इतिहास स्वयं को दोहराता है, यह कहावत हम कई वर्षों से सुनते आ रहे है, किंतु अब मौजूदा देश के हालातों को देखकर ऐसा महसूस होने लगा है कि यह कहावत एक बार फिर हमारे देश में चरितार्थ हो रही है, मौजूदा चुनावी हालातों ने जहां त्रेतायुग की याद दिला दी वहीं मौजूदा सत्ता की सियासत ने पिछले चार दशक पहले घटी सियासी घटनाओं की यादों को ताजा कर दिया।
यदि हम त्रेतायुग के सन्दर्भ में मौजूदा सियासी संघर्षों को देखें तो महसूस होता है कि मौजूदा सियासत ने विधानसभा चुनावों (सत्ता व संघर्ष) के दौरान पश्चिम बंगाल को त्रेतायुग की लंका में बदल दिया है, त्रेतायुग में स्वयं भगवान राम का शिवभक्त रावण से संघर्ष हुआ तो आज रामभक्तों का संघर्ष शिवभक्तों (ममता समर्थकों) से है, एकतरफ ‘जय श्रीराम’ का नारा है तो दूसरी ओर ‘हर-हर महादेव’। मुख्य अंतर सिर्फ इतना है कि उस समय लंका का यशस्वी बलवान राजा रावण राम के सामने था और आज रामभक्तों का मुकाबला मौजूदा लंका (बंगाल) की साम्राज्ञी ममता जी से है। एक मुख्य अंतर यह भी है कि त्रेतायुग में दंभ रावण के पाले में था और अब वह दल बदल कर रामभक्तों के पाले में आ चुका है।
त्रेतायुग और आज के ‘‘सत्ता संघर्ष’’ के बीच एक प्रमुख समय यह भी है कि त्रेतायुग में जिस तरह राम ने अपने दुश्मन रावण के अनुज विभीषण के प्रमुख सहयोग से रावण पर विजय दर्ज की थी, ठीक वैसा ही अब रामभक्त (भाजपा) अपने मुख्य प्रतिद्वन्दी (ममता) के समर्थकों के सहयोग से अपनी जीत दर्ज कराना चाहते है और ममता जी के प्रमुख सहयोगी रहे मौजूदा विभीषणों को पता है कि अमृत कुण्ड किस नाभी में है? और लंका पर त्रेतायुगी नीति से कैसे विजयश्री प्राप्त की जा सकती है?
वैसे इस मौजूदा सियासी संघर्ष में रामभक्तों (भाजपा) के साहस को दाद दी जाएगी, क्योंकि महज पांच साल पहले (2016) के विधानसभा चुनावों में भाजपा को केवल तीन सीटें हासिल हुई थी और अब महज पांच साल बाद होने जा रहे इन चुनावों में वह प्रचण्ड बहुमत के साथ पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने का सपना देख रही है, शायद यह हौसला भाजपा को उसकी उस सियासी महारत से मिला जब कभी संसद में महज दो सीटों पर सिमटी भाजपा आज प्रचण्ड बहुमत के साथ केन्द्र में सत्ता है और कोई आश्चर्य नहीं कि वहीं करिश्मा फिर सामने आ जाए? क्योंकि भाजपा ने पश्चिम बंगाल के इन चुनावों को जीवन मरण का प्रश्न बना लिया है तथा मौजूदा राम (मोदी), लक्ष्मण (नड्डा) और हनुमान (अमित शाह) इस लंका को फतह करने में कोई कौर कसर नहीं छोड़ेगें।
वैसे इस दौर में देश के पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे है, किंतु सुर्खियों में सिर्फ पश्चिम बंगाल है, क्योंकि वहां ‘‘आत्मविश्वास और अटूट प्रयास’’ के बीच मुकाबला है, ममता जी जहां पूरे आत्म विश्वास के साथ रणनीति बनाने में जुटी है, वहीं भारतीय जनता पार्टी के दिग्गजों ने इस प्रतिष्ठा के संघर्ष में फतह पाने के प्रयासों में कोई कमी नहीं छोड़ी है। भाजपा को जहां ममता जी के पूर्व सहयोगियों पर भरोसा है, वहीं ममता को अपनी कथित अभैद्य रणनीति पर। दोनों और अटूट आत्मविश्वास है और बढ़-चढ़कर दावे प्रतिदावे किये जा रहे है, इसलिए बंगाल के ये चुनाव न सिर्फ भारत के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए दिलचस्प हो गए है और इन्हें अब मोदी खिलाफ ममता के रूप में देखा जा रहा है। भाजपा के दिग्गज यह जानते है कि यदि बंगाल में वे जीत हासिल नहीं कर पाते है तो उनका राजनीतिक भविष्य अंधकार के गर्त में चला जाएगा और यह मान लिया जाएगा कि मोदी जी का आकर्षण देश में खत्म होने के कगार पर है।
(लेखक- ओमप्रकाश मेहता)
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