नई दिल्ली । कोरोना संकट ने देश के छोटे-लघु उद्योगों की कमर तोड़ दी है। कपडा उत्पादन से जुड़ी इकाइयों पर ज्यादा असर हुआ है। बाज़ार और मॉल्स बंद हैं, नए कपड़ों के ऑर्डर्स घटते जा रहे हैं और खरीद बिक्री का सप्लाई चैन पिछले एक महीने में फिर चरमरा गया है। क्लॉथ मनुफक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया ने एक सर्वे में पाया है किछोटे-लघु उद्योगों में 77% कपड़ा उत्पादन करने वाली इकाइयां 25% तक आपने वर्कफोर्से को काम से हटाने की योजना बना रही हैं। बाजार बंद होने से नए ऑर्डर्स नहीं आ रहे, कच्चा माल की सप्लाई भी बाधित हो गयी है। अप्रैल 2021 में 55% कपडा उत्पादन करने वाले लघु-उद्योग के तैयार सामान की सेल्स 25% से भी नीचे गिर गयी। 72% छोटे-लघु उद्योगों की यूनिट्स ने सर्वे में कहा कि उनके 50% ऑर्डर्स खरीदारों ने कैंसिल कर दिए हैं। ये संकट ऐसे वक्त पर खड़ा हुआ है जब 2021 के शुरुआत में कपडा उत्पादन इकाइयों की बिक्री प्री-कोविद के स्तर के 80% तक पहुँच गयी थी। अप्रैल में जो नुक्सान हुआ है उसके बाद मैनुफैक्चर्स हिम्मत नहीं जुटा पायेगा कि वो मई में अपना प्रोडक्शन लेवल बरक़रार रख सके। ऐसे में वर्क फोर्स कम करना होगा। रिटेल बाजार बंद हैं।
ये वित्तीय संकट कपड़ा उत्पादकों तक सीमित नहीं है। फार्मा सेक्टर को छोड़कर लगभग सभी छोटे-लघु उद्योगों में संकट गहराता जा रहा है। बड़ी संख्या में छोटी-लघु औद्योगिक इकाइयां के एनपीए के दायरे में आने का खतरा बढ़ता जा रहा है।
2020 के कोरोना संकट ने देश के करोड़ों छोटी-लघु इकाइयों की कमर तोड़ दी थी। 2021 के शुरुआत तक हालात सुधरने लगे थे। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने फिर से लाखों छोटी-लघु इकाइयों के भविष्य पर सवालिया निशाँ लगा दिया है।
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कोरोना संकट में छोटे-लघु उद्योगों की कमर टूटी