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बच्चों को 21वीं सदी का कौशल सिखाना राष्ट्र की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण,अपने बच्चों को जॉब सीकर की बजाय जॉब प्रोवाइडर बनाने की जरूरत: सिसोदिया 

बच्चों को 21वीं सदी का कौशल सिखाना राष्ट्र की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण,अपने बच्चों को जॉब सीकर की बजाय जॉब प्रोवाइडर बनाने की जरूरत: सिसोदिया 

नई दिल्ली । दिल्ली के उपमुख्यमंत्री एवं शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया ने किंग्स कॉलेज, लंदन द्वारा आयोजित 'दा इंडिया सीरीज़' के पैनल डिस्कशन में भाग लिया,जहाँ उन्होंने दिल्ली में हुई शिक्षा सुधारों पर विस्तृत चर्चा के दौरान कहा कि शिक्षा समाज में बदलाव लाने और देश की तरक़्क़ी के लिए सबसे शक्तिशाली साधन है। इसलिए शिक्षा हमेशा से हमारी पहली प्राथमिकता रही है। हमनें अपने बजट का 26% तक हिस्सा शिक्षा को दिया ताकि जर्जर हो चुके स्कूलों के बुनियादी ढाँचे को सुधार सके और अपने शिक्षकों का प्रोफ़ेशनल डेवेलपमेंट कर सके। इसका नतीजा रहा कि आज दिल्ली के सरकारी स्कूलों में विश्वस्तरीय इमारतें बन चुकी है जहां बच्चों की पढ़ाई के लिए सभी सुविधाएं मौजूद है। हमनें अपने शिक्षकों की कैपिसिटी बिल्डिंग के लिए उन्हें कैंब्रिज, हॉवर्ड, फ़िनलैंड, सिंगापुर जैसे देशों में भेजा। इन सबसे हमारे स्कूलों के बच्चों के बोर्ड के नतीज़े बेहतर आने लगे लेकिन बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने का हमारा विज़न केवल यही तक सीमित नहीं है।
दिल्ली सरकार द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और पाठ्यक्रम में बदलाव लाने की बात करते हुए, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, “हमारे देश में सबसे बड़ी चुनौती गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना है। वर्तमान में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सिर्फ़ रटकर बेहतर अंक लाने तक सीमित है। हमें इसे बदलने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि यदि हम भारत की वर्तमान स्थिति के बारे में बात करें, तो शिक्षा का मूल आधार बाजार में नौकरियों के लिए छात्रों को तैयार करना है, लेकिन ज्यादातर समय, नियोक्ता उनके परिणामों से खुश नहीं होता है क्योंकि आज एक छात्र वर्तमान की शिक्षा व्यवस्था से जो सीख रहा है, उसमें तथा नवाचार और बाजार के मांग के लिए आवश्यक प्रतिभा के बीच एक अंतर है। हमें अपने बच्चों में एंत्रप्रेन्योर माइंडसेट और 21वीं सदी के कौशलों को विकसित करने की ज़रूरत है। इस अंतर को खत्म करने के लिए दिल्ली सरकार ने अपने स्कूलों में एंत्रप्रेन्योर माइंडसेट करिकुलम की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य बच्चों में रिस्क लेने की क्षमता के साथ-साथ उनमें लीक से अलग हटकर सोचने की क्षमता को बढ़ावा देना है। यह पाठ्यक्रम हमारे बच्चों को 'जॉब सीकर' की जगह 'जॉब प्रोवाइडर' बनायेगा और वे देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में अपना योगदान देंगे। उन्होंने कहा कि 'हमने स्वयं, समाज और राष्ट्र के प्रति सामाजिक-भावनात्मक जागरूकता को प्रोत्साहित करने के लिए अपने स्कूलों में हैप्पीनेस पाठ्यक्रम की शुरुआत भी की।' ईएमसी और हैप्पीनेस करिकुलम के माध्यम से,  छात्र की सोचने की क्षमता में बदलाव होगा और इसका समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।'
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि दिल्ली के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की दिशा में सरकार मूल्यांकन व्यवस्था में भी बदलाव ला रही हैं। इस दिशा में दिल्ली सरकार दिल्ली एजुकेशन बोर्ड की शुरुआत करने जा रही है। इस बोर्ड द्वारा छात्रों का साल भर लगातार चलने वाला व्यापक मूल्यांकन किया जाएगा ताकि विद्यार्थियों के कौशल और प्रतिभा को पहचान कर उन्हें और निखारा जा सके और विद्यार्थियों का एक समग्र लर्नर प्रोफाइल विकसित किया जा सके। इसके साथ-साथ हमारा उद्देश्य दिल्ली के विद्यार्थियों के लिए कौशल शिक्षा भी सुनिश्चित करना है जिससें उनके लिए रोजगार के सार्थक अवसर उपलब्ध हो सके। इसके लिए हमनें दिल्ली कौशल और उद्यमिता विश्वविद्यालय की स्थापना की है।”
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली के स्कूलों में पायलट किये जा रहे देशभक्ति पाठ्यक्रम के विषय मे संबोधित करते हुए कहा की “ देश की तरक्की के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है। उन्होंने कहा कि देशभक्ति पाठ्यक्रम के द्वारा, हम दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले प्रत्येक बच्चे के भीतर देशभक्ति और राष्ट्रवाद की भावना को जगाना चाहते हैं। हम बच्चों में यह भावना जगाना चाहते हैं कि देशभक्ति का अर्थ समानता है। हम चाहते हैं कि हमारे स्कूलों में पढ़ने वाला हरेक छात्र वर्ग, जाति और लिंग की परवाह किए बिना राष्ट्र और उसके लोगों के लिए प्यार, सम्मान और स्नेह की भावना रखे। आप कह सकते हैं कि शिक्षा का अर्थ है: कानून, व्यवसाय, कला, रक्षा के बारे में सीखना लेकिन शिक्षा हमें अहिंसा भी सिखाती है, यह शांति और सद्भाव बनाए रखना भी सिखाती है। और देशभक्ति पाठ्यक्रम के द्वारा हम अपने विद्यार्थियों में इन्हीं विचारों को विकसित करना चाहते है।
उपमुख्यमंत्री ने 'फ्यूचर ऑफ वर्क' के विषय पर अपने विचारों को रखते हुए कहा कि,  21 वीं शताब्दी में, चौथी औद्योगिक क्रांति के आगमन के साथ, कार्य का भविष्य आर्टिफिशल इंटेलीजेंस, मशीन लर्निंग और डिजिटल क्रांति से जुड़ा होगा। हमें यह पहचानने और स्वीकार करने की ज़रूरत है कि अगले कुछ वर्षों में, छात्र और संस्थान एक-दूसरे के साथ नहीं, बल्कि रोबोट के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे।उन्होंने कहा कि मनुष्य की क्षमताएं विस्तारवादी हैं। हमारे पास बदलती परिस्थितियों की कल्पना करने, महसूस करने और न्याय करने की क्षमता है, जो हमें अल्पकालिक से दीर्घकालिक चिंताओं में बदलने में मदद करती है। और यही हमें करने की जरूरत है। हमें अपनी क्षमताओं का उपयोग करने के लिए भविष्य के विचारों और कौशल का निर्माण करना होगा जो हमारा प्रतिस्थापित नहीं करेंगे बल्कि तकनीक के साथ काम करने में हमारी मदद करेंगे। हमारी शिक्षा को छात्रों का इस तरह से निर्माण करने की आवश्यकता है कि हम समाज के विकास के लिए अपरिहार्य बने रहें।”
डिजिटल शिक्षा के संदर्भ में दिल्ली सरकार, दिल्ली का पहला वर्चुअल मॉडल स्कूल स्थापित करने का भी लक्ष्य बना रही है। इसके संदर्भ में, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि, “दिल्ली में एक वर्चुअल मॉडल स्कूल की शुरुआत की जाएगी जिसमें Anywhere living, Anytime learning, Anytime testing की सुविधा उपलब्ध होगी।
वर्चुअल मॉडल स्कूल एक ऐसा स्कूल होगा जिसमें कोई बुनियादी ढांचा या इमारत तो नही होगा लेकिन इसमें एक स्कूल में होने वाली सभी फीचर्स शामिल होंगे। जैसे कि बच्चें, शिक्षक, ट्रेचिंग लर्निंग प्रक्रिया, मूल्यांकन आदि शामिल है। कहने के लिए यह एक वर्चुअल स्कूल होगा लेकिन इसमें बच्चे समुदाय में बने शिक्षण केंद्रों के सहयोग से अपने शिक्षकों से प्रत्यक्ष रूप से भी जुड़ पाएंगे। ये केंद्र बच्चों को अपने साथियों के साथ पढ़ने और सीखने का मौका देगा और उनका समाजीकरण करने में मददगार होगा।
दिल्ली सरकार शिक्षा में गुणवत्ता और आमूल-चूल परिवर्तन लाने की राह पर है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के सिफारिसों को ध्यान में रखते हुए  स्कूली शिक्षा, शिक्षण-अधिगम और सामुदायिक सहभागिता में परिवर्तनशील बदलावों को लाने में दिल्ली सबसे आगे रही है। एनपीई 2020 पर चर्चा करते हुए उपमुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विचार का विषय ये है कि यह कार्यान्वयन का मार्ग प्रदान नहीं करता है। इसमें समय और संसाधनों का कोई रोडमैप नहीं है। ऐसे आसन्न तत्वों के बिना, एनईपी को आम तौर पर एक इच्छा से भरे ड्राफ्ट के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। हम इस ड्राफ्ट को समझ चुके हैं, अब हमें इसके कार्यान्वयन के लिए स्ट्रेटेजी विकसित करने की जरूरत है।
इंडिया सीरीज़ किंग्स कॉलेज, लंदन द्वारा आयोजित एक विशिष्ट पैनल चर्चा है, जो विभिन्न देशों के वैश्विक नेताओं को शिक्षा, विकास और परिवर्तन के विषयों पर अपने विचार रखने के लिए एक साथ लाती है।
 

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