भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर होली के बाद पड़ने वाली द्वितीया तिथि को देशभर में ‘भाई-दूज’ का त्योहार मनाया जाता है। भाई-बहन के पारस्परिक प्रेम का प्रतीक है भाई-दूज।
वैसे देशभर में इसे अलग-अलग तरह से मनाया जाता है लेकिन सब जगह एक बात समान होती है, कि बहन इस दिन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसे मिठाई खिलाती है और बदले में भाई अपनी बहन को तोहफ़े के साथ उसकी रक्षा करने का वचन देते हैं।
होली के बाद पड़ने वाली द्वितीया तिथि को देशभर में ‘भाई-दूज’ का त्योहार मनाया जाता है। भाई-बहन के पारस्परिक प्रेम का प्रतीक है भाई-दूज।
यह भाई बहन के प्रेम का त्यौहार हैं। इसमें बहन अपने भाई को घर बुलाती हैं, उसे तिलक करती हैं, भोजन करवाती हैं और उसकी मंगल कामना करती हैं। इस दिन भाई बहन यमुना नदी में स्नान कर यमराज की पूजा करते हैं, तो उनका भय समाप्त होता हैं। कहा जाता हैं इस दिन अगर यमुना नदी में स्नान किया हो और अगर सांप भी काट ले, तो कोई असर नहीं होता।
इस दिन बहने जल्दी से स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनती हैं। फिर ऐपन बनाकर उससे अपने हाथो के छापे बनाकर उनकी पूजा करती हैं।
कुछ बहने प्रथानुसार ऐपन से सात बहनों एवम एक भाई की आकृति बनाती हैं, इसके साथ ही एक तरफ सांप, बिच्छु आदि विपत्ति के रूप में बनाती हैं। फिर कथा पढ़ कर मुसल से भाई पर आने वाली विपत्ति को मार कर उसकी रक्षा करते हैं। इस प्रकार अपने भाई की खुशहाली के लिए बहने भगवान से प्रार्थना करती हैं।
पूजा के बाद बहने अपने भाई को तिलक कर आरती उतारती हैं, इसके बाद ही स्वयं कुछ खाती हैं।
यमराज एवम यमुना दोनों भाई बहन सूर्य देव और छाया की संताने हैं। दोनों में बहुत प्रेम था। बहन हमेशा अपने भाई को मिलने बुलाती, लेकिन कार्य की अधिकता के कारण भाई बहन से मिलने नहीं जा पाता। एक दिन यमराज नदी के तट पर गया, वही उसकी मुलाकात अपनी बहन यमुना से हुई। उससे मिलकर बहन बहुत खुश हुई। ख़ुशी में बहन ने अपने भाई का स्वागत किया, उसे मिष्ठान खिलायें। वह दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया का दिन था। तब ही यमी ने कहा कि भाई यमराज आज के बाद प्रति वर्ष आप मुझसे इसी दिन मिलने आओगे। तभी से यह दिन भाईदूज के नाम से जाना जाता हैं।
कहते हैं इस दिन जो भी भाई यमुना नदी का स्नान करता हैं, उसे उस दिन मृत्यु का भागी नहीं बनना पड़ता। इस दिन उसके सारे संकट टल जाते हैं।
बहन करती हैं भाई का दुलार,उसे चाहिये बस उसका प्यार
नहीं करती किसी तौहफे की चाह,बस भाई को मिले खुशियाँ अथाह
हे ईश्वर बहुत प्यारा हैं मेरा भाई,मेरी माँ का दुलारा हैं मेरा भाई
न देना उसे कोई कष्ट भगवन,जहाँ भी हो ख़ुशी से बीते उसका जीवन
न सोना न चांदी न कोई हाथी की पालकी
बस मेरे से मिलने आओ भाई प्रेम से बने पकवान खाओ भाई
(लेखक- विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन )
आर्टिकल
भैया दूज की पौराणिक कथा