्वीकृत पद 5236 हैं, जबकि यहां 430 अस पास की नर्सेज कार्यरत हैं। वर्तमान में कार्यरत कर्मियों के जिम्मे केंद्र से लेकर राज्य सरकार की दर्जनों योजनाएं हैं, जिनका दवाब कर्मी झेल रहे हैं और लक्षित मरीजों को लाभ पहुंचाने में इन कर्मियों के पसीने छूट रहे हैं। एनएचएम कर्मियों की कमी से कई कार्य प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में कुल प्रजनन दर यानि टीएफआर को कम करना, एमएमआर की दर में कमी लाना, शिशु मृत्यु दर में कमी लाना, संक्रामक और गैर संक्रामक रोगों से मृत्यु और मृत्यु दर की रोकथाम करना मुश्किल हो गया है।
बता दें कि बिहार में आयुष्मान भारत से लेकर पल्स पोलियो अभियान, कोरोना टीकाकरण, कोरोना जांच के आंकड़ों से सम्बंधित कार्य यानि एपीएचसी से लेकर सीएचसी, पीएचसी, सदर अस्पताल से लेकर मेडिकल कॉलेजों तक जो एनएचएम की योजनाएं चल रही हैं। उनमें एनएचएम कर्मियों की भागीदारी होती है लेकिन दवाब भी उतना ही है, क्योंकि एक कर्मचारी पर 4 से 5 कर्मचारियों के काम का दबाव रहता है। सबसे ज्यादा चुनौती आयुष्मान भारत के लाभार्थियों को चिन्हित करना, उसे गोल्डन कार्ड मुहैया करना फिर उसे सरकारी लाभ देना है। ऐसे में ना सिर्फ योजनाएं प्रभावित हो रही हैं, बल्कि इलाज से जांच पर भी व्यापक असर पड़ रहा है।
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बिहार में 17 फीसदी कर्मियों के सहारे चल रहा एनएचएम, 83फीसदी स्टाफ की कमी