नई दिल्ली । सड़क को बंद करके विरोध, प्रदर्शन और आंदोलन किसी भी तरह से जायज नहीं हो सकता है। विरोध और आंदोलन जायज है लेकिन इसके नाम पर सड़क बंद कर लाखों लोगों की जिंदगी को नासूर बना देना सही नहीं है। आंदोलनकारियों को यह नहीं पता होता है कि उनका यह कदम आम लोगों की जिंदगी में कितनी दुश्वारियां लाता है। लोग अस्पताल नहीं पहुंच पाते, आफिस नहीं जा पाते, अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए एक्सट्रा समय लेकर चलना पड़ता है। दूसरे रास्तों पर ट्रैफिक बढ़ जाता है। इसके अलावा दर्जनों समस्याएं होती हैं सो अलग। आंदोलन के नाम पर सड़क बंद करने की समय सीमा तय होनी ही चाहिए। गाजीपुर और शाहीन बाग में सड़क बंद किए जाने से रोजाना खुद और अन्य लोगों की मुश्किलों व पीड़ा को देखकर नोएडा निवासी मोनिका अग्रवाल से रहा नहीं गया। उपरोक्त सवालों को उठाते हुए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली है, जिस पर नौ अप्रैल को सुनवाई होनी है। मोनिका अग्रवाल नोएडा की रहने वाली है। वो सिंगल पैरेंट हैं, वहीं उन्हें चिकित्सकीय दिक्कतें भी हैं। वह नोएडा सेक्टर 168 में रहती हैं और सेक्टर-63 में उनका कार्यालय है। एक कंपनी में मार्केटिंग प्रबंधक के रूप में कार्यरत मोनिका को आमतौर पर रोजाना दिल्ली, फरीदाबाद व गुरुग्राम जाना होता है। उन्होंने शाहीन बाग से लेकर गाजीपुर में सड़क बंद होने से उपजी पीड़ा को झेला है। गाजीपुर बार्डर पर अब भी समस्या बरकरार है। वह कहती हैं कि आंदोलन के नाम पर शाहीन बाग और गाजीपुर में सड़क बंद किए जाने का अब तक का समय जोड़ा जाए, तो यह लगभग एक साल बैठता है। समाधान कब होगा, इसका भी पता नहीं है। ऐसे में आंदोलन के नाम पर सड़क बंद करने की समय सीमा निर्धारित होनी चाहिए। अनावश्यक रूप से सड़क बंद करने वालों के लिए सजा व जुर्माने का प्रविधान होना चाहिए। उनका कहना है कि सड़क बंद करने का चलन दिल्ली के शाहीन बाग से शुरू हुआ, जो दिल्ली के विभिन्न बॉर्डरों पर बदस्तूर जारी है। हालत ऐसी ही रही तो एक दिन पूरे देश में सड़कों को बंद किए जाने का सिलसिला शुरू हो जाएगा।