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(चिंतन-मनन) सर्वव्यापी है आत्मा

(चिंतन-मनन) सर्वव्यापी है आत्मा

केवल वह जो क्षणिक है, छोटा या नर है, उसे ही सुरक्षा की आवश्यकता है; जो स्थायी है, बड़ा या विशाल है, उसे सुरक्षा की जरूरत नहीं। सुरक्षा का अर्थ है समय विशेष को लंबा कर देना; इसीलिए सुरक्षा परिवर्तन में बाधक भी होती है। पूर्ण सुरक्षा की स्थिति में रूपांतरण नहीं हो सकता। सुरक्षा के बिना इच्छित रूपांतरण नहीं हो सकता। एक बीज को पौधे में परिवर्तित होने के लिए सुरक्षा चाहिए; एक पौधे के वृक्ष बनने के लिए सुरक्षा चाहिए। अत्यधिक सुरक्षा रूपांतरण में या तो सहायक हो सकती है या बाधक, इसीलिए रक्षक को यह समझ होनी चाहिए कि किस मात्रा तक उसे रक्षा करनी है।  
सुरक्षा और रूपांतरण- दोनों काल और समय के अनुसार होते हैं और समय से परे होने के लिए इन नियमों का सम्मान आवश्यक है। सुरक्षा एक विशेष समय और नर चीजों तक ही सीमित है। चिकित्सक कब तक किसी को स्वस्थ रख सकता है या बचा सकता है? सदा के लिए? नहीं। सत्य को किसी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं। शांति और खुशी को सुरक्षा की आवश्यकता नहीं, क्योंकि वे क्षणिक नहीं। तुम्हारे शरीर को सुरक्षा की आवश्यकता है, तुम्हारी आत्मा को नहीं; तुम्हारे मन को सुरक्षा की जरूरत है, स्वरूप को नहीं। आत्मा केवल मन और शरीर का समिश्रण नहीं है। आत्मा न मन है, न शरीर। शरीर के अस्तित्व का एकमात्र उद्देश्य है तुम्हें सचेत करना कि तुम कितने सुंदर हो; और तुमको जागरूक करना कि तुम जिन आदर्शों का सम्मान करते हो, उन सभी को तुम अपने जीवन में ढालकर, अपने चारों ओर एक दिव्य-जगत की सृष्टि करो। जो योगासन तुम करते हो, वह शरीर के लिए और जो ध्यान करते हो, वह मन के लिए है।  
शांत हो या विचलित; मन, मन ही रहता है। रोगी हो या निरोगी; शरीर, शरीर ही रहता है। आत्मा सर्वव्यापी है। शरीर के किसी अंग को उत्तेजित करने से मजा आता है, सुख का आभास होता है। जब आत्मा का उद्दीपन होता है, प्रेम जागृत होता है। प्रेम अनंत है, परंतु सुख सीमित है। प्राय: व्यक्ति समझते हैं कि सुख ही प्रेम है। सुख और प्रेम के फर्क को केवल भाग्यशाली ही समझ सकता है।  
 

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