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किसानों की बदौलत कई बार सत्ता में रहे चौधरी अजित सिंह 

किसानों की बदौलत कई बार सत्ता में रहे चौधरी अजित सिंह 

 राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह का निधन हो गया है। वह कोरोना से संक्रमित थे। तीन दिन पूर्व उनकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई। जिसके बाद उन्हें गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी तबीयत लगातार गिर रही थी और हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था। जिसके बाद  उन्होंने दम तोड़ दिया है । डाक्टरों के मुताबिक चौधरी अजित सिंह के फेफड़ों में संक्रमण बढ़ने के कारण उनकी हालत लगातार बिगड़ रही थी और दवाओं से कोई सुधार नहीं हो पाया। चौधरी अजित सिंह की मौत की खबर आते ही रालोद कार्यकर्ताओं में शोक की लहर दौड़ गई। देश के सभी राजनीतिक दिग्गज चौधरी अजित सिंह की मौत से स्तब्ध हैं और उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।  चौधरी अजित सिंह की उम्र 86 वर्ष थी और वह एक दिग्गज राजनीतिज्ञ थे।चौधरी अजित सिंह से मेरा मिलना कई बार हुआ।वे मुझे बतौर पत्रकार अच्छी तरह से जानते थे।उनसे किसान राजनीति पर कई बार चर्चाएं भी हुई। चौधरी अजित सिंह 7 बार सांसद व केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं। देश के प्रधानमंत्री रहे किसान नेता चौधरी चरण सिंह के पुत्र  चौधरी अजीत सिंह का जन्म 12 फरवरी, सन1939 को उत्तर प्रदेश के मेरठ में हुआ था।  अजीत सिंह ने लखनऊ विश्वविद्यालय और आईआईटी खड़गपुर  से शिक्षा ग्रहण की थी।सत्रह वर्ष अमरीका में बतौर कम्प्यूटर इंजीनियर काम करने के बाद चौधरी अजीत सिंह सन 1980 में अपने पिता द्वारा स्थापित लोक दल को एक बार फिर सक्रिय करने के उद्देश्य से भारत लौटे थे। इनके परिवार में उनकी पत्नी राधिका सिंह और दो बच्चे हैं।अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी मथुरा से पंद्रहवीं लोकसभा के सदस्य रहे हैं।
सन 1986 में राज्य सभा सदस्य के तौर पर संसद में प्रवेश करने के बाद चौधरी अजीत सिंह सात बार लोकसभा सदस्य रहे।सन 1987 में अजीत सिंह ने लोक दल (अजीत) नाम से लोक दल के अलग गुट का निर्माण किया था।लेकिन एक वर्ष बाद ही लोक दल (अजीत) का जनता पार्टी के साथ विलय कर दिया गया। चौधरी अजीत सिंह जनता पार्टी के अध्यक्ष बनाए गए थे। जब जनता पार्टी, लोक दल और जन मोर्चा के विलय के साथ जनता दल का निर्माण किया गया, तब चौधरी अजीत सिंह ही इसके महासचिव चुने गए।विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व की सरकार में चौधरी अजीत सिंह सन 1989-90 तक केन्द्रीय उद्योग मंत्री रहे।नब्बे के दशक में अजीत सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए थे। पी.वी. नरसिंह राव के शासनकाल में सन 1995-1996 तक वह केंद्रीय खाद्य मंत्री रहे। सन 1996 में कांग्रेस के टिकट पर जीतने के बाद वह लोकसभा सदस्य बने। लेकिन एक वर्ष के भीतर ही उन्होंने लोकसभा और कांग्रेस से इस्तीफा देकर भारतीय किसान कामगार पार्टी का निर्माण किया था। अगले उपचुनावों में वह इसी दल के प्रत्याशी के तौर पर बागपत निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीते।सन 1998 में हुई हार उनके राजनैतिक जीवन की पहली राजनीतिक असफलता कही जा सकती है। सन 1999 में अजीत सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल का गठन किया और  जुलाई सन 2001 के आम-चुनावों में अपने दल का भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर सरकार बनवाने में कामयाब हो गए। अजीत सिंह को कैबिनेट मंत्री के तौर पर कृषि मंत्रालय का पदभार सौंपा गया। इसके बाद अजीत सिंह ने अपनी पार्टी को बीजेपी और बीएसपी के गठबंधन में शामिल कर लिया। लेकिन बीजेपी और बीएसपी के अलग होने से कुछ समय पहले ही अजीत सिंह ने अपनी पार्टी को भी बीएसपी से अलग कर लिया था, जिसके कारण बीएसपी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई थी। मुलायम सिंह यादव के सत्ता में आने के साथ अजीत सिंह ने सन 2007 तक उन्हें अपना समर्थन दिया।लेकिन किसान नीतियों में मदभेद के चलते उन्होंने अपना समर्थन वापस ले लिया।सन 2009 के चुनावों में उन्होंने एनडीए के घटक के तौर पर चुनाव लड़ा और वह पंद्रहवीं लोकसभा में चुने गए थे।
 पिछले 2 लोकसभा चुनाव और 2 विधानसभा चुनावों के दौरान राष्ट्रीय लोकदल का ग्राफ तेजी से नीचे गिरा। यही वजह रही कि अजित सिंह अपने गढ़ बागपत से भी लोकसभा चुनाव हार गए थे। अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी भी मथुरा लोकसभा सीट से चुनाव हार गए थे।चौधरी अजित सिंह के निधन पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी समेत कई नेताओं ने शोक व्यक्त किया है।
चौधरी अजित सिंह अपने लम्बे सार्वजनिक जीवन में वे हमेशा जनता और जमीन से जुड़े रहे। साथ ही किसानों, मजदूरों एवं अन्य निर्बल वर्गों के हितों के लिए संघर्ष भी करते रहे।जिस तरह से पंजाब में स्थानीय निकाय चुनाव में किसान आंदोलन का समर्थन करने का फायदा कांग्रेस पार्टी को मिला है, ठीक इसी तरह उत्तर प्रदेश में किसानों की राजनीति करने वाली राष्ट्रीय लोकदल के लिए भी किसान आंदोलन ऑक्सीजन का काम कर रहा है।पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल का हमेशा से ही दबदबा रहा है। लेकिन, पिछले कुछ सालों में पार्टी की स्थिति बदतर होती गई। वेंटिलेटर पर पहुंच चुके राष्ट्रीय लोकदल को किसान आंदोलन एक बार फिर ऑक्सीजन देने की कोशिश रहे है।नए कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहा किसान आंदोलन अंतिम सांसे गिन रही पार्टी में फिर से जान डाल सकता है।इसे लेकर रालोद के नेता सक्रिय भी हैं और आशान्वित भी। पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जयंत चौधरी लगातार किसानों के बीच जा रहे हैं और उन्हें किसान मसीहा चौधरी चरण सिंह की दुहाई भी दे रहे हैं।
लखनऊ में किसानों के आंदोलन का फायदा भी राष्ट्रीय लोकदल को मिल सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता ने इस परिवार को हमेशा पलकों पर बिठाया। जयंत चौधरी को भी सांसद बनकर संसद भवन में पहुंचाया। लेकिन फिर पिता और पुत्र की जनता से दूरी बढ़ने लगी।किसान मसीहा के रूप में चौधरी चरण सिंह की ख्याति थी। उन्हें किसानों का सच्चा नेता माना जाता था। किसानों के हृदय में चौधरी चरण सिंह बसते थे, लेकिन धीरे-धीरे चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी से किसान दूरी बनाने लगे। यही वजह रही कि किसी भी सरकार में प्रतिनिधित्व तो दूर संसद और विधानसभा पहुंचने में भी दिक्कतें आने लगीं। पार्टी वर्तमान में शून्य पर है और शिखर पर पहुंचाने की कवायद में जयंत चौधरी जुटे हुए हैं।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)
(लेखक- डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट )

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