हमारी सृष्टि पंचमहाभूतामक हैं पृथ्वी ,जल ,वायु अग्नि और आकाश।हमारा शरीर तीन दोषों यानी वात, पित्त,कफ सात धातुएं रस ,रक्त ,मांस मेद, अस्थि, मज्जा औरशुक्र और अठारह प्रकार मलों से बना हैं।जब ये समान अवस्था मे होते हैं तो शरीर स्वस्थ्य रहता हैं और विकृति होने से रोग होता हैं।"रोगस्तु दोष वैषम्य दोष साम्यम आरोग्यता "
हम जितने प्रकृति के नजदीक रहते हैं उतने अधिक स्वस्थ्य रहते हैं।जन्म से लेकर जो व्यक्ति नैसर्गिक साधनों से अपना जीवन यापन करते हैं वे सुखी रहते हैं पर आज जन्म से ही रसायनों का उपयोग करने से हमारा शरीर रसायन युक्त होने के कारण उसका इलाज़ रसायन से होता हैं परन्तु आज माँ के स्तन्य से रसायन युक्त दुग्ध मिलता हैं।हवा प्रदुषण ,दिन रात पंखा ,कूलर ,एसी ,प्राकृतिक हवा नहीं हैं ,शिशु को धरती पर सुलाना उससे प्रतिष्ठा गिरती हैं।शिशु को डब्बे का कृतिम दूध पिलाना ,दिन रात गर्भस्थ माँ टी वी, मोबाइल, कंप्यूटर मे लिप्त रहने से गर्भस्थ शिशु उन तरगों से प्रभावित होता हैं उसके बाद जन्मके समय तत्काल उसकी मोबाइल से फोटो लेना ,जबकि वह शिशु ९ माह तक अन्धकार मे रहता हैं और चका चौंध मे रहता।माँ अपना स्तन्य नहीं पिलाना चाहती जिससे शिशु को आत्मीय प्रेम जितना मिलना चाहिए नहीं मिलता और माँ का नौकरी पेशा होने से वे वात्स्लय भाव से दूर रहते हैं।
माँ बाप सदाचरण का पालन नहीं करते।पानी ,दूध ,साग सब्जी अन्न ,फल रासायनिक युक्त होते हैं और उनके माध्यम से शिशुओं को रसायन मिलता हैं।उसके अलावा दिन रात टी वी मोबाइल के कारण बच्चे उनसे व्यसनी होने लगते हैं।कम संतान और एकल परिवार होने से छोटी सी बीमारी होने पर तत्काल प्राकृतिक इलाज़ न लेकर एलॉपथी चिकित्सा लेने से ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबॉयटिक्स लेने के कारण उस शिशु की प्रतिरक्षण शक्ति कमजोर होने के कारण और उसके बाद अन्य औषधियां असर नहीं करते हैं।यह समय मे जीवन मे परिवर्तन का समय होता हैं।फिर उसके बाद ब्रॉडेस्ट एंटीबॉयटिक्स का दौर शुरू होने से वे शिशु एलॉपथी पर आश्रित हो जाते हैं।
जितने अधिक हम नैसर्गिक व्यवस्थाओं से दूर रहेंगे तब तक हम शीघ्र रोगग्रस्त होते जाते हैं।जो वो शिशु बड़ा होने पर बिस्किट ,ब्रेड ,चॉकलेट आदि खिलाते हैं और उसके बाद पिज़्ज़ा ,बर्गर आदि क्या क्या नहीं कहते और उसके बाद कोल्ड ड्रिंक्स ,सिगरेट शराब ,मांस अंडा मछली खाना शुरू करते हैं और बीमार होने पर एलॉपथी डॉक्टर की शरण मे जाते हैं।
वर्तमान मे अधिकांश जनता जनार्दन एलॉपथी के ऊपर आश्रित होने के बाद आयुर्वेद के ऊपर पूर्ण विश्वास करते हैं वे स्वयं धोखा खाते हैं।कारण यदि आप जन्म से ही आयुर्वेद जीवन पद्धति अपनाते हैं उन्हें जरूर लाभकारी होते हैं।आज आयुर्वेद औषधियों मे इतनी शक्ति नहीं हैं की वे दुष्ट रसायनों का सामना कर सके।.आयुर्वेद का सिद्धांत हैं स्वस्थ्य स्वास्थय रक्षणं एवं आतुरस्य चिकित्सा।यानी स्वास्थय की रक्षा और रोगी का इलाज करना।
इसके साथ यदि आप पथ्य से रहते हैं तो चिकित्सक की जरूरत नहीं होती और जो अपथ्य से चलता हैं उसे चिकित्सक की भी जरूरत नहीं
आज हमारे भारतीयों का रक्त रसायनयुक्त होने से आयुर्वेद औषधियां प्रभावकारी नहीं हो पा रही हैं उसके बाद आयुर्वेद औषधियों के निर्माण भी संग्दिध रहती हैं।अनेक औषधियां गुणवत्ता हीन से लाभकारी नहीं होती हैं।
बचाव के लिए गुणवत्ता युक्त औषधियां निश्चित ही लाभकारी होती पर इस विकट स्थितियों जहां राफेल जैसी दवाएं काम नहीं कर रही हैं ,ऑक्सीजन की कमी का होना ,वेंट्रिलाटेर का विकल्प आयुर्वेद मे नहीं हैं।हां कुछ छद्म वैद्य इलाज़ की गारंटी लेकर जनता को गुमराह कर इलाज कर पैसा लूट रहे हैं वे अपराध कर रहे हैं।छद्म वैद्य एक असाध्य रोगी को लाभ देता हैं सैकड़ों को मार डालता हैं।इसका सामने उदाहरण हम जैविक खेती से रसायनयुक्त खेती से क्या उतना उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं ,कभी नहीं।भविष्य उज्जवल होगा पर वर्तमान संकट ग्रस्त।
मै स्वयं आयुर्वेद का वरिष्ठ चिकित्सक होने के बावजूद मे यह सलाह जन हित मे दे रहा हूँ।मैं आयुर्वेद का बहुत बड़ा हिमायती हूँ पर आयुर्वेद की अपनी सीमायें हैं।जहाँ राफेल काम नहीं कर रही वहां राइफल क्या करेंगे।राइफल कभी कभार एकाध को मार डाले उससे आप निश्चित उत्साहित होंगे पर अन्यों के साथ धोखा होगा।
इस लिए पूर्ण रूप से आयुर्वेद पर निर्भर न रहे जैसी जरूरत पड़े उस हिसाब से अपना इलाज़ ले और स्वस्थ्य रहे।सत्य कटु होता है पर लाभकारी होता हैं ।
(लेखक-डॉ अरविन्द प्रेमचंद जैन)
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