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बिना तथ्य एलजी-सीएम कोरोना राहत कोष की जांच की मांग करना पड़ा भारी

बिना तथ्य एलजी-सीएम कोरोना राहत कोष की जांच की मांग करना पड़ा भारी

नई दिल्ली । उपराज्यपाल-मुख्यमंत्री कोरोना राहत कोष के तहत एकत्रित धन की कथित दुरूपयोग की कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग को लेकर बिना किसी तैयारी के जनहित याचिका दाखिल किए जाने पर उच्च न्यायालय ने सोमवार को कड़ी नाराजगी जाहिर की। न्यायालय ने याचिकाकर्ता पर 50 हजार रुपये जुर्माना लगाते हुए कहा कि ऐसा लगाता है कि जनहित के लिए नहीं, बल्कि प्रचार पाने के मकसद से याचिका दाखिल की की गई है। मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायमूर्ति जसमीत सिंह की पीठ ने इस मांग को लेकर दाखिल याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता व अधिवक्ता प्रत्युष प्रसन्ना को चार सप्ताह के भीतर जुर्माने की 50 हजार रुपये विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा कराने का आदेश दिया है। पीठ ने कहा है कि ऐसा लगता है कि चाय पीते वक्त या सड़कों पर चलते वक्त याचिकाकर्ता के दिमाग में विचार आया और उन्होंने कहा कि चलों जनहित याचिका दाखिल करते हैं। इससे पहले सरकार की ओर से स्थाई अधिवक्ता संतोष त्रिपाठी ने पीठ को उपराज्यपाल-मुख्यमंत्री कोरोना राहत कोष के आने वाले और खर्च होने वाले धन के बारे में पूरी जानकारी दी। उन्होंने पीठ को बताया कि इस कोष से एक भी रुपये विज्ञापन पर खर्च नहीं किया जा सकता है। इतना ही नहीं, अधिवक्ता त्रिपाठी ने पीठ को बताया कि इस कोष से 30 हजार रुपये से अधिक के रकम खर्च करने के लिए उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। इसके बाद पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि आपको जनहित याचिका दाखिल करने से पहले इस बारे में कुछ काम करना चाहिए था, तथ्यों का पता लगाना चाहिए था, लेकिन आपने किसी के ट्वीट से मिली जानकारी के आधार पर याचिका दाखिल कर दी।
याचिकाकर्ता ने सोशल मीडिया पर सूचना के अधिकार कानून के तहत मिली जानकारी से संबंधित वायरल दस्तावेज के आधार पर यह याचिका दाखिल की थी। याचिका में उक्त आरटीआई के जावाब का हवाला देते हुए कहा है कि दिल्ली उपराज्यपाल-मुख्यमंत्री कोरोना राहत कोष में मार्च, 2020 से जनवरी 2021 के बीच 34.77 करोड़ रुपये मिले। जबकि इस इस अवधि में खर्च 17.27 करोड़ किए है। याचिका में कहा गया कि खर्च का विवरण नही दिया गया। अधिवक्ता प्रत्युष प्रसन्ना ने उच्च न्यायालय में उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री राहत कोष से से किए गए भुगतान की कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की मांग की थी। साथ ही कोरोना प्रबंधन के लिए किए गए काम बारे में विज्ञापन जारी करने पर रोक लगाने की मांग की थी।  उच्च न्यायालय ने सोमवार को कोरोना से जुड़ी नाकारात्मक खबरों के प्रसारण पर रोक लगाने की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका को आधरहीन बताते हुए खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ललित वालचा ने याचिका में कहा था कि मीडिया/चैनलों को कोरोना संक्रमण से मौत, इससे होने वाली खबरों के प्रकाशन व प्रसारण पर रोक लगाने और इस बारे में दिशा निर्देश बनाने की मांग की थी। याचिाकाकर्ता ने पीठ को बताया कि इस तरह की खबरों से लोगों में नाकारात्मकता की भावना फैल रही है। इस पर पीठ ने कहा कि कोरोना से बड़े पैमाने पर होने वाली मौत की खबरें, नाकारात्मक नहीं है। पीठ ने कहा कि यह याचिकाकर्ता के दिमाम ही इस तरह के गलत विचार है। पीठ ने कहा कि जब तक मीडिया सही तथ्यों का प्रकाशन व प्रसारण कर रही है, उस पर रोक नहीं लगाया जा सकता है।
 

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