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कम समय मे सस्ता न्याय का मंच है उपभोक्ता अदालते!  (विश्व उपभोक्ता दिवस 15 मार्च पर) 

कम समय मे सस्ता न्याय का मंच है उपभोक्ता अदालते!  (विश्व उपभोक्ता दिवस 15 मार्च पर) 

समय के साथ उपभोक्ताओ की सोच में भी बदलाव आया है।अब खरीदी गई वस्तु के खराब निकलने पर मनसोस कर नही बैठता बल्कि दुकानदार से शिकायत करने के साथ ही खराब वस्तु को बदलवाने के लिए उपभोक्ता अदालत तक जा पहुंचता है।इसी प्रकार खरीदी गई किसी सेवा में कमी मिलने पर भी उपभोक्ता अपने साथ हुए अन्याय के लिए प्रतिवाद करता है।
 कोई किसी के साथ ठगी न कर पाए,कोई किसी को धोखा न दे पाए ,कोई चिकनी चुपड़ी बाते करके किसी को खराब गुणवत्ता का सामान और खराब सेवा न दे सके । इसके लिए सभी को अपने आंख कान खुले रखने की जरूरत है,यानि जागरूक रहना जरूरी है। उपभोक्ता अदालत एक ऐसा मंच है जहां आप सुगमता से इस अदालत का दरवाजा खटखटा सकते है।उपभोक्ताओं को कानूनी संरक्षण देने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 यथा संशोधित 2019 जो 20 जुलाई सन 2020 को नई ताकत के साथ प्रभावी हुआ है। इस कानून के तहत कोई भी व्यक्ति जो उपभोक्ता की परिभाषा में आता है , शोषण और अन्याय से मुक्ति के लिए शिकायत योजित कर सकता है। इस कानून में समय के साथ किये गए बदलाव  से उपभोक्ताओं को न्याय दिलाने के क्षेत्र में आशा की नई पहल की शुरुआत हुई है।नए कानून उपभोक्ता संरक्षण संशोधित अधिनियम, 2019 के तहत उपभोक्ता अब कही से भी उपभोक्ता अदालत में अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है। नए कानून में उपभोक्ताओं के हितो के लिए कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं,साथ ही पुराने कानूनों में सुधार की कोशिश की गई है।
 सेंट्रल रेगुलेटर के गठन के साथ ही भ्रामक विज्ञापनों पर भारी दंड की व्यवस्था और ई-कॉमर्स फर्मों और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बेचने वाली कंपनियों के लिए सख्‍त दिशानिर्देश इस नये कानून में नजर आते हैं। 
उपभोक्ताओं की शिकायतो का निपटारा करने के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता अदालतें  हैं जिन्हें आयोग के रूप मान्यता दी गई है।नए कानून के तहत उपभोक्ता अदालतों के क्षेत्राधिकार को बढ़ाया गया है। राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता अदालतों के मुकाबले जिला अदालतों तक पहुंच ज्यादा होती है। इसलिए अब जिला उपभोक्ता अदालतें 1 करोड़ रुपये तक के मामलों की सुनवाई कर सकेंगी।" नए संशोधित कानून की सबसे खास बात यह है कि अब उपभोक्ता अपनी शिकायत कही से भी दर्ज कर सकता है। पहले उपभोक्ता को वहीं शिकायत दर्ज करानी पड़ती थी, जहां विक्रेता अपनी सेवाएं देता था या फिर उसकी कोई शाखा या कार्यालय जहां मौजूद होता था। ई-कॉमर्स अर्थात ऑन लाइन से बढ़ती खरीदारी को देखते हुए यह उपभोक्ताओं के हित मे एक अच्छा कदम है कि पीड़ित उपभोक्ता जहां रह रहा है वही से शिकायत कर सकता है। इसके अलावा कानून में उपभोक्ता को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए भी सुनवाई में शिरकत करने की इजाजत दी गई है। इससे उपभोक्ता का पैसा और समय दोनों बचते और उसे न्याय भी जल्दी मिल रहा है। उपभोक्ता हितों के इतिहास पर दृष्टि डाले तो सन 1966 में जेआरडी टाटा व अन्य कुछ उद्योगपतियों द्वारा उपभोक्ता संरक्षण के तहत फेयर प्रैक्टिस एसोसिएशन की स्थापना की गई  थी और इसकी शाखाएं कुछ प्रमुख शहरों में स्थापित की गईं। भारत मे उपभोक्ताओं के हित सुरक्षित करने के लिए उपभोक्ता आंदोलन का यह प्रथम प्रयास था।वही स्वयंसेवी संगठन के रूप में ग्राहक पंचायत की स्थापना बीएम जोशी द्वारा सन1974 में की गई।अन्य राज्यों में भी उपभोक्ता कल्याण हेतु संस्थाओं का गठन हुआ। इस प्रकार उपभोक्ता आन्दोलन देश मे आगे बढ़ता रहा और  24 दिसम्बर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर उपभोक्ता संरक्षण विधेयक संसद ने पारित किया, जो राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित होने के बाद देशभर में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के रूप में लागू हुआ। इस अधिनियम में सन 1993 ,सन 2002 व अब 2019 में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। इन व्यापक संशोधनों के बाद यह एक सरल व सुगम अधिनियम हो गया है। जिसमे पहले से कही ज्यादा शक्ति नजर आती है।इस अधिनियम के अधीन पारित उपभोक्ता अदालतों के आदेशों का पालन न किए जाने पर धारा 72 के अधीन दंड का प्रावधान किया गया है।
नए कानून में उत्पाद व विक्रेता कंपनी की जवाबदेही तय की गई है ।उत्पाद में निर्माण त्रुटि या खराब सेवाओं से अगर उपभोक्ता को नुकसान होता है तो उसे बनाने वाली कंपनी को हर्जाना देना होगा. यानि निर्माण त्रुटि में खराबी के कारण गैस सिलेंडर के फटने पर उपभोक्ता को चोट पहुंचती है तो उस हादसे के लिए कंपनी को हर्जाना देना होगा। पहले उपभोक्ता को उत्पाद की लागत मिलती थी। उपभोक्ताओं को क्षति पूर्ति के लिए भी सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ता था. जिससे मामले के निपटारे में सालों साल लग जाते थे।पहले कंपनियां गलत तरीके से कोर्ट से तारीख पर तारीख ले लेती थीं, लेकिन अब ऐसा नहीं है। उपभोक्ताओं को 90 दिन में न्याय देने का नियम है और पहले जहां से उपभोक्ता ने सामान खरीदा था, वहीं के उपभोक्ता फोरम में वाद दायर करना होता था। अब उपभोक्ता कहीं से भी सामान खरीदा हो, यदि उसमें खराबी है तो उसकी शिकायत घर या काम की जगह के आसपास की  उपभोक्ता अदालत में कर सकता है। इस नये कानून का सबसे ज्यादा असर ई-कॉमर्स बिजनेस के क्षेत्र में  होगा।अब  इसके दायरे में सेवा प्रदाता भी आ जाएंगे.  "उत्पाद की जवाबदेही अब निर्माता के साथ सेवा प्रदाता और विक्रेताओं पर भी होगी. इसका अर्थ यह हुआ  क‍ि ई-कॉमर्स साइट खुद को एग्रीगेटर बताकर पल्ला नहीं झाड़ सकती हैं."ई-कॉमर्स कंपन‍ियों पर सीधे बिक्री पर लागू सभी कानून प्रभावी होंगे।अब अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसे व्यापारिक मंच को विक्रेताओं के ब्योरे का खुलासा करना होगा। इनमें उनका पता, वेबसाइट, ई-मेल इत्यादि शामिल करना जरूरी हैं.ई-कॉमर्स फर्मों की  जिम्मेदारी होगी कि वे सुनिश्चित करें क‍ि उनके स्तर पर किसी तरह के नकली उत्पादों की बिक्री न हो. अगर ऐसा होता है तो कंपनी पर दंड लग सकता है, क्योंकि ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों पर नकली उत्पादों की बिक्री के मामलो की शिकायतें मिलती रही हैं।
कानून में सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन अथॉरिटी (सीसीपीए) नाम का केंद्रीय रेगुलेटर बनाने का प्रस्ताव है. यह उपभोक्ता के अधिकारों, अनुचित व्यापार व्यवहार, भ्रामक विज्ञापन और नकली उत्पादों की बिक्री से जुड़े मामलो को देखेगा और जरूरत पड़ने पर उनके विरुद्ध कार्यवाही कर सकेगा।नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के पारित हो जाने के बाद कंपनियों पर इस बात की ज़िम्मेदारी अब और ज़्यादा होगी कि उनके उत्पादों के विज्ञापन भ्रामक न हों और उनके उत्पाद दावों के अनुरुप ही हों।
अब अगर कोई सेलीब्रिटी किसी ऐसे उत्पाद का प्रचार करता है, जिसमें दावा कुछ और हो और दावे की सच्चाई कुछ और, तो उस पर भी जुर्माना लगेगा.अभी तक किसी सामान की शिकायत करनी हो तो पहले उसे खरीदना जरूरी होता था परंतु  नया उपभोक्ता कानून उपभोक्ताओं को अधिकार देता है कि वह बिना सामान खरीदे भी, किसी सामान की उत्पाद गुणवत्ता को लेकर शिकायत कर सकते है। अक्सर देखा गया है कि कंपनियां अपने उत्पाद के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर विज्ञापन करती हैं। अगर आपको पता चल गया कि उसमें वैसी खूबी नहीं है तो बिना सामान खरीदे उसकी शिकायत सीसीपीए से की जा सकती है। सीसीपीए में एक इंवेस्टिगेशन विंग होगी जो शिकायत की जांच करेगी। यदि शिकायत सही पाई गई तो दोषी कंपनी पर कार्रवाई होगी। हम कह सकते है कि संशोधित उपभोक्ता कानून पहले से अधिक कारगर सिद्ध हो रहा है।लेकिन कही कही उपभोक्ता अदालतों में कोरम पूरा न होने के कारण मामलो की सुनवाई नही हो पाती।इसलिए समय पर उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति हो और नियमित सुनवाई हो तो यह कानून पीड़ित उपभोक्ताओं के चेहरे पर मुस्कान ला सकता है। लेखक राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता है)
(लेखक-डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट )

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