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मुख्य मंत्री रावत ने क्या गलत कहा !--- इसी प्रकार मौसमी चटर्जी  द्वारा  भी  दी गयी नसीहत क्या उचित हैं या नहीं ? (फटी जींस की फजीहत)  

मुख्य मंत्री रावत ने क्या गलत कहा !--- इसी प्रकार मौसमी चटर्जी  द्वारा  भी  दी गयी नसीहत क्या उचित हैं या नहीं ? (फटी जींस की फजीहत)  

आजकल किसी   को  समझाना बहुत कठिन हैं ,समझाना यानी किसी की स्वन्त्रता में बाधा  पहुंचाई वह दुशमन. मेरी प्रतिक्रिया मेरे स्वयं के परिवार से हैं , क्योकि मेरा परिवार संस्कारित और मर्यादित हैं ऐसी ऊंटपटांग कोई परिधान नहीं पहनता और न कोशिश करता .
फटे कपडे गरीबी की निशानी हैं वह भी आर्थिक और मानसिक .पहनंने वाले पूरे कपडे क्यों नहीं पहनना चाहते .आजकल फ़िल्मी दुनिया में अभिनेत्रियां अपने शरीर में डेढ़ भाग ढांकना चाहती हैं पता नहीं उतने से भी क्यों परहेज़ रखते हैं .क्या उससे कम में भी काम चल सकता ?क्या सार्वजनिक स्थल या पार्टी में या माँ बाप परिवार के सामने पहन सकती .
खाना पीना पूजा पाठ पहनना ओढ़ना व्यक्तिगत स्वतंत्रता हैं पर उसे सार्वजनिक नहीं करता .हम सब हमाम में नंगे हैं पर खुले में क्यों नहीं .
वैसे हम लोग त्वचा /चर्म/काम रोग विशेषज्ञ हैं हम   चर्म ही देखना चाहते हैं और चर्म में सात पर्ते होती हैं और यदि स्वयं की त्वचा रोग ग्रस्त हो जाए तो स्वयं उससे घृणा करना चाहिए
एक बार बहुत बरसात हो रही थी और चिड़िया अपने घोसले में बैठी थी ,उसी समय एक बन्दर भीगता हुआ आया तो चिड़िया  बोली  भैया क्यों पानी में भीगते हो ,हमारे जैसा एक घोसला बना लिया करो जिससे पानी से भीगने से बच सको ,इस पर बन्दर को गुस्सा आया और उसने चिड़िया का घोसला उखाड़ कर फेंक दिया .इसका मतलब सलाह उनको दो जो माने .बात एक अभिनेत्री ,स्त्री .माँ ने दी तो उतना बतंगड़ नहीं  मच पाया ,यदि यही बात किसी   नेता   ,अभिनेता  ,सज्जन के कहा होता तो वह तूफानी विवाद बन जाता .बात कितनी सही है या गलत यह व्यक्ति की व्यक्तिगत रूचि पर  निर्भर हैं पर पोशाक/परिधान /ड्रेस युक्तिसंगत होना चाहिए .
परिधान /ड्रेस का अपना महत्व होता हैं हर सेवा की अलग अलग पोशाक होती हैंजिससे उसकी पहचान होती हैं .मिलिट्री .पुलिस .वकील डॉक्टर नर्स आदि की अलग लग पोशाक होने से उनकी सुगमता से पहचान होती हैं .ड्रेस जब छात्र जीवन में पहनते थे तब उस समय गरीब अमीर का कोई भेदभाव नहीं होता था .आज भी स्कूल कॉलेज में यूनिफार्म  पर क्यों जोर दिया जाता हैं .जिससे समानता  का भाव रहता हैं . वैसे ही यूनिफार्म की अपनी योग्यता होती हैं .
आज मंदिरों में महिलाएं लड़कियां ऐसी अभद्र ड्रेस पहनकर जाती हैं जिससे दर्शनार्थी भगवन के दर्शन बाद में पहले उनको या उनकी ड्रेस को देखते हैं ,हर मंदिर में जाने की अपनी ड्रेस कोड होता हैं पर आज समाज में कोई भी प्रकार का नियंत्रण न होने से कोई भी कोई भी ड्रेस पहनकर जाते हैं और फिर कोई भी घटना होने पर वे ही प्रभावित होती हैं .
ड्रेस हमेशा ऐसी होना चाहिए जो समयानुकूल हो ,उचित अवसर पर उचित और सुविधाजनक हो .कभी कभी ऐसी ड्रेस पहनी जाती हैं की वे स्वयं असुविधा महसूस करती हैं .छोटी ड्रेस होने से पहनने वाले स्वयं परेशां होती हैं और देखने वाले भी असहज महसूस होते हैं .बहुत अधिक ठण्ड पड़ने पर भी महिलाये अपने प्रदर्शन के कारण ऐसी ड्रेस पहनती हैं की देखने वालों को गर्मी  महसूस होने लगती हैं पर उन्हें ठण्ड नहीं लगती .
अभिनेत्री चटर्जी ने कहा वह बहुत उचित और सटीक हैं की आज हमारे यहाँ साड़ी ,सलवार सूट ,आदि जैसी जो ड्रेस हैं जो बहुत शालीनता का द्योतक होता हैं .आज टाइट जीन्स के कारण जो अंगों का उभार करती हैं और उपांग पर भी ऐसी टाइट ड्रेस होने से उनमे वे असहज महसूस करती हैं .
सामाजिक /धार्मिक कार्यक्रमों में एंकर को और वहां पर काम करने वालों को भी समयानुकूल और वातावरण के अनुसार ड्रेस पहनना चाहिए .ड्रेस अपनी अपनी इच्छा अनुसार पहनना चाहिए और उसमे कोई किसी का प्रतिबन्ध नहीं हैं पर वह स्व विवेक के साथ पहने जिससे किसी को कटाक्ष न करना पड़े .
आखिर अभिनेत्री को इस प्रकार की टिप्पणी क्यों करना पडी ? क्या यह टिप्पणी उनके द्वारा की गयी वह उचित हैं या अनुचित ?क्या यह टिप्पणी अनुकरणीय हैं या नहीं ?इससे सामाजिक व्यवस्था में कोई विपरीत प्रभाव पड़ेगा या नहीं ?यह टिप्पणी का क्या दूरगामी प्रभाव होना चाहिए .?
वाणी से मनुष्य का व्यक्तित्व समझ में आता हैं
परिधान से मनुष्य का चरित्र समझ में आता हैं
जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन
जैसा पियोगे पानी वैसी होगी वाणी
जब युवा जन बनेगे स्वयं माता पिता
तब समझ में आता हैं उनकी सुरक्षा
(लेखक-विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन /)

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