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हालात का सामना हमें मिलजुल  कर करना होगा , तभी हम सफल होंगे 

हालात का सामना हमें मिलजुल  कर करना होगा , तभी हम सफल होंगे 


दुनिया का फार्मेसी कहा जाना वाला भारत आज दुनिया भर से चिकित्सा मदद प्राप्त कर रहा है, परन्तु यह नुक्ताचीनी का समय नहीं है बल्कि सारे मतभेद भुला कर मजबूती से कोरोना को परास्त करने का है।  इसके लिए लोगों में वैज्ञानिक सोच जागृत करने की सख्त जरूरत है जिससे वे इस बीमारी को केवल दैवीय आपदा न समझ कर इसके उपाय तदनुरूप न करें और धार्मिक आडम्बरों में फंस कर अंधविश्वास का सहारा न लें। जरूरी है कि इससे निपटने के लिए केवल वैज्ञानिक उपायों का ही सहारा लिया जाये क्योंकि भारत के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार ने चेतावनी दे दी है कि कोरोना की तीसरी लहर भी आ सकती है। यह लहर भी काफी खतरनाक हो सकती है जिससे निपटने के प्रबन्ध पहले से ही कर लिये जाने चाहिएं। बेशक देश के सुलझे हुए चिकित्सा वैज्ञानिकों ने कोरोना की दूसरी लहर के आने से पहले ही सचेत किया था कि यह विपदा विनाशकारी शक्ल में उठ खड़ी हो सकती है। मगर हमने इस तरफ ध्यान नहीं दिया जिसका खामियाजा आज हम भुगत रहे हैं। परन्तु इससे हम सबक भी ले सकते हैं और तीसरी लहर को पहले से ही परास्त करने की कारगर योजना बना सकते हैं। इसमें ईश्वर पर छोड़ने जैसा कुछ भी नहीं है क्योंकि जो कुछ भी करना है वह मानव को ही करना है और अपने चिकित्सीय ज्ञान से कोरोना को निढाल करने के तरीके ईजाद करने हैं। यदि एेसा न होता तो भारत की ही एक विशुद्ध देशी कम्पनी ‘भारत बायोटेक’ ने कोवैक्सीन का उत्पादन शुरू न किया होता। मगर इस वैक्सीन को लेकर निर्रथक राजनीतिक विवाद पैदा किया गया और भारतीय चिकित्सा वैज्ञानिकों के ज्ञान व सामर्थ्य को कम करके आंका गया। 
आज स्थिति यह है कि वे ही लोग इस वैक्सीन की उत्पादन क्षमता में इजाफा करने की गुहार लगा रहे हैं जो कल तक इसे भाजपा की वैक्सीन बता रहे थे। दूसरा पहलू यह है कि कोरोना वैक्सीन के अभी तक एकमात्र अस्त्र साबित होने के बावजूद हम भारत के लोगों में इसकी उपलब्धता सुनिश्चित नहीं करा पा रहे हैं। सबसे पहले हमें सार्वजनिक क्षेत्र में स्वास्थ्य व चिकित्सा तन्त्र को मजबूत करने की दिशा में निर्णायक कदम उठाना चाहिए था। निजी क्षेत्र पर यह जिम्मेदारी छोड़ कर हम किसी भी रूप में देश की उस 70 प्रतिशत जनता को स्वास्थ्य सुरक्षा नहीं दे सकते हैं जिसकी वार्षिक आमदनी पांच लाख रुपए से नीचे की है। भारत के 26 करोड़ परिवारों में से आठ करोड़ से ज्यादा परिवार ऐसे हैं जो बामुश्किल एक कमरे के मकान में अपनी गुजर-बसर करते हैं। इनमें से किसी की क्रय क्षमता इतनी नहीं है कि वे कोरोना जैसी भयंकर बीमारी से बचने के लिए आवश्यक दवा-दारू की व्यवस्था अपने बूते पर कर सकें। इनकी बात भी अगर हम ना करें तो मध्यम वर्ग के कहे जाने वाले वे लोग जो चिकित्सा बीमा कराते हैं वे भी बीमा कम्पनियों द्वारा कोरोना चिकित्सा का दावा न दिये जाने से परेशान हैं। अतः बहुत जरूरी है कि देश के हर जिला चिकित्सालय को आधुनिकतम उपकरणों से लैस दवाखानों में जल्दी से जल्दी तब्दील किया जाये। इसके साथ ही ब्लाक स्तर तक के चिकित्सालयों में आक्सीजन की व्यवस्था किये जाने के पुख्ता इन्तजाम किये जायें। यह कार्य थोड़ा भी कठिन नहीं है क्योंकि समूचे भारत के आय संसाधनों को देखते हुए जितना हम पंचायती राज व्यवस्था को चलाने में खर्च करते हैं उतने में ही यह काम हो सकता है। सवाल सिर्फ वरीयताएं तय करने का है। 
(लेखक-अशोक भाटिया )

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