बेशक देश में प्रतिवर्ष की तरह 1 मई 2021को मजदूर दिवस मनाया जा रहा है।कोरोना महामारी में मजदूरों के हितों को सुरक्षित करना होगा।कोरोना मजदूरों के लिए अभिशाप बन गया है।रोजगार छिन गया है।महामारी के डर से मजदूर पलायन कर रहे है।अपने राज्यों में लौट रहे है।2020 में भी मजदूरों पर कोरोना का कहर बरपा था।मजदूर दिन रात पैदल ही अपने गांव लौट गए थे।कुछ महिने के बाद जिदंगी पटरी पर आने लगी थी मगर कोराना की दूसरी लहर ने फिर से डरावनी इबारत लिखनी शुरु कर दी है।आज भी वह मंजर याद आता है जब बेचारे
मजदूर पैदल ही लौट रहे थे।मजदूरों की तस्वीरो से मन व आत्मा सिहर उठती है।कोराना काल में मजदूरों ने जो झेला है वह असहनीय दर्द रुला देता है।भूखे प्यासे दिन रात बिना डर के अपने घर सुरक्षित पंहुचे थे।मजदूरों के साथ रास्ते में दर्दनाक हादसे भी हुए। केवल मात्र एक दिन बडे़-बड़े सैमिनार,गोष्ठियां की जाती है मजदूरों के हितों को सुरक्षित करने के लिए
बड़े दावे किये जातें है मगर 364 दिन मजदूरों के बारे में कोई नहीं सोचता कि मजदूरों के साथ कैसे-कैसे हादसे होते रहते है।प्रतिदिन समाचार पत्रों में मजदूरों के मरने की खबरें सुखियां बनती है मगर सरकारें मूकदर्शक बनी तमाशा देख रही हैं। देश के कारखानों में मजदूर मर रहे हैं हर जगह मजदूर काल का ग्रास बन रहे है। देश में मजदूरों के साथ हादसे कब थमेगें यह एक यक्ष प्रशन है। हर साल दिवस मनाए जाते है मगर धरातल की सच्चाइयां बहुत ही भयानक है मजदूरों का शोषण किया जाता है। मजदूरों के नाम पर सैकडों योजनाए चलाई जाती है मगर उन्हे उनका हक नहीं मिलता। देश में हर रोज मजदूर बेमौत मर रहे हैं। मजदूरों के साथ होने वाले यह हादसे बहुत ही त्रासदी है।कहीं उद्योगों में जलकर मारे जा रहे हैं।हादसों की बजह से बच्चे अनाथ हो रहे है।मगर केन्द्र व राज्य की सरकारों को जरा सा सदमा होता तो मजदूरों के हितों में कदम उठाती लेकिन सरकारें तो तब जागती हैं जब बड़ा हादसा घटित हो
जाता है। देश में हर वर्ष लाखों मजदूर दबकर मारे जा रहे हैं उद्योगों में जलकर मारे जा रहे हैं। मगर केन्द्र व राज्य की सरकारों को जरा सा सदमा होता तो मजदूरों के हितों में कदम उठाती लेकिन सरकारें तो तब जागती हैं जब बड़ा हादसा घटित हो जाता है।देश के कारखानों में मजदूर मर रहे हैं, इमारतों के नीचे दबकर मजदूर काल का ग्रास बन रहे है।हादसों को देखकर रौगंटे खडे़ हो जाते हैं देश के राज्यों में चल रहे ईटों के भठठों में मजदूर मारे जा रहे हैं।मजदूरों के पसीने से ही ईटें पकती हैं मगर भठठा मालिक मजदूरों का शोषण कर रहे हैं मजदूर खून-पसीना बहाकर काम करते है।मगर बदले में मेहनताना नाममात्र दिया जाता है।मालिक मजदूरों के सिर पर करोड़ों रुपया कमा रहे है।आकडों के मुताबिक बीते सालों में देश में हजारों मजदूर मारे जा चुके है।हादसों नं सवाल खड़े कर दिये हैं कि बार-बार हो रहे इन हादसों के कारण क्या है इस घटना ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बीती घटनाओं से न तो सरकार ने सबक सिखा और न ही लोगों ने सीखा। हांलाकि इसयह कोई पहला हादसा नहीं है पिछले कई सालों से ऐसे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं। बीते वर्ष में रायबरेली के उंचाहार में एटीपीसी संयत्र का बायलर फटने से 30 मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई थी तथा 100के लगभग घायल हो गए थे।500 मैगावाट इकाई के बायलर में यह हादसा हुआ था उस समय 200 कामगार मौजूद थे सरकारों ने मृतकों को मुआवजे की घोषणा करती है मगर मुआवजा इसका हल नहीं है।एक ऐसा ही हादसा जयपुर के पास खातोलाई गांव में घटित हुआ था जहां
टाªसफारमर फटने से 14 लोगों की मौत हो गई थी। इन हादसों ने औद्याोगिक क्षेत्रों में मजदूरों की सुरक्षा पर प्रशनचिन्ह लगा दिया है इन हादसों पर संज्ञान लेना होगा तथा मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होगें ताकि भविष्य में ऐसे हादसों पर रोक लग सके। गत वर्ष जम्मू के उधमपूर से 80 किलोमीटर दूर रामबन जिले के चंद्रकोट में जम्मू-कश्मीर हाईवे पर टनल कर्मचारियों की बैरक में आग लगने से दस श्रमिक जिंदा जल गए थे।गत वर्ष एक निर्माणाधिन प्रोजेक्ट की दीवार गिरने से चार मजदूर बेमौत मारे गए।यहां पर 11 मजदूर काम कर रहे थे कि अचानक दीवार गिर गई सात मजदूर तो भागकर बच गए मगर बेचारे चार मजदूर जिन्दा दफन हो गए थे ।इन मजदूरों पर 42 मीटर लंबी दीवार गिर गई यह बहुत ही दुखद हादसा था। मुम्बई के अलीबाग में एक पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 9 मजदूर मारे गए और 19 घायल हो गए थे। और दूसरी घटना में 24 फरवरी 2014 को कुल्लु के मणीकर्ण में करंट लगने से एक मजदूर की मौत हो गई थी जो के एक ठेकेदार के पास काम कर रहा था इस दर्दनाक हादसे में एक अन्य मजदूर घायल हो गया था। गोवा के कनाकोना शहर में फिर एक निर्माणाधीन इमारत गिरने से 7 लोगों की मोैेत हो गई थी। जब यह इमारत ढही उस समय 40 लोग काम कर रहे थे इस घटना ने सवाल खड़े कर दिये हैं कि बार-बार हो रहे इन हादसों के कारण क्या है इस घटना ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बीती घटनाओं से न तो सरकार ने सबक सिखा और न ही लोगों ने सीखा। हांलाकि इसयह कोई पहला हादसा नहीं है पिछले कई सालों से ऐसे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं गत वर्ष महाराष्ट्र में एक इमारत के गिरने से 75 मजदूरों की असमय मौत गई थी और 60 मजदूर घायल हो गए थे आखिर कब तक मजदूर इमारतों में जमीदोज होते रहगें।कुछ दिन पहले निर्माणाधीन यह इमारत ताश मे पतों की तरह ढह गई यहां ज्यादातर मजदूर ही रह रहे थे ।यह बहुत ही दर्दनाक हादसा था जिसने एक साथ इतने लोगों को लील लिया । प्रशासन मुआवजे का मरहम लगाता है मगर जो बेमौत मारे गये क्या वे लौट आएगें यह एक यक्ष प्रशन बनता जा रहा है। सरकार ऐसी घटनाओ के बाद मुआवजों की घोषणा करने तथा जांच के आदेश देने में देरी नहीं करती लेकिन यदि पहले ही इन लोगों पर करवाई कर ली जाए तो ऐसे हादसे रुक सकते है मगर सरकारों की तन्द्रा तो हादसे के बाद ही टूटती है। आखिर कितने हादसों के बाद प्रशासन अपनी जिम्मेवारी निभायेगा इस प्रशन का जबाब सरकार को देना होगा। इमारतो का निर्माण करने वाले ठेकेदारों को सजा ए मौत देनी चाहिए जो इन हादसों के लिये प्रत्यक्ष रुप से जिम्मेवार है।जो चंद चादी के सिक्कों के की चाहत के लिए मजदूरों की जिन्दगियां ले रहे हैं ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ा संज्ञान लेना चाहिए जो मानव की जान लेने से भी नहीें हिचकचाते ऐसे जल्लादों को सरेआम फांसी देनी चाहिए। देश में प्रतिदिन ऐसे मर्मातंक हादसे होते है मगर प्रकाश में नहीं आते। केन्द्र सरकार को मजदूरों के हित में कदम उठाने होगें तभी ऐसे मजदूर दिवसों की सार्थकता होगी।
(लेखक-नरेन्द्र भारती)
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(मजदूर दिवस पर विशेष) कोरोना महामारी में मजदूरों के हितों को सुरक्षित करना होगा ?