जब स्वास्थ्य मंत्री ने इस एलान के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ़ करते हुए कहा था कि "इसने दुनिया के सामने अंतरराष्ट्रीय सहयोग की एक नज़ीर पेश की है". भारत ने जनवरी से ही अपनी बहुप्रचारित 'वैक्सीन डिप्लोमेसी' के तहत दूसरे देशों को वैक्सीन की सप्लाई शुरू कर दी थी ।हर्षवर्धन अगर देश में कोरोना संक्रमण के ख़ात्मे के प्रति इतने अधिक उम्मीद भरे नज़र आ रहे थे, तो इसकी वजह थी । दरअसल, सितंबर के मध्य में देश में दैनिक कोरोना संक्रमण की रफ़्तार उच्चतम स्तर पर पहुँच गई थी ।उन दिनों यह हर दिन 93 हज़ार के स्तर पर पहुँच गई थी । लेकिन इसके बाद इसमें तेज़ गिरावट देखने को मिली । फ़रवरी के मध्य तक हर दिन सिर्फ़ 11 हज़ार मामले आ रहे थे ।हर दिन मरने वालों का साप्ताहिक औसत भी घट कर 100 के नीचे पहुँच गया था ।
इस तरह पिछले साल के अंत से ही कोरोना वायरस को ख़त्म करने का जश्न मनाना शुरू हो गया था । राजनेताओं से लेकर नीति-निर्माताओं और मीडिया के एक हिस्से ने सचमुच यह मान लिया था कि भारत अब इस मुश्किल से निकल चुका है ।दिसंबर में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के अधिकारियों ने भी कहा था कि भारत अब "कोरोना संक्रमण के ख़ात्मे" की ओर बढ़ रहा है ।कविताओं में इस्तेमाल किए जाने वाले रूपकों का सहारा लेते हुए इन अधिकारियों ने कहा, "इस बात के सबूत मिलने लगे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब जाड़े के मौसम की लंबी छाया से निकल कर चमचमाते रोशन दिनों की ओर बढ़ रही है ।" उस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी को "वैक्सीन गुरु" तक कहा जाने लगा ।
फ़रवरी के आख़िर में चुनाव आयोग ने पाँच राज्यों में विधानसभा चुनावों का ऐलान कर दिया. इन राज्यों की 824 सीटों पर खड़े उम्मीदवारों को चुनने वाले वोटरों की संख्या 18.60 करोड़ है ।27 मार्च से शुरू हुई वोटिंग को एक महीने से भी अधिक समय तक चलना था ।पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में चुनाव का एलान किया गया । इसके बाद चुनाव प्रचार पूरे ज़ोर-शोर से शुरू हो गए ।इन चुनाव क्षेत्रों में न तो कोई सेफ़्टी प्रोटोकॉल अपनाया जा रहा था और न सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा था ।इस बीच, मध्य मार्च में गुजरात के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में भारत और इंग्लैंड के बीच दो अंतरराष्ट्रीय एक दिवसीय मैचों को देखने के लिए एक लाख 30 हज़ार दर्शकों को इजाज़त दे दी गई । इनमें से ज़्यादातर बग़ैर मास्क पहने आए थे ।और फिर इसके एक महीने के अंदर मुसीबतों का सिलसिला शुरू हो गया । भारत एक बार फिर कोरोना संक्रमण की गिरफ़्त में आ गया । कोरोना संक्रमण की यह दूसरी लहर बहुत ज़्यादा ख़तरनाक साबित हो रही है और इसने भारत के शहरों को बुरी तरह जकड़ लिया है ।इस वजह से कई जगहों पर नए सिरे से लॉकडाउन लगाना पड़ रहा है ।कोरोना की इस दूसरी लहर में मध्य अप्रैल तक हर दिन संक्रमण के लगभग एक लाख मामले आने लगे. रविवार को भारत में कोरोना संक्रमण के 2,70,000 केस दर्ज किए गए थे और 1600 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी. एक दिन में यह संक्रमण और मौतों का सबसे बड़ा रिकॉर्ड था ।
पर अब यह समय पुराणी समीक्षा न कर समस्त देश का एक इकाई के रूप में कोरोना को परास्त करने का है। बेशक केन्द्र ने राज्यों को अपनी-अपनी परिस्थिति के अनुसार कोरोना का मुकाबला करने हेतु आवश्यक कदम उठाने के लिए अधिकृत कर दिया है परन्तु राज्य केवल अपने आर्थिक बूते पर इसका मुकाबला नहीं कर सकते। विभिन्न राज्य कहीं कर्फ्यू लगा रहे हैं तो कही अर्ध लाॅकडाऊन या आंशिक लाॅकडाऊन लगा कर कोरोना संक्रमण की शृंखला को तोड़ने का प्रयास कर रहे हैं परन्तु इस पर तब तक पूरी तरह नियन्त्रण नहीं पाया जा सकता जब तक कि एक समन्वित राष्ट्रीय नीति न तैयार की जाये। हालांकि कोरोना वैक्सीन भी अब लगनी शुरू हो गई है परन्तु कई राज्यों से इसकी सप्लाई में कमी आने की शिकायतें भी मिल रही हैं। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि वैक्सीन ही कोरोना पर अन्यंत्र नियन्त्रणकारी कार्रवाई साबित हो सकती है परन्तु इसे लोगों को लगाने की पूरी नीति केन्द्र सरकार चला रही है और इसकी खरीदारी भी केवल वही कर सकती है। तर्क कहता है कि जब राज्यों को कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए आवश्यक कदम उठाने का अधिकार दिया गया है तो उन्हें ही यह अधिकार भी मिलना चाहिए कि वे अपने राज्य की परिस्थितियों और जरूरत के मुताबिक वैक्सीन लगाने की नीति भी तय करें। इस विवाद में जाने की जरूरत नहीं है कि कौन राज्य कितनी वैक्सीन की कमी बता रहा है बल्कि यह देखने की जरूरत है कि किस राज्य में कोरोना का संक्रमण कितना प्रबल है। इसके साथ ही जिस प्रकार से विभिन्न राज्यों की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है उसके उपाय भी अभी से ढूंढे जाने चाहिए ।
कोरोना संक्रमण और अर्थव्यवस्था एक-दूसरे के समानुपाती हैं। इसका अनुभव हमें पिछले वर्ष के संक्रमण दौर व लाॅकडाऊन से हो चुका है। पिछले 31 मार्च को भारत की अर्थव्यवस्था की नकारात्मक वृद्धि दर दस प्रतिशत रही है। इससे सबक लेने की जरूरत है और लोगों की जानमाल बचाने के साथ ही जीविका को सुरक्षित रखने की जरूरत भी है। यह हकीकत है कि पिछले लाॅकडाऊन की मार से देश की अर्थव्यवस्था अभी तक उबर नहीं पा रही है और यह दूसरा भयंकर काल शुरू हो गया है। अतः औद्योगिक जगत विशेष रूप से मध्यम व लघु क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों को उत्पादनरत रखने के लिए शहरों से मजदूरों का पलायन रोकना बहुत आवश्यक होगा और इसके लिए पहले से ऐसे ‘कोरोना पैकेज’ तैयारी करनी पड़ेगी जिससे अर्थव्यवस्था और ज्यादा नीचे न गिरने पाये। इसमें भी दैनिक मजदूरी करने वालों से लेकर ठेके पर विभिन्न कारखानों या फैक्टरियों में काम करने वाले मजदूरों से लेकर कारीगरों तक को आर्थिक मदद देने की जरूरत होगी। यह मदद उन्हें किसी भीख की तरह नहीं बल्कि उनके जायज हक के तौर पर दी जानी चाहिए और छोटी फैक्टरियों व उत्पादन इकाइयों के लिए अभी से शुल्क छूट व आर्थिक मदद के पैकेजों पर विचार करना शुरू कर दिया जाना चाहिए। मगर सबसे ज्यादा जोर इस बात पर होना चाहिए कि जल्दी से जल्दी प्रत्येक युवा से लेकर बुजुर्ग तक को वैक्सीन लगे। देश में कोरोना वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किसी प्रकार की आर्थिक तंगी नहीं आने देनी चाहिए और जो दो निजी कम्पनियां वैक्सीन बना रही हैं उन्हें हर प्रकार से मदद की जानी चाहिए। सवाल कोरोना पर विजय प्राप्त करने के लिए कारगर प्रबन्धन का इसलिए खड़ा हो रहा है कि जब दुनिया के दूसरे देशों विशेष रूप से यूरोपीय देशों मे कोरोना स्टेंस की दूसरी लहर के बहुत तेज होने और भयंकर होने की आशंका जताई जा रही थी तो हमने समय रहते व्यापक कारगर प्रबन्ध नहीं किये और आज कोरोना ने हमें बीच रास्ते में पकड़ लिया है। अतः जरूरी है कि हम अपने लोगों को बचाने के साथ-साथ ही अपनी अर्थव्यवस्था को भी बचायें और इस तरह बचायें कि जो जहां है वह वहीं आश्वस्त होकर रहे जिससे कोरोना के पंखों को फैलने की इजाजत न मिले।
(लेखक-अशोक भाटिया )
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