नई दिल्ली । 26 जनवरी को किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा ने यूपी बॉर्डर पर किसान आंदोलन के खत्म होने की कहानी लिख दी थी। वहीं, हिंसा के 24 से 48 घंटे के भीतर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता नेता राकेश टिकैत के आंसुओं से आंदोलन में ऐसा सैलाब आया कि किसान आंदोलन की दशा और दिशा ही बदल गई। भाकियू नेता राकेश टिकैत किसान आंदोलन के केंद्र में आ गए। इसके बाद संयुक्त किसान मोर्चा के सभी नेता एक तरफ और भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत एक तरफ। लेकिन 2 महीने के बाद हालात बदल गए हैं। किसान आंदोलन 360 डिग्री घूम गया है। आलम यह है कि सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को कोसने वाले राकेश टिकैत का जलवा कम हो रहा है और किसान आंदोलन तकरीबन खात्मे की ओर है। बेशक किसान आंदोलन और राकेश टिकैत दोनों ही अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हों, लेकिन 2 महीने पहले तीनों नए केंद्रीय कृषि कानूनों को लेकर केंद्र के साथ गतिरोध के बीच गाजीपुर बॉर्डर पर जब राकेश टिकैत की आंखों में आंसू आए तो इससे उनके किसान समर्थक भी भावुक हो गए थे। हालात यह बन गए थे कि ग्रामीण भावनाओं से अभिभूत होकर, बच्चों सहित पानी, घर का बना भोजन और छाछ लेकर प्रदर्शन स्थल पर पहुंचे। तब राकेश टिकैत ने घोषणा की थी कि वह तभी पानी पीएंगे जब किसान इसे लाएंगे क्योंकि स्थानीय प्रशासन ने विरोध स्थल पर पानी के टैंकरों को रोक दिया था। इसके बाद दो महीने बाद फिर हालात बदल गए हैं। न तो राकेश टिकैत उतने प्रभावी रह गए हैं और न ही किसान आंदोलन।जनवरी के अंतिम सप्ताह में पत्रकारों के सवालों के जवाब देने के दौरान भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत का रोना और उनके आंसुओं ने किसान आंदोलन में जबरदस्त भावना पैदा की। कभी राकेश टिकैत सिर्फ यूपी गेट पर ही सिमटे थे, लेकिन अब आलम यह है कि वह देशभर में किसानों के सम्मेलनों और पंचायतों में जा रहे हैं। यहां तक कि उन्हें बराबर तवज्जो भी मिल रही है। वहीं, पिछले सप्ताह राकेश टिकैत पर राजस्थान के अलवर जिले में हमला हुआ, लेकिन इसकी सिर्फ हलचल हुई। यहां तककि संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से भी कोई खास बड़ा बयान नहीं आया। किसानों में उस तरह की प्रतिक्रिया नहीं हुई, जैसे पहले हुई थी। देश के बड़े किसान नेताओं में शुमार स्वर्गीय महेंद्र सिंह टिकैत के दूसरे नबंर के बेटे राकेश टिकैत किसी समय में दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल थे। अपने तकरीबन एक दशक के राजनीतिक सफर के दौरान उन्होंने चुनावों में भी हाथ आजमाया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। वहीं, किसान आंदोलन ने राकेश टिकैत को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बाहर निकलकर राष्ट्रीय सुर्खियों में जगह दी। इसमें भी कोई शक नहीं है कि राकेश टिकैत वर्तमान समय में सबसे शक्तिशाली किसान नेता के रूप में उभरे हैं।
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आंखों से आंसू छलकने से आया था सैलाब अब हमला' ने खोल दी लोकप्रियता की पोल