आज यह समाचार पढ़ने मिल की वन विभाग के एक अदने से कर्मचारी ने अपने विभाग के मंत्री के द्वारा निर्मित फर्नीचर जो सागौन के पेड़ बिना कटे बनाये गए हैं ,जंगल वाले गांव से भोपाल उनके बंगले की सजावट के लिए आ रहा था ,निकासी के दौरान कर्मी ने अपनी आदत के अनुसार उसने सुविधा शुल्क की मांग की जो गलत नहीं हैं .कारण हमारे देश में अन्य--आय को असामाजिक नहीं माना जाता हैं .इसमें मंत्री को गुस्सा क्यों आया ?हमारे देश में सब काम परंपरागत होता हैं
हमारे देश में क्या विश्व में घूंस का चलन सनातन से चला आ रहा हैं ,प्रकार बदल गए हैं पर घूंस घूंस होती हैं चाहे धन में ,स्त्री पुरुष में ,सामान में सामग्री में यानी अपनी ईमानदारी की कमाई से अतिरिक्त जो भी सुविधाएँ मिलती हैं वे अन्य आय यानि अन्याय मानी जाती हैं .आजकल भ्रष्टाचार शिष्टाचार में आ गया हैं .राजाओं महाराजाओं के यहाँ मुजरा के रूप में डलियों में सामन सोना चांदी भेट किया जाता था ,अब युगानुसार परिवर्तन होते रहते हैं .अब कोश स्विज़रलैंड के बैंकों में जमा होने लगा ,विदेशों में महल की खरीददारी होने लगे कही किसी को उपकृत करने के लिए खरीदी में लाभ देने लगते हैं कभी बैंकों के माध्यम से क़र्ज़ लेकर चार्वाक का सिद्धांत का सहारा लेकर विदेश चले जाते हैं .
आज ही समाचार आया की आई एल एंड ऍफ़ एस केपपूर्व उच्चतम अधिकारीयों ने लोन पास करने के बदले ली विदेश यात्राएं ,निजी विमान और हेलीकाफ्टर सेवाएं इसके अलावा विदेश में स्थित रिसॉर्ट्स और बंगलों के फ्लैट्स की आंतरिक साज सज्जा करवाना शामिल हैं . इस कंपनी का कुल क़र्ज़ ९० हजार करोड़ रपये से भी ज्यादा आँका गया हैं .
इसी तारतम्य में विजय माल्या ,सहारा ग्रुप, नीरव मोदी ,चौकसी आदि आदि न जाने अनजाने लोगों ने सरकार को चूना लगाया और आये दिन समाचार पत्रों में लोकायुक्त के छापों में कोई भी गरीब नहीं मिलता या निकलता .और जो पकडे नहीं जाते उनकी संख्या तो कई गुना हैं .इससे सरकार का कहना हैं की देश का पैसा देश में हैं और समाजवाद आ रहा हैं .
वैसे घूंसखोरी हमारे क्या विश्व में बंद नहीं हो सकती उसका कारण एक सामान्य फार्मूला हैं -- जब कोई आदमी किसी कार्यालय में आवेदन लेकर जाता हैं तो उसमे सबसे पहले आपत्ति लगाई जाती हैं उससे सामने वाले के ऊपर विपत्ति आती हैं फिर उससे सम्पत्ति मिलती हैं जिससे कर्मचारी या अधिकारी की संतुष्टि होती हैं और उससे पीड़ित को सफलता मिलती हैं .
आपत्ति ---विपत्ति -- संपत्ति --संतुष्टि -- सफलता यह हैं भ्रष्टाचार का फार्मूला ,
वर्षा के जल से कभी भी नदियों में बाढ़ नहीं आती जब तक की उसमे नाली और नालों का पानी न मिले. बेईमानी का धन दस वर्ष तक फलता फूलता हैं और ग्यारहवें वर्ष मूल सहित वापिस हो जाता हैं .कोई व्यक्ति मोटे होने के लिए शरीर में सूजन चढ़ा ले उससे अच्छा दुबला रहें .यह कोई नहीं कह रहा हैं बल्कि नीति वाक्य हैं .
कार्यार्थिनः पुरुषाण लँचा लुञ्चति !
कार्यार्थी पुरुषों को घूंसखोर अधिकारी लूटते हैं .
लंचचरां भूतवलिम न कुर्यात !
घूंसखोरी से संबंध रखने वाले प्रजा की बलि न करे !
लुञ्चलुञ्चा हि सर्वपातकनामागमनद्वाराम !
बलात्कारपूर्वक रिश्वतखोर समस्त पापों के आगमन का द्वार रूप होते हैं .
मातुः स्तनमपि लुञ्चन्ति लँचोपजीविनः !
रिश्वतखोरी से जीविका करने वाले अपनी माता का भी स्तन काट लेते हैं अर्थात अपने हितैषियों से भी रिश्वत ले लेते हैं फिर दूसरों से रिश्वत लेना तो साधारण बात हैं .
लंचेन कार्याभिरुद्धः स्वामी विक्रियते!
जिस राजा के यहाँ घूंस के कारण कार्य रुकता हो ,वह राजा घूंसखोरों के हाथ बिक जाता हैं ,अर्थात जिससे रिश्वत ली जाती हैं ,उसका अन्याय युक्त कार्य भी न्याययुक्त बताकर रिश्वतखोरों को सिद्ध करना पड़ता हैं ,जिससे स्वामी की आर्थिक क्षति होती हैं ,यही रिश्वतखोरों द्वारा स्वामी का बेचना समझना चाहिए .
प्रासाद्ध्वंसनें लोहकीलकलाभ इव लंचेन राज्ञोार्थलाभः !
घूंस-खोर आदि अन्याय द्वारा प्रजा से धन को प्राप्ति राजा के लिए उसी तरह की हैं जिस तरह महल गिराकर लोहे की कील प्राप्त करने में हैं अर्थात घूंसखोरी से राजा का राज्य नष्ट हो जाता हैं .
राज्ञो लंचेन कार्यकरणे कस्य नाम कल्याणम !
जो राजा घूंस-रिश्वत लेकर कार्य करता हैं उसके राज्य में किसका कल्याण हो सकता हैं .
देवतापियदि चौरेषु मिलति कुतः प्रजानां कुशलम !
क्योकि यदि देवता रूप राजा भी चोरों की सहायता करने लग जाय तो प्रजा का कल्याण कहाँ से होगा . जब रक्षक ही भक्षक हो जाये तब प्रजा का कल्याण किस प्रकार हो सकता हैं .
लंचनार्थापायं दर्शयन देशं कोषं मित्रं तन्त्रं च भक्षयती!
राजा के लिए घूंस से अर्थ -लाभ प्रदर्शित करने वाला अमात्य राजा के देश ,कोश ,मित्रौर सैन्य का भक्षण कर जाता हैं नष्ट कर देता हैं .
वर्तमान में केंद्र और सरकारें भ्रष्टाचार के खिलाफ लामबंद हैं जितना अधिक अंकुश उतना अधिक इसका चलन बढ़ता जा रहा हैं .जब गंगोत्री ही अपवित्र हैं तो गंगा कहाँ तक पवित्र होंगी .जब उच्चतम पदों पर आसीन स्वयं नहीं पर अपने अधीनस्थों से घूंस लेते हैं तब आम जनता की क्या हालत होती होंगी .जैसे अभी अलीबाबा ईमानदार कह सकते हैं पर उसे चालीस चोर उसी काम के लिए रखे जाते हैं .
यह असाध्य रोग हैं जिसका इलाज़ असंभव हैं .इसके लिए चिंता करने की जरुरत नहीं हैं .हां हम ज्ञाता द्रष्टा बनते हुए देखे और यह न सोचे की ईमानदार कौन हैं जिसको बेईमानी का अवसर नहीं मिला हो .
जय हो गणतंत्र की .जितना रोके उतना बढ़ेगा. इसे शिष्टाचार घोषित किया जाय .
(लेखक-डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन)
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(कटु सत्य-समसामयिक) रिश्वत खोर अपनी माता के भी स्तन काट लेते हैं !