असि --शस्त्र -धारण ,मषि---लेखन कला ,कृषि -- खेती ,विद्या ,,वाणिज्य-व्यापार और शिल्पकला इन ६ साधनों का उपदेश दिया हैं .
कृषिः पशुपालनं वणिज्या च वार्ता वैश्यानाम (नीतिवाक्यामृत १/८)
खेती ,पशुपालन और व्यापार करना यह वैश्यों की जीविका का साधन हैं .इसका आशय यह हैं
हमारा व्यापार अहिंसात्मक हो .खेती रसायन रहित हो .हरित क्रांति के कारण खेती में रासायनिक
उर्वाआओ का अंधाधुंध उपयोग होने से कृषि उत्पादन बहुत बढ़ा पर उसके साथ रसायन जनित रोगों की वृद्धि हुई .इसी प्रकार श्वेत क्रांति के समय अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए इन्जेशन का उपयोग किया .इसके बाद पिंक क्रांति से मांस का निर्यात बहुत हुआ इसके बाद सर्कार द्वारा जो मधु उत्पादन कर निर्यात करने की योजना बहुत ही अधिक हिंसक और नरकगामी हैं .जो करेगा ,जो अनुमोदन करता हैं और जो करवाता हैं वे सब नरक गामी हैं .
मधु अभक्ष्य ---मख्खी ,भौरें ,कुंता की लार से व उल्टियां से बना होता हैं .मधुमक्खी फूलों का रस सूंघती हिन् और उसके छत्ते में आकर ओकती हैं .मधुमक्खियों के छत्ते के नीचे धुआं करके मक्खियों को उड़ाया जाता हैं .मधुमक्खियों के छत्ते को निचोड़कर उसमे से मधु निकाला जाता हैं .छत्ते को निचोड़ने से शक्तिहीन मक्खियां जो धुंए के प्रभाव से उड़ नहीं पाई तथा उनके बच्चे और अंडे भी नष्ट हो जाते हैं .इनकी अशुभि मधु मिल जाती हैं .रस के जंतु भी उसमे उतपन्न होते हैं .इस प्रकार मधु में बहुत जीव हिंसा होने से वह नरक का कारण बनता हैं इसलिए खाना ,पालन करना नरक का कारण हैं .एक बून्द शहद में हजारो हजार सूक्ष्म जीवों की हिंसा होती हैं
मधुमोम या मधुमक्खियों का मोम, एपिस वंश की मधुमक्खियों द्वारा उनके छत्ते में उत्पादित एक प्राकृतिक मोम है। प्रत्येक श्रमिक मक्खी (मादा) के उदर में उपस्थित आठ मोमोत्पादक ग्रंथियों द्वारा मोम का उत्पादन किया जाता है। इन ग्रंथियों का आकार श्रमिक की आयु और उसकी दैनिक उड़ानों के दौरान इनमें आयी क्षीणता पर निर्भर करता है। ताजा उत्पादित मोम पारदर्शी और रंगहीन होता है पर मधुमक्खियों द्वारा चबाये जाने से यह अपारदर्शी हो जाता है। मधुकोश के इस सफेद रंग के मोम को उसका पीला या भूरा रंग, इसमें मिलने वाले पराग तेलों और पादपांश के कारण होता है।इस कारण सूक्ष्म जीवों की बहुत अधिक हिंसा होती हैं
पीएम मोदी ने किसानों से कहा- मधुमक्खी पालन शुरू करें, इनकम बढ़ेगी और जीवन में मिठास भी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण की वकालत की है। "भारत के कृषि जगत में आधुनिकता... ये समय की मांग है। बहुत देर हो चुकी है। हम बहुत समय गंवा चुके हैं।" उन्होंने 'मधुमक्खी पालन' से जुड़े देश के कई किसानों की कहानी साझा करते हुए अपील की कि लोग देश में 'शहद क्रांति' की शुरुआत करें। मोदी ने कहा कि 'जीवन के हर क्षेत्र में नयापन, आधुनिकता... अनिवार्य होती है वरना वही कभी-कभी हमारे लिए बोझ बन जाती है।'
किसानों की आय बढ़ाने के लिए, परंपरागत कृषि के साथ ही, नए विकल्पों को, नए-नए इनोवेशंस को अपनाना भी उतना ही जरूरी है। श्वेत क्रांति के दौरान देश ने इसे अनुभव किया है। अब बी फार्मिंग (मधुमक्खी पालन) भी ऐसा ही एक विकल्प बनके उभर रहा है। बी फार्मिंग देश में शहद क्रांति या स्वीट रिवॉल्यूशन का आधार बना रही है। बड़ी संख्या में किसान इससे जुड़ रहे हैं, इनोवेशन कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि 'हनी बी फार्मिंग में केवल शहद से ही आय नहीं होती, बल्कि बी वैक्स भी आय का एक बहुत बड़ा माध्यम है। फार्मा इंडस्ट्री, फूड इंडस्ट्री, टेक्सटाइल और कॉस्मेटिक इंडस्ट्री... हर जगह बी वैक्स की डिमांड है। हमारा देश फिलहाल बी वैक्स का आयात करता है लेकिन हमारे किसान अब ये स्थिति तेजी से बदल रहे हैं।' मोदी ने अपील करते हुए कहा कि "मैं चाहता हूं देश के ज्यादा-से-ज्यादा किसान अपनी खेती के साथ-साथ बी फार्मिंग से भी जुड़ें। ये किसानों की आय भी बढ़ाएगा और उनके जीवन में मिठास भी घोलेगा।"
"हम अपने योग, आयुर्वेद, दर्शन न जाने क्या कुछ नहीं है हमारे पास जिसके लिए हम गर्व करते हैं गर्व की बातें करते हैं साथ ही अपनी स्थानीय भाषा, बोली, पहचान, पहनाव, खान-पान उसका भी गर्व करते हैं। हमें नया तो पाना है, और वही तो जीवन होता है लेकिन साथ-साथ पुरातन गंवाना भी नहीं है। हमें बहुत परिश्रम के साथ अपने आस-पास मौजूद अथाह सांस्कृतिक धरोहर का संवर्धन करना है, नई पीढ़ी तक पहुंचाना है।"
जिस राज्य में हिंसाजन्य उत्पादों से अपनी आमदनी बढ़ाता वह कभी भी सुख शांति नहीं प् सकता .जिस प्रकार अंडा ,मांस ,मछली चमड़ा का निर्यात कर आमदनी बढ़ा रहे हैंउससे अधिक धन रोगियों के इलाज़ में किया गया .
हम जितना अधिक अहिंसात्मक जीवन शैली अपनाएंगे तभी सुख शांति से रह पाएंगे .धन कमाने का लक्ष्य सुख प्राप्त करना होता हैं .धन की लालसा में जीव हिंसा उचित नहीं हैं .
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन"हम अपने योग, आयुर्वेद, दर्शन न जाने क्या कुछ नहीं है हमारे पास जिसके लिए हम गर्व करते हैं गर्व की बातें करते हैं साथ ही अपनी स्थानीय भाषा, बोली, पहचान, पहनाव, खान-पान उसका भी गर्व करते हैं। हमें नया तो पाना है, और वही तो जीवन होता है लेकिन साथ-साथ पुरातन गंवाना भी नहीं है। हमें बहुत परिश्रम के साथ अपने आस-पास मौजूद अथाह सांस्कृतिक धरोहर का संवर्धन करना है, नई पीढ़ी तक पहुंचाना है।"
जिस राज्य में हिंसाजन्य उत्पादों से अपनी आमदनी बढ़ाता वह कभी भी सुख शांति नहीं प् सकता .जिस प्रकार अंडा ,मांस ,मछली चमड़ा का निर्यात कर आमदनी बढ़ा रहे हैंउससे अधिक धन रोगियों के इलाज़ में किया गया .
हम जितना अधिक अहिंसात्मक जीवन शैली अपनाएंगे तभी सुख शांति से रह पाएंगे .धन कमाने का लक्ष्य सुख प्राप्त करना होता हैं .धन की लालसा में जीव हिंसा उचित नहीं हैं .
(लेखक--डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)
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