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कोरोना से दुनिया को बचाने शाकाहार जरूरी 

कोरोना से दुनिया को बचाने शाकाहार जरूरी 


आज पूरी दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में है। यह महामारी इतनी तेजी से फैली है की हर व्यक्ति को अपने आप को सुरक्षित रखना गंभीर चुनौती बन गई है।कहते हैं कोरोना महामारी विगत दिसंबर 19 में चीन से आई है। चीन में मांसाहार का व्यापक दौर चलने से यह महामारी सारी दुनिया में तेजी से फैल गई। गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष मार्च 21 से दुनिया के साथ-साथ हमारे देश भारत में कोरोना का इतना व्यापक प्रभाव पड़ा है की महामारी के कारण जो मरीज पीड़ित हो रहे हैं  उन को बचाना एक जटिल समस्या बन गई है भारत में सदियों से महापुरुषों ने शाकाहार का व्यापक  अभियान चलाया इनमें प्रमुख हैं भगवान महावीर भगवान बुद्ध इन्होंने देश एवं दुनिया को मांसाहार त्याग कर शाकाहार अपनाने का पवन संदेश दिया। दुनिया के अनेक देशों में शाकाहार का अभियान चल रहा है सारी दुनिया में नवंबर माह "विश्व शाकाहार माह" के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य आम जनों तक शाकाहार समर्थक जानकारी पहुंचाना है। इस अवसर पर दुनिया में कार्यरत वेजिटेरियन बेगान सोसाइटियां विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जनता से संपर्क करती हैं, मांसाहार बहुलता बाले क्षेत्रों में शाकाहार के लाभों को बताया जाता है शाकाहारी भोजन बनाने की विधियां सिखाई जाती हैं। शाकाहारी प्रवृत्ति के विकास के लिए कई अन्य दिवस भी मनाए जाते हैं 1 नवंबर को शाकाहार दिवस मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त फार्म एनिमल राइट्स  आंदोलन में प्रतिवर्ष 20 मार्च को "मीट आउट डे" मनाया जाता है अमेरिका में "मीटलेस संडे"का प्रचलन हुआ है। अर्थात रविवार को केवल शाकाहारी भोजन। भारत तो मुख्य शाकाहारी देश राष्ट्र है मगर दुनिया की अन्य संस्थाओं में भी अनेक मनीषियों ने शाकाहार का समर्थन किया है।शाकाहार के समर्थक विचारक विश्व की लगभग सभी सभ्यताओं में मौजूद हैं। ग्रीस के विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ, राजनीतिक व दार्शनिक पाईथो गोरस ने ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में शाकाहार की प्रवृत्तियों का प्रचार प्रसार किया था। प्रारंभिक सभ्यताओं जैसे बेबोलियन तथा इंजेस्ट मैं भी शाकाहार  की प्रवृत्ति पाई गई है ईसा पूर्व 3200 में मिस्र में कई ऐसे धार्मिक समूह थे जो मांसाहार नहीं करते थे।भारत में अहिंसा के अवतार भगवान महावीर व भगवान गौतम बुद्ध ने अहिंसा शाकाहार के लिए उल्लेखनीय कार्य किए।कई प्रारंभिक ईसाई संत जैसे क्लीमेंट एलेग्जेंडिया ओरिजन, जान क्रिसास्टम स्वयं शाकाहारी थे। वे शाकाहार का प्रचार-प्रसार भी करते थे।रेवेण्ड विलियम कावर्ड ने सन 1809 में "द बाईबिल क्रिश्चियन चर्च" की स्थापना कर शाकाहार का प्रचार प्रसार किया। वर्तमान में दुनिया के विभिन्न भागों में शाकाहारी सोसायटियों का गठन हुआ है।जो अपनी अपनी परंपराओं के अनुरूप कार्य करते हुए न केवल शाकाहार का प्रचार प्रसार कर रही हैं, वरन शाकाहारी जीवन जीने के लिए आवश्यक साधन भी उपलब्ध करा रही हैं। यह संगठन बहुत व्यापक हो रहे हैं और लोगों को प्रभावित भी कर रहे हैं। शाकाहार अपनाने के पीछे अलग-अलग कारण होते हैं। कई लोग अपने अहिंसा वादी धर्म के कारण जो मांसाहार की इजाजत नहीं देता शाकाहारी हैं,पर्यावरण प्रेमी  यह मानते हैं कि यह मांस नहीं धरती को खा रहे हैं। पशु अधिकार एनिमल राइट के पक्षधर करुणा के कारण शाकाहार अपनाते हैं।शाकाहार के भी कई रूप हैं कई लोग अंडे व मछली को शाकाहार में शामिल करते हैं तो कुछ पशु उत्पादित दूध व दूध से बने उत्पादों का भी उपयोग नहीं करते तथा उसके स्थान पर सोया व अन्य वनस्पति निर्मित दूध का विकल्प प्रस्तुत करते हैं। वास्तव में शाकाहार एक पूर्ण जीवन पद्धति है, अतः उसके साथ अनेक गुण जुड़ जाते हैं शाकाहारी लोग रेशम व फर से बने कपड़ों का विरोध करते हैं।शाकाहार व योग का काफी अंतर संबंध है पशु अधिकार वन्य जीव संरक्षण व पर्यावरण के लिए संघर्ष करने वाले व्यक्ति  सहज ही  शाकाहार आंदोलन के सहयोगी बन जाते हैं और कोशिश करते हैं की दुनिया सुरक्षित रहे अधिक मानवीय बने। ब्रिटेन में शाकाहार आंदोलन लगभग 2 शताब्दी पुराना है 30 सितंबर 1847 को वेजिटेरियन सोसाइटी का गठन जेम्स सिंपसन की अध्यक्षता में हुआ जो संभवतः विश्व की प्रथम वेजीटेरियन सोसायटी थी। सोसायटी द्वारा मासिक पत्रिका "द वेजिटेरियन" प्रकाशित होती है इसके 30,000 पाठक हैं चीन में शाकाहारी भोजन अपनाने की प्रेरणा कन्फ्यूशंस ने दी थी।बौद्ध धर्म से प्रभावित चीन में शाकाहार कोई नई बात नहीं है चीन में शाकाहार की दो प्रवृतियां हैं एक वर्ग गौतम बुद्ध की अहिंसा से प्रभावित है तो दूसरी भोजन को स्वास्थ्य प्रदत्ता की दृष्टि से।चीन में चीनी भाषी व अंग्रेजी भाषी लोगों की दो सोसायटी कार्यरत थी। 1996 में सिमोन चाऊ के नेतृत्व में इनका एकीकरण हो गया। सन 2010 में चीन में प्रधानमंत्री ने पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि सप्ताह में एक दिन शाकाहार का नारा दिया था एक विवरण के अनुसार रिपब्लिक ऑफ चाइना ताइवान में बड़ी संख्या में लोग शाकाहारी हैं चाइनीज वेजिटेरियन सोसाइटी के सदस्य एक शाकाहारी रेस्टोरेंट में प्रति शनिवार को मिलते हैं। सोसाइटी का मासिक न्यूज़लेटर प्रकाशित होता है शाकाहार एवं पशु संरक्षण के संबंध में चीन सरकार उदार नहीं है चीन में पशुओं के प्रति क्रूरता के विरुद्ध भी समाज का बड़ा हिस्सा संघर्ष कर रहा है। सोवियत रूस की प्रथम शाकाहार सोसाइटी की स्थापना 1901 में सेंट पीटर्सबर्ग में हुई । सन 1988 के बाद सरकार समर्थक लोगों ने शाकाहारी क्लवों की स्थापना की है। पशु क्रूरता विरोधी संगठन भी शाकाहार के प्रचार प्रसार में सहयोग करते हैं। राजधानी मास्को के निकट एक द कल्चरल एजुकेशनल सेंटर में विगत वर्ष 22 से 28 जुलाई तक अंतर्राष्ट्रीय वेज फेस्टिवल का आयोजन किया गया था।इस फेस्टिवल में भारत बेगान एजुकेशनल सेंटर के मनीष जैन व उनकी पत्नी नीना जैन गए थे। जिन्होंने शाकाहार विषयक व्याख्यान दिए थे। न्यूजीलैंड वेजिटेरियन सोसाइटी की स्थापना सन 1943 में हुई थी यह संस्था तीन शाखाओं व केंद्रों के माध्यम से कार्य कर रही है इसका मुख्यालय न्यूजीलैंड के ऑकलैंड में स्थित है।यह एक पत्रिका में प्रकाशित करती है। सन 1899 में लंदन वेजिटेरियन सोसायटी ने एक विचार प्रस्तुत किया कि इंग्लैंड कि सभी वेजिटेरियन सोसायटियों को एक कर इनकी यूनियन बनाई जाए। सन 1889 में जर्मनी में ही वेजिटेरियन फेडरल यूनियन का गठन हुआ व एनराल्ड एफहिल्स इसके प्रथम अध्यक्ष बने। इस संगठन से महात्मा गांधी का भी निकट संबंध रहा।सन 1908 में अंतरराष्ट्रीय सहकारी यूनियन आईआरबी का उदय हुआ।इसका विस्तार दुनिया के लगभग प्रत्येक देश में हो चुका है यूनियन दो-तीन वर्ष के अंतराल पर विभिन्न देशों में अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस का आयोजन करती है।सन 2012 में इसे कांग्रेस के स्थान पर world vegfest का संबोधन दिया जाने लगा। सन 2013 में यह उत्सव अक्टूबर माह में मलेशिया में संपन्न हुआ। संगठन की अपनी वेबसाइट है कई पुस्तकें प्रकाशित की गई है यह संगठन शाकाहार के लिए प्रेरणा व सहयोग देने वाली संस्थाओं को सहयोग करता है। सरकारों पर शाकाहार के पक्ष में दबाव बनाता है। इसके अलावा विश्व के अनेक देशों में शाकाहार के व्यापक प्रचार प्रसार के उद्देश्य को लेकर अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय संगठन कार्यरत हैं।   
(लेखक -विजय कुमार जैन)

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