पूरे देश में नंबर वन शहर के नाम से पहचाने जाने वाले और मध्य प्रदेश को सर्वाधिक आर्थिक आपूर्ति करने वाले इंदौर शहर के दो प्रतिष्ठित और सक्षम परिवार है एक विष्णु प्रसाद शुक्ला "बड़े भैया" का दूसरा परिवार स्वर्गीय जयंतीलाल संघवी "काका" का, दोनों ही हर दृष्टि में सक्षम, समृद्ध सुदृढ़ ऐसे परिवार जिन्हें इंदौर ने पहचान दी और आज वे इंदौर की पहचान बन गए विडंबना देखिए कि दोनों ही खालिस रूप से इंदौरी नहीं, चालीस पचास के दशक में दोनों इंदौर आए और इंदौर को अपनी कर्मभूमि बना इस मुकाम तक पहुंचे कि आज इन्दौर की पहचान बन गये। इंदौर के किसी भी सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षणिक या इसी तरह की अन्य गतिविधियों में इन दोनों परिवारों का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होना अवश्य पाया जाता है, इंदौर के बारे में जो जानते हैं वह जरूर इन दोनों ही परिवारों से परिचित होगें ही और जो इंदौर के बारे में जानना चाहते वह इन दोनों परिवारों के बारे में भी जानने को उत्सुक रहते हैं।
आम जीवन के तकरीबन हर क्षेत्र में शिखर तक पहुंचने वाले इन परिवारों का कोई सदस्य राजनीतिक रूप में सत्ता शिखर पर नहीं पहुंच पा रहा था कह सकते हैं इन परिवारों पर राजनीति में सत्ता सूतक लगा हुआ था गत विधानसभा चुनाव में शुक्ला परिवार का वह सूतक तो संजय शुक्ला के विधायक बनने के साथ उतर गया क्या इन लोकसभा चुनाव में संघवी परिवार का भी सत्ता सूतक उतरेगा जबकि पकंज संघवी सासंद का चुनाव लड रहे हैं।
वर्तमान में कांग्रेस के साथ सत्ता में भागीदारी करते दोनों परिवार विशुद्ध रूप से संघ की पृष्ठभूमि से ही हैं, जहां काका इंदौर में जनसंघ के एक लंबे अरसे तक अध्यक्ष रहे, वहीं बड़े भैया अटलजी, आडवाणी, कुशाभाऊ ठाकरे, मुरली मनोहर जोशी, प्यारेलाल खण्डेलवाल के सानिध्य में जनसंघ से जनता पार्टी और जनता पार्टी से भारतीय जनता पार्टी को संगठित और सुदृढ़ करने में सक्रियता के साथ तन मन धन से अपना योगदान देते रहे।
सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और शैक्षणिक क्षेत्र में दोनों ही परिवारों की कार्यप्रणाली एक जैसी ही रही और इन्होंने इन क्षेत्रों में शीर्ष मुकाम हासिल कर प्रतिष्ठित प्रसिद्धी प्राप्त की लेकिन राजनीतिक क्षेत्र में गहन सक्रियता और सम्पर्क के बाद भी विगत तीस सालों में कोई अहम पद पर नहीं पहुंच पाए, तमाम प्रयासों के बाद भी सत्ता राजनीति में पार्षद से आगे तक दोनों ही परिवारों का कोई सदस्य नहीं पहुंच पाया, जहां शुक्ला परिवार से स्वंय विष्णु प्रसाद शुक्ला बडे भैया सहित परिवार के कई अन्य सदस्य सत्ता प्राप्ति की राजनीति में सक्रिय रहे मतलब चुनाव लडते रहे वहीं संघवी परिवार से पकंज संघवी ही सत्ता की राजनीति में उतरे और सभी तरह के चुनाव लडते तमाम कोशिशों के बाद वे भी पार्षद से आगे तक कोई चुनाव में जीत दर्ज नहीं करा पाए इस बार फिर मौका है।
उत्तर प्रदेश के उन्नाव से इंदौर आए विष्णु प्रसाद शुक्ला "बड़े भैया" ने पश्चिम इंदौर के बाणगंगा में अपना मुकाम स्थापित कर इंदौर को अपनी कर्म स्थली बनाया वहीं इसके ठीक विपरीत सौराष्ट्र के बाकानेर से अहिल्यानगरी इंदौर में आ जयंतीलालजी संघवी "काका" ने इंदौर के पूर्वी क्षेत्र वल्लभनगर में अपना मुकाम जमाया, इंदौर के दोनों विपरीत ध्रुव एक पटरी के इस पार तो दूसरा पटरी के उस पार कार्यप्रणाली भी कुछ ऐसे ही विपरीत एक ने पहले बाहुबल फिर उससे धनबल हासिल किया तो दूसरे ने अपने व्यावसायिक निपुणता से पहले धनबल निपुणता से पहले धनबल फिर बाहुबल हासिल किया यही नहीं काका का गुजराती समाज को इंदौर में पहचान दिलाने में उल्लेखनीय योगदान रहा वहीं बड़े भैया का खंडित विप्र समाज को संगठित और सुदृढ़ करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका रही इसका कारण दोनों की ही मूल भावना जनकल्याण की रही और इस तरह दोनों ने इंदौर को अपने नाम से एक पहचान दे दी, इंदौर ने भी दोनों परिवारों को खूब सर आंखों पर बिठाया वैसे भी कहा जाता है कि इंदौर की जमीन में एक आकर्षण है चुंबक है वह अपनी और आकर्षित करती है खींचती है सबको अपना बना देती है किसी को भी निराश नहीं करती है तो तीस पैतींस वर्षों से जिंदगी के हर क्षेत्र में सक्रिय इन परिवारों में से जिस तरह विष्णु प्रसाद शुक्ला "बड़े भैया" के परिवार का राजनीतिक सूतक उनके पुत्र संजय शुक्ला के विधायक बनने के साथ ही उतर गया क्या लोकसभा चुनाव में संघवी परिवार पर लगा सत्ता सूतक भी पंकज संघवी के सांसद बनने के साथ उतर जाएगा? मत डल चुके हैं, मतगणना बाकी है देखिये और इन्तजार कर जानिये क्या होता है क्या इन्दौर अपने स्वभाव अनुसार इनकी भी यह आशा पूरी करेगा।
नेशन
संघवी परिवार का उतरेगा "सत्ता सूतक"..? - आनन्द पुरोहित