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 कोरोना में सिफारिश, पैसा सब है पर लेकिन इलाज नहीं

 कोरोना में सिफारिश, पैसा सब है पर लेकिन इलाज नहीं

नई दिल्ली । भारत में यूपी हो या बिहार, दिल्ली हो या महाराष्ट्र चारों तरफ से कोरोना काल में लाचारी की तस्वीरें सामने आ रही हैं। कोई पैसों के अभाव में अपनोंको नहीं बचा पाया तो किसी के पास पैसा और पावर सब था, मगर इलाज नहीं मिलने से उसका संसार खत्म हो गया। कोरोना की दूसरी लहर में स्थिति कितनी विकराल हो चुकी है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक शख्स पिता की अस्थियां विसर्जित कर मां को देखने जाता है तो उसके हाथ में डॉक्टर डेथ सर्टिफिकेट थमा देते हैं। चलिए जानते हैं ऐसी हृदयविदारक घटनाओं को, जिससे यकीन हो जाएगा कि इस कोरोना ने कैसे लोगों को लाचार बना दिया है। गाजियाबाद के गोविंदपुरम निवासी कोरोना संक्रमित शशि शर्मा (52) के परिजनों के पास पैसा, सिफारिश सबकुछ था, नहीं था तो सिर्फ इलाज। शशि के परिजन अस्पताल में बेड के लिए चार घंटे भटकते रहे लेकिन सब बेकार। अंत में कोरोना से जंग लड़ते-लड़ते शशि हार गईं और दुनिया को अलविदा कह गईं। हालांकि, मौत के बाद भी परेशानियों से छुटकारा नहीं मिला। अंतिम संस्कार को पहुंचे तो वहां भी लाशों की कतार थी, जिसके चलते अंतिम यात्रा के लिए भी चार घंटे इंतजार करना पड़ा।
गोविंदपुरम के गौड़ होम सी-731 निवासी शशि शर्मा 21 अप्रैल को कोरोना पॉजिटिव आईं। गाजियाबाद-हापुड़ में हॉस्पिटल नहीं मिला। 22 अप्रैल की रात ग्रेटर नोएडा के ग्रीन सिटी हॉस्पिटल ने प्राथमिक उपचार देकर मेरठ रेफर कर दिया। रात 12:10 बजे परिजन उन्हें मेरठ मेडिकल लाए, यहां बेड खाली नहीं मिला। यहां से निजी अस्पताल और फिर जिला अस्पताल पहुंचे। जिला अस्पताल से फिर मेडिकल भेज दिया। इस तरह सुबह के चार बज गए। यहां एक घंटा इंतजार के बाद पांच बजे शशि को एडमिट किया। इमरजेंसी वॉर्ड में मारामारी थी। परिजनों के अनुसार, स्ट्रेचर गंदा था तो दवाइयों के कार्टन बिछाकर मां को उस पर लेटा दिया। कोई देखने वाला नहीं था। धीरे-धीरे उनका ऑक्सीजन लेवल गिरता गया और 24 अप्रैल की दोपहर 12:40 बजे शशि की सांसों की डोर टूट गई।
 

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