कोलकाता । पश्चिम बंगाल और असम के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की चुनावी रणनीति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द सिमटती जा रही है। दोनों राज्यों में प्रदेश नेतृत्व के कामकाज से ज्यादा प्रधानमंत्री के चेहरे और केंद्र के कामकाज को बीजेपी प्रमुखता दे रही है। पार्टी घुसपैठ और बांग्लादेशियों के मुद्दे पर लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रही है कि केंद्र के साथ राज्य में भी सरकार बनने पर इस समस्या को हल कर लिया जाएगा। असम और पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार चरम पर है। 27 मार्च को पहले चरण का मतदान होना है। ऐसे में बीजेपी की रणनीति अब पूरी तरह से बूथ आधारित होती जा रही है, जिसमें मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाकर अपने पक्ष में मोड़ना शामिल है। पार्टी की कोशिश प्रधानमंत्री के इर्द-गिर्द चुनाव को रखकर जनता का भरोसा जीतना है। बीजेपी का मानना है कि मोदी की छवि और कामकाज को लेकर जनता में भरोसा बना हुआ है और उसे इसका लाभ मिलेगा। असम में बीजेपी की सरकार है और उसने अपने पांच साल के कामकाज को प्रमुखता से रखा भी है। लेकिन संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मुद्दे पर राज्य सरकार सीधे सामने न आकर केंद्र और प्रधानमंत्री मोदी के जरिये लोगों के बीच आ रही है। वह लोगों को भरोसा दिला रही है कि मोदी सरकार के रहते इस समस्या का सही हल निकाल लिया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक बीजेपी को इस बार असम में कड़ी चुनौती मिल रही है। एक तो विपक्षी गठबंधन से सीधा मुकाबला है। दूसरी तरफ, सीएए और एनआरसी को लेकर जनता के बीच भ्रम की स्थिति है। उधर, पश्चिम बंगाल में बीजेपी को ममता बनर्जी के मुकाबले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे और केंद्र सरकार के कामकाज पर ही भरोसा है। राज्य में उसके नेता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि ममता के केंद्र से टकराव के कारण ही विकास बाधित हुआ है। प्रधानमंत्री हर रैली में राज्य के लोगों को भरोसा दिला रहे हैं कि बदलाव के साथ वह खुद खड़े हुए हैं। वह राज्य को वामपंथी दलों और तृणमूल कांग्रेस के लंबे शासनकाल के बाद एक नया शासन देने की बात कर रहे हैं, जिससे राज्य का विकास तेजी से हो सके। बंगाल में बीजेपी के पास ऐसा कोई नेता भी नहीं है, जिसकी पूरे राज्य में अपील हो। ऐसे मेंं प्रधानमंत्री के चेहरे पर ही पार्टी की सारी उम्मीदें टिकी हुई हैं।
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बंगाल ही नहीं असम में भी फंसी दिख रही बीजेपी