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आयुर्वेद के अनुसार जनपदोध्वंस 

आयुर्वेद के अनुसार जनपदोध्वंस 


वर्तमान में जो कोरोना नामक रोग का संक्रमण से पूरा विश्व भयाक्रांत हैं और निरंतर जीवन मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं ,इसके सम्बन्ध में आयुर्वेद में बहुत व्यापक दृष्टि से वर्णन किया हैं जो जानना जरूरी हैं।
तमुवाच भगवानात्रेय ----एवंसमनेवतामप्येभिरगिनवेश ! प्रकृत्यादिभोरवामणुष्याणां येन्ये भावाः सामन्यास्तद्वयगनताय समानकालः समानलिंगाश्च व्याधायोअभिनिवरर्माणा जनपदमुद्धवनश्यन्ति।ते खलिवमे भावाः सामान्या जनपदेषु भवन्तिः तदयायावायुःउदकं देशः ,काल इति.
भगवान् आत्रेय का उत्तर ---भगवान् आत्रेय ने अग्निवेश से कहा कि हे अग्निवेश !इस प्रकार प्रकृति आदि भावों  के भिन्न होते हुए भी मनुष्यों के जो अन्य भाव-सामान्य हैं उनके विकृत होने से एक ही  समय में ,एक ही समान लक्षण वाले रोग उतपन्न होकर जनपद को नष्ट कर देते हैं ,वे ये भाव जनपद में सामान्य होते हैं ---वायु ,जल ,देश और काल।
विकृत वायु के लक्षण --- इस प्रकार कि वायु को रोग पैदा करने वाली जानना चाहिए जैसे --ऋतू के विपरीत बहने वाली ,अतिनिश्चळ ,अत्यंत वेग वाली ,अतयनत कर्कश ,अतिशीत ,अतिउष्ण ,अत्यंत रुक्ष ,अत्यंत अभिष्यंदी ,अत्यंत भयंकर   शब्द करने वाली ,आपस में टक्कर खाती हुई ,अति कुंडली युक्त (अधिक बवंडर युक्त ) ,बुरे गंध ,वाष्प ,बालू ,धूलि और धूम से दूषित हुई।
विकृत जल के लक्षण ----जो अत्यंत विकृत गंध ,वर्ण।रस स्पर्श वाला एवं क्लेदयुक्त हो ,जिसे छोड़कर जलचर (मगर ,मछली आदि ) और जलचर पक्षी चले गए हो ,जो सूखकर जलाशयों    में थोड़ा रह गया हो।जो पीने में स्वादयुक्त न हो ,पीने में अप्रिय हो,उसे दूषित अर्थात नष्ट गुणों वाला जल समझना चाहिए।
विकृत देश के लक्षण --- जिस देश के स्वाभाविक वर्ण ,गंध ,रस ,स्पर्श विकृत हो गए हों ,अधिक क्लेद युक्त ,सांप ,हिंसक जंतु ,मच्छड़ ,टिड्डी ,मख्खियां ,चूहा ,उल्लू ,गिद्ध ,सियार ,आदि जंतुओं से व्याप्त ,तृण,और फ़ूस से युक्त उपवन वाले ,विस्तृत लता आदि से युक्त ,जैसा पहले कभी नहीं हुआ हो ऐसे गिरे हुए ,सूखे हुए और नष्ट हुए शस्यवाले  ,धूमयुक्त वायु वाले ,लगातार शब्द करते हुए पक्षियों के समूह और जहाँ जोर से कुत्ते चिल्लाते हों ,अनेक प्रकार के मृग,पक्षी ,घबड़ाकर और दुखित होकर इधर उधर दौड़ते हों ,छोड़ दिए हैं और नष्ट हो गए हैं धर्म ,सत्य ,लज्जा ,आचार ,स्वाभाव और गुण जिनमे ऐसे जनपद वाले ,जहाँ के जलाशय क्षुब्ध हों ,और उसमे बड़ी लहरें उठती हों ,जहाँ लगातार आकाश से उल्कापात होता हैं ,बिजली गिरती हो ,भूकंप होता हो और भयंकर शब्द सुनाई पड़ते हैं ,रूखे ,ताम्र कि तरह अरुण ,सफ़ेद ,मेघ-जाल से घिरे हुए सूर्य ,चन्द्रमा और तारा आदि दिखाई पड़ते हों ,बार-बार निरंतर घबड़ाये हुए भरम के साथ डरे हुए की  तरह ,रोते हुए कि तरह ,अंधकार से घिरे हुए कि तरह ,गद्यक (देवआदिग्रह ) द्वारा आक्रांत देश  की तरह और रुलाई का शब्द जहाँ अधिक सुनाई पड़ता हो वह देश दूषित हैं ,ऐसा समझना चाहिए।ये लक्षण पूर्व देशों के साथ पश्चिमी देशों में लागु होते हैं।जहाँ खानपान का ध्यान नहीं रखते वहां यह होता हैं।वर्तमान में हमारे देश में भी मांस ,मछली अंडा और शराब में कमी आयी हैं।
विकृत काल के लक्षण --- ऋतू के स्वाभाविक लक्षणों  से विपरीत वाले अधिक लक्षणों ,अधिक लक्षणों वाले और कम लक्षणों वाले अस्वाथ्यकर (अहित ) जानना चाहिए।
जनपदोध्वंस के कारण --- इस प्रकार इन चारोँ भावों का दोषयुक्त होना जनपद को उप्धवंस करने वाला होता हैं।इससे विपरीत अर्थात अपने स्वाभाविक लक्षण वाले ये चार ---वात ,जल ,देश और काल ---हितकारी होते हैं।
सामान्य चिकित्सा ---जनपदोध्वंस पर उचित औषध का प्रयोग किया जाय।इस समय विधि पूर्वक रसायनों का प्रयोग करना चाहिए सत्य बोलना ,जीव मात्र पर दया ,दान  सदव्रत का पालन।देवताओं की पूजा ,शांति रखना और अपने शरीर  की रक्षा करना ,कल्याणकारी गावों और शहरों का सेवन ,धर्मशास्त्र की कथा और महर्षियों की सेवा ,सात्विक और वृद्धों द्वारा प्रशंसित पुरुषों के साथ सदा बैठना।इस प्रकार इस भयंकर काल में जिन मनुष्यों का मृत्युकाल  अनिश्चित  है उनकी आयु की रक्षा करने वालो औषधियां कही गयी हैं।
इस महामारी के बचाव के लिए हमें शासन द्वारा जारी निर्देशों के साथ व्यक्तिगत बचाव करना चाहिए और इस रोग में जागरूकता की जरुरत हैं।
वरिष्ठ आयुर्वेद परामर्शदाता होने के कारण बिना योग्य चिकित्सक के कोई भी इलाज न ले।आजकल बहुत अधिक इलाज देने वाले हैं ,मेरे द्वारा कई बार लिखा गया हैं की बिना डॉक्टर को प्रत्यक्ष दिखाए  चिकित्सा  न ले। कारण चिकित्सा हर व्यक्ति की प्रकृति पर निर्भर करती हैं और किसी किसी को रिएक्शन हो जाये तब क्या करेंगे या लाभ न हुआ तो कहाँ जाओंगे.
ईसा से पूर्व चरक महर्षि ने एपिडेमिक के बारे में विस्तृत वर्णन किया था जो आज भी उतना ही सार्थक हैं।
इस बीमारी के ख़तम होने का  समय बहुत नजदीकहोने की संभावना नहीं  हैं।विगत कुछ दिनों में कमी हो जाएँगी।बचाव ही इलाज़ हैं।छद्म चिकित्सकों से बचे,और जो मिथ्या प्रचार कर रहे हो उनके खिलाफ पुलिस को सूचना दे.  कारण वे एक को बचा सकते हैं पर सैकंडों को मार सकतेहैं या मार देते हैं।                                    
योग्य चिकित्सकों से चिकित्सा लेना उचित हैं।
(एपिडेमिक) (लेखक-डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन) 
 

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