कार्तिय माहात्म्य प्रवचनों में पं. रामनिवास ब्रजवासी जी ने कहा शरद ऋतु में की जाने वाली उपासनाओं से जहाँ चंद्र किरणों से प्राप्त होने वाले अमृत तत्व से देह का सिंचन होता है, वहीं सूर्य की रश्मियों की प्रचुर ऊर्जा से उस अमृत तत्व की शरीर में स्थिरता होती है इसीलिए कार्तिक मास में प्रात? पवित्र नदियों में स्नान कर भगवान विष्णु शालीग्राम स्वरूप की पूजा की जाती है।
इन दिनों ब्रजवासी जी कार्तिक माहात्म्य के माध्यम से श्रद्धालुओं को उपदेश दे रहे हैं। उन्होंने कहा भगवान विष्णु के सहस्रनाम का पाठ करने से मनुष्य के जीवन में संयम एवं धर्म में चलने की प्रेरणा मिलती है। जीवन को उन्नत बनाने में संयम का बहुत महत्व है। संयमी व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य को नहीं छोड़ता।
शालिग्राम पूजन में पंचामृत का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा गाय का दूध, दही, घी व शहद और शक्कर से शालिग्राम भगवान का अभिषेक करना चाहिए। वस्तुत: इन पांचों का मंत्रोच्चारण के साथ मिल जाना ही पाँच प्रकार के अमृतों का मिलना है।
इसमें तुलसीदल डाल देने के बाद यह चरणामृत बन जाता है जिसका प्रसाद में ग्रहण कर लेने पर सभी प्रकार की आधियाँ-व्याधियाँ अर्थात मानसिक रोग तथा शारीरिक रोग दूर हो जाते हैं। हमारी उपासना विधियाँ जहाँ मनुष्य को धार्मिक बनाती है वही शारीरिक-मानसिक रूप से स्वस्थ भी बनाती है।
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(चिंतन-मनन) संयम से जीवन की उन्नति