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कन्याओं के सम्मान से खुश होती है नवदुर्गा! 

कन्याओं के सम्मान से खुश होती है नवदुर्गा! 

कन्याओं के रूप में नवदुर्गा की आराधना का पर्व है वासंतिक नवरात्र ।देवी मां की साधना कर मां को प्रसन्न करने से सारे कष्ट दूर हो जाते है और मां की कृपा से सुख ,शांति और समृद्धि का घर मे आगमन होता है।इसीलिए नवदुर्गा उपवास में कुमारी पूजन को परम आवश्यक माना गया है।
 श्रीदुर्गा सप्तशती का विधिपूर्वक पूजन करने के लिए मंत्र 
'नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्‌।'उच्चारित कर
 पंचोपचार पूजन करके यथाविधि  श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करना चाहिए।  सामर्थ्य हो तो नवरात्रि के अवसर पर प्रतिदिन,या फिर समाप्ति के दिन नौ कुमारियों के चरण धोकर उन्हें देवी रूप मानकर गंध-पुष्पादि से अर्चन कर श्रद्धा भाव के साथ यथारुचि मिष्ठान भोजन कराना चाहिए एवं वस्त्रादि से उनका सत्कार करना चाहिए।
नवदुर्गा में कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं का अर्चन विशेष महत्व रखता है। दो वर्ष की कन्या कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्तिनी, चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की काली, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष वाली सुभद्रा स्वरूपा मानी जाती है।
दुर्गा पूजा में प्रतिदिन की पूजा का विशेष महत्व है जिसमें प्रथम शैलपुत्री से लेकर नवम्‌ सिद्धिदात्री तक नव दुर्गाओं की नव शक्तियों का और स्वरूपों का विशेष अर्चन किया जाता है।
दुर्गा सप्तशती की व्याख्या करे तो
दुर्गा अर्थात दुर्ग शब्द से दुर्गा बना है , दुर्ग =किला ,स्तंभ , शप्तशती अर्थात सात सौ | जिस ग्रन्थ को सात सौ श्लोकों में समाहित किया गया हो उसका नाम शप्तशती है |
जो कोई भी इसका पाठ करेगा “माँ जगदम्बा” की उसके ऊपर असीम कृपा होती है ऐसी मान्यता है|
इस बारे में एक कथा भी है कि  “सुरथ और “समाधी ” नाम के राजा एवं वैश्य का मिलन किसी वन में होता है ,और वे दोनों अपने मन में विचार करते हैं, कि हमलोग राजा एवं सभी संपदाओं से युक्त होते हुए भी अपनों से विरक्त हैं ,किन्तु यहाँ वन में, ऋषि के आश्रम में, सभी जीव प्रसन्नता पूर्वक एकसाथ रहते हैं | यह आश्चर्य लगता है ,कि क्या कारण है ,जो गाय के साथ सिंह भी निवास करता है, और कोई भय नहीं है,जब हमें अपनों ने परित्याग कर दिया, तो फिर अपनों की याद क्यों आती है ?
उन्हें ऋषि के द्वारा यह ज्ञात होता है ,कि यह उसी ” महामाया ” की कृपा है ,जिसे मां दुर्गा के रूप में पूरा संसार जानता है।इस पर वे  दोनों ” दुर्गा” की आराधना करते हैं ।“दुर्गाशप्तशती ” के बारहवे अध्याय में आशीर्वाद प्राप्त करते हैं ,और अपने परिवार से उनका मिलन भी हो जाता हैं |
दुर्गा सप्तशती पाठ करने से अलग अलग अध्य्याय का अलग अलग लाभ बताया गया है।जैसे प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।
द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए।
तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिये।चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये।
पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए। षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा हटाने के लिये।
सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये।अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये।
नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये। दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये।द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये।त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये।लेकिन चिंतन का विषय यह भी है कि इतनी पूजा पाठ के बाद भी आज शायद ही ऐसा कोई धर हो या बस्ती जहां नारी जिसे देवी माना गया है वह स्वयं को पूरी तरह से सुरक्षित महसूस कर सके।  जबकि नारी के बिना समाज की कल्पना नही की जा सकती।पुरूष प्रधान कहे जाने वाले इस समाज में नारी देवी के रूप में पुजनीय है। नारी को शक्ति स्वरूपा भी कहा गया है। लेकिन जब नारी को सम्मान देने की बारी आती है तो लोगो का पुरूषोत्व जाग उठता है और नारी फिर भोग्या समझ ली जाती है। हालाकि देश में  रानी लक्ष्मीबाई समेत अनेक ऐसी विरांगनाएं हुई हैं, जिन्होंने राष्टभक्ति और बहादुरी का इतिहास रचा तथा नारी को आत्मस्वाभिमान के सिहासंन पर बैठाया। वहीं नारी को ममता की मूरत बताते हुए उसे कोमल हृदय कहा जाता है।लेकिन फिर भी नारी का सम्मान और उसका अस्तित्व इस समय ख़तरे में है।
नारी को या तो कन्या भ्रूण हत्या के रूप में जन्म लेने से पहले ही समाप्त किया जा रहा है या फिर उसे दहेज की बलिवेदी पर जिंदा जला दिया जाता है।  नारी को जन्म लेने से पहले ही मार डालने और अगर जिंदा बच जाए तो विवाह होने पर दहेज के लिए प्रताडित करने में अधिकतर नारियों की भूमिका रहती है।यद्यपि कहीं कहीं पुरूष भी पति देवर जेठ व ससुर के रूप में नारी को प्रताडित करने से बाज नहीं आते।सबसे पहले हमें अपने घर,आसपास, गांव शहर जहां भी नारी वजूद में है,उनका सम्मान करना चाहिए ,तभी नवरात्र का आध्यात्मिक व धार्मिक महत्व सार्थक हो सकता है।मौजूदा वासंतिक नवरात्र को सार्थक करने के लिए शास्त्रो में नवरात्र के पहले दिन मुखनिर्मालिका देवी के दर्शन का विधान है। कहते हैं देवी के निर्मल मुख के दर्शन से व्यक्ति के जीवन में भी निर्मलता का भाव उत्पन्न होता है। शक्ति के उपासक इस दिन शैलपुत्री देवी का दर्शन भी करते हैं।
 दूसरा स्थान ज्येष्ठा गौरी का है। ज्येष्ठा गौरी के दर्शन पूजन से व्यक्ति की समस्त सद्कामनाएं पूर्ण होती हैं। ज्येष्ठा गौरी के दर्शन-पूजन से मुख्यत: व्यक्ति के हृदय में धर्म के प्रति अनुराग बढ़ता है। 
वासंतिक नवरात्र की तृतीया तिथि पर सौभाग्य गौरी के दर्शन का विधान है।  देवी के इस स्वरूप के दर्शन से व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है। कहते हैं 108 दिन लगातार देवी के दर्शन से मनोरथ विशेष अवश्य पूर्ण होता है। 
वासंतिक नवरात्र की चतुर्थी तिथि पर श्रृंगार गौरी के दर्शन पूजन का विधान है। मूलत: श्रृंगार गौरी वैभव और सौंदर्य की देवी हैं। 
गौरी के विशालाक्षी स्वरूप का दर्शन पूजन वासंतिक नवरात्र में पंचमी तिथि पर किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि देवी विशालाक्षी के दर्शन से जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। देवी का कमल के पुष्प अति प्रिय हैं। 
वासंतिक नवरात्र की षष्ठी तिथि पर ललिता गौरी के दर्शन पूजन का विधान है। कहते हैं देवी की आराधना से व्यक्ति को ललित कलाओं में विशेष उपलब्धि प्राप्त होती है। अडुहुल का फूल देवी को विशेष रूप से प्रिय है।
वासंतिक नवरात्र के सातवें दिन भवानी गौरी का दर्शन पूजन किया जाता है।बहुत से लोग इस दिन  कालरात्रि देवी के दर्शन-पूजन भी करते हैं। 
वासंतिक नवरात्र की अष्टमी तिथि पर मंगला गौरी का दर्शन पूजन किया जाता है।  देवी के दुर्गा स्वरूप की आराधना करने वाले भक्त इस दिन महागौरी अन्नपूर्णा के दर्शन करते हैं। मंगला गौरी का एक मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर में भी है। कहते हैं देवी की आराधना से व्यक्ति के समस्त प्रकार के अमंगलों का क्षय हो जाता है। 
वासंतिक नवरात्र के अंतिम दिन नवमी तिथि पर महालक्ष्मी गौरी के दर्शन-पूजन का विधान है। कहते हैं किसी भी नवमी तिथि पर देवी के दर्शन का फल कई गुना बढ़ जाता है। देवी की कृपा होने पर व्यक्ति को धन की कमी नहीं होती।नवदुर्गा की पूजा और देवी दर्शन का तभी लाभ है जब हम कन्या की रक्षा और उसके सम्मान का संकल्प ले और नारी जाति की रक्षा को आगे आए।
(लेखक -डॉ गोपाल नारसन एडवोकेट)
 

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