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अंपायर के 'सॉफ्ट सिग्नल' मामले में गहराया संकट, आईसीसी को कड़ा रुख अपनाना होगा

अंपायर के 'सॉफ्ट सिग्नल' मामले में गहराया संकट, आईसीसी को कड़ा रुख अपनाना होगा

नई दिल्ली । इंडिया बनाम इंग्लैंड के बीच चौथे टी20 मैच के बाद 'सॉफ्ट सिग्नल' के मामले को लेकर बहस गर्म हो गई है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) का अब इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाने का समय आ गया है। दरअसल चौथे टी20 में भारतीय बल्लेबाज सूर्यकुमार यादव जिस विवादास्पद तरीके से आउट हुए, उसने ये साबित कर दिया है कि सॉफ्ट सिग्नल न सिर्फ गलत दिख रहा है। बल्कि भविष्य में इसके परिमाण गंभीर हो सकते हैं। बता दें कि सूर्यकुमार यादव ने चौथे टी20 में इंग्लैंड के तेज गेंदबाज सैम कुरेन की गेंद पर पैडल स्वीप खेला था। गेंद डीप फाइन लेग पर खड़े डेविड मलान  की तरफ गई। मलान ने सामने डाइव करते हुए कैच पकड़ लिया। हालांकि, कैच साफ तरीके से पकड़ा गया या नहीं, इसे लेकर शंका थी। इसलिए फील्ड अंपायर ने थर्ड अंपायर की मदद मांगी। लेकिन उन्होंने इससे पहले आउट का सॉफ्ट सिग्नल दिया। टीवी रीप्ले में भी ये नहीं पता चला कि मलान ने सफाई से कैच लिया है या नहीं। लेकिन नियमों की वजह से सूर्यकुमार को 57 रन बनाकर पवेलियन लौटना पड़ा। जबकि उन्होंने रोहित शर्मा, केएल राहुल और विराट कोहली के जल्दी आउट होने के बाद भारतीय पारी को संभालने का काम किया था।
सूर्यकुमार यादव को इस तरह से आउट दिए जाने के बाद अंपायर के सॉफ्ट सिग्नल पर सवाल खड़े होने लगे, क्योंकि मलान के इस कैच का रीप्ले टीवी पर कई बार दिखाया गया। मैदान पर खड़े अंपायर और खिलाड़ियों के साथ ही टीवी पर मैच देख रहे दर्शकों ने भी इस कैच को सांसें थामकर देखा। अंपायर ने कैमरे के हर एंगल से ये जांचने की भी कोशिश की थी कि कैच सही ढंग से पकड़ा गया है या नहीं। इसमें काफी वक्त लगा। इससे ये साफ होता है कि अंपायर के लिए फैसला करना आसान नहीं था। टेक्नोलॉजी के आने के बाद खेल में नया आयाम जुड़ा है। इससे फैंस का खेल देखने का अनुभव बेहतर हुआ है। ऐसे में अगर एक कैच को जांचने के लिए थोड़ा वक्त लग भी जाए तो ये देरी सार्थक है।
हालांकि एक खास कैमरा एंगल से ये नजर आ रहा था कि गेंद शायद जमीन से टकरा गई थी और मलान की उंगलियां पूरी तरह गेंद के नीचे नहीं थी। इससे कैच की वैधता पर संदेह पैदा हुआ। लेकिन बार-बार रीप्ले देखने के बाद थर्ड अंपायर वीरेंद्र शर्मा ने भी ऑन-फील्ड अंपायर के फैसले के साथ जाना तय किया। क्योंकि उनके पास गेंद के जमीन से टकराने के पक्के सबूत नहीं थे। इसी वजह से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। पहला ये कि परंपरागत रूप से अगर आउट होने को लेकर किसी तरह का संदेह होता है तो उसका फायदा बल्लेबाज को ही मिलता आया है। लेकिन इस मामले में बल्लेबाज को संदेह का लाभ नहीं मिला। जो सीधे-सीधे क्रिकेट की परंपराओं का उल्लंघन है।
वास्तव में बल्लेबाज की जगह इस बार ऑन-फील्ड अंपायर को ये लाभ मिल गया। वो भी तब जब थर्ड अंपायर इस बात को लेकर पक्का नहीं था कि कैच सफाई से पकड़ा गया है या नहीं। ऑन फील्ड अंपायर ने 'सॉफ्ट सिग्नल' दिखाते हुए बल्लेबाज को आउट करार दिया था। ऐसे में आईसीसी के नियमों के तहत थर्ड अंपायर के पास भी मैदानी अंपायर के फैसले के साथ जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था, लेकिन अब सवाल ये खड़ा होता है कि अगर ऑन-फील्ड अंपायर ने सॉफ्ट सिग्नल दिखाने में कोई गलती की तो उसका क्या?
सूर्यकुमार यादव के मामले में ही देखें तो ऑनफील्ड अंपायर फील्डर से कम से कम 60-65 गज की दूरी पर था। ऐसे में बिल्कुल सटीक विजन होने के बाद भी ये असंभव है कि अंपायर ये देख पाया हो कि मलान के कैच लेते वक्त गेंद का कुछ हिस्सा जमीन से टकरा गया था। ऐसी परिस्थिति में क्या ऑन-फील्ड अंपायर को किसी भी तरह का हार्ड या सॉफ्ट डिसीजन लेना चाहिए? इस पूरे एपिसोड का तीसरा पहलू जो बाकी दो से किसी भी सूरत में कम प्रासंगिक नहीं है। वो ये है कि आजकल के दौर में ऑन-फील्ड अंपायर पर इतनी जिम्मेदारी बढ़ गई है कि उसे सॉफ्ट सिग्नल दिखाना पड़ता है। वो भी उस सूरत में जब वो ये फैसला लेने की स्थिति में भी नहीं होता है कि बल्लेबाज को आउट देना सही है या नहीं।
टेक्नोलॉजी के इस दौर में दिलचस्प बात ये है कि ज्यादातर अंपायर प्रतिस्पर्धा के कारण सॉफ्ट सिग्नल के पक्ष में हैं। क्योंकि ये उन्हें फैसला लेने की पूरी प्रक्रिया में शामिल रखता है और खेल में मानवीय पहलू जुड़ा रहता है। तकनीक ने भले ही पारदर्शिता के साथ ही खेल को खिलाड़ियों के लिए और बेहतर बनाया है। लेकिन इसकी वजह से अंपायरों पर दबाव बढ़ गया है और वो ये दिखाना चाहते हैं कि वो किसी से कमजोर नहीं हैं। ऐसे में कई बार तो अंपायरिंग का स्तर अच्छा रहता है, लेकिन कई बार अंपायरों के रोल पर सवाल खड़े हो जाते हैं।
 

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