वॉशिंगटन । कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि बिजली कड़कने का असर इंसानों के व्यवहार पर भी पड़ता है। बिजली कड़कने से कम फ्रीक्वेंसी की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स पैदा होती हैं और इन्हें ही इस असर के पीछे कारण माना जा रहा है। इन तरंगों को स्चुमेन्न रिसोनेंस कहते हैं। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के मुताबिक हर सेकंड में हजारों तूफानों के असर से ये तरंगें वायुमंडल के निचले आइओनोस्फीयर में 60 मील ऊपर होती हैं। आइओनोस्फीयर में चार्ज्ड पार्टिकल्स होते हैं जो सूरज से आने वाले रेडिएशन के कारण न्यूट्रल गैस ऐटम्स से अलग होते हैं। इससे पैदा हुई इलेक्ट्रिक कंडक्टिविटी इन तरंगों को पैदा करती है। ये तरंगें एक बीट में धरती का चक्कर लगाती हैं। इनका इस्तेमाल धरती के इलेक्ट्रिक एनवायरन्मेंट और मौसम को स्टडी करने के लिए किया जाता है। इनकी बेस फ्रीक्वेंसी 7.83 हर्ट्ज को 'धरती की धड़कन' बताया गया है।
रिसर्चर्स का कहना है कि 6-16 हर्ट्ज के बैंड के अंदर इन तरंगों और इंसान के दिमाग की ऐक्टिविटी में संबंध देखा गया है। साल 2016 में कनाडा की लॉरेन्शियन यूनिवर्सिटी की बिहेवियरल न्यूरोसाइंस लैबरेटरी में पाया गया कि 3.5 साल में 184 लोगों पर किए गए एक्सपेरिमेंट में 238 आंकड़ों में इंसान के दिमाग और धरती-आइनोस्फीरिक कैविटी के पैटर्न में समानता देखी गई। स्टडीज में पाया गया है कि इन तरंगों की फ्रीक्वेंसी का संबंध दिमाग की अलग-अलग तरंगों से जुड़ा हो सकता है।
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बिजली कडकने का असर इंसानों के व्यवहार पर भी -तरंगों की फ्रीक्वेंसी का संबंध है दिमाग से