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भाजपा की प्रचंड जीत के बाद अब मोदी के सामने अर्थव्यवस्था की चुनौतियां

भाजपा की प्रचंड जीत के बाद अब मोदी के सामने अर्थव्यवस्था की चुनौतियां

 देश में संपन्न हुए आम चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी ने भाजपा के नारे मोदी है तो मुमकिन है को वाकई मुमकिन करके दिखा दिया। उनको नाम और काम पर देश की जनता ने भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया है। इस बार भी जनता को नरेंद्र मोदी से काफी उम्मीद है। पीएम मोदी ने यह आश्वासन भी दिया है कि पहले दौर में शुरू हुए विकास कार्यों और सुधारों को आगे बढ़ाया जाएगा। लेकिन आम चुनाव से कुछ महीनों पहले से ही देश में अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर नकारात्मक खबरें आने लगी थीं। ऐसे में पीएम मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि अर्थव्यवस्था को फिर से सही रफ्तार किस तरह से दें।
अर्थव्यवस्था में सुस्ती का आलम है। देश के औद्योगिक उत्पादन में गिरावट आई है, महंगाई दर बढ़ी है और इस वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि दर अनुमान से कम रहने का अनुमान है। आइए जानते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर और कौन-सी चुनौतियां हैं जिनका नई सरकार को सामना करना है।
-रोजगार की दरकार:
मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती रोजगार में तेज बढ़त करने की होगी। रोजगार के मोर्चे पर मौजूदा सरकार को काफी आलोचना का शिकार होना पड़ा था। ईपीएफओ के मुताबिक, अक्टूबर 2018 से अप्रैल अंत तक औसत मासिक नौकरी सृजन में 26 फीसदी की गिरावट आई है। नौकरियों के सृजन के मोर्चे पर भी गति काफी धीमी है। हाल में मीडिया में लीक एनएसएसओ की पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) रिपोर्ट में कहा गया था कि 2017-18 में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसदी तक पहुंच गई जो 45 साल में सबसे ज्यादा है। पिछले वर्षों में आए लगभग सभी चुनावी सर्वे में लोगों की सबसे बड़ी चिंता बेरोजगारी को बताया गया है।
-औद्योगिक उत्पादन में गिरावट:
औद्योगिक उत्पादन में गिरावट सरकार के लिए चिंता की बात है। उद्योंगों को अर्थव्यवस्था का सबसे मजबूत पहिया माना जाता है जिनके दम पर रोजगार सृजन जैसा जरूरी कार्य संभव होता है। विनिर्माण क्षेत्र में सुस्ती बने रहने की वजह से इस साल मार्च में देश का औद्योगिक उत्पादन (आईआईपी) में पिछले साल इसी माह की तुलना में 0.1 फीसदी की गिरावट आई है। पूरे वित्त वर्ष 2018-19 में औद्योगिक वृद्धि दर 3.6 प्रतिशत रही। यह पिछले 3 साल में सबसे कम है।
-जीडीपी में अपेक्षा से बढ़त कम हुई:
देश में आर्थिक वृद्धि दर (जीडीपी) वित्त वर्ष 2018-19 में सिर्फ 6.98 फीसदी रहने का अनुमान है, जो पिछले वित्त वर्ष की जीडीपीग्रोथ रेट 7.2 फीसदी से कम है। रिजर्व बैंक के हाल के एक विश्लेषण के मुताबिक सरकारी खर्च में कमी और आयात के बढ़ते जाने की वजह से जीडीपी में वृद्धि अनुमान से कम होगी। जीडीपी ही अर्थव्यवस्था की तरक्की को मापने का सबसे बड़ा आंकड़ा होता है।
-घटता सरकारी खर्च:
रिजर्व बैंक के मुताबिक फिक्स्ड डिपॉजिट जैसे निवेश में बढ़त और निजी खपत में बढ़त हो रही है, लेकिन सरकारी खर्चों में कमी आई है। जानकारों का कहना है कि वित्त वर्ष के अंत यानी मार्च तक सरकारी खर्च बढ़ जाते हैं। लेकिन इस बार राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के लिए सरकार ने अपने खर्चों में कटौती किया। 
-निर्यात हुआ घटा:
निर्यात की वृद्धि दर अप्रैल में चार महीने के निचले स्तर पर आ गई। अप्रैल में वस्तुओं का निर्यात पिछले साल के समान महीने की तुलना में 0.64 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 26 अरब डॉलर रहा, इससे व्यापार घाटा भी पांच महीने के उच्चस्तर पर पहुंच गया। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार अप्रैल माह में माह में आयात महज 4.5 प्रतिशत बढ़कर 41.4 अरब डॉलर रहा, हालांकि इतने कम बढ़त के बावजूद छह माह की सबसे अधिक वृद्धि है। -राजकोषीय घाटा बढ़ा:
टैक्स कलेक्शन कम होने से वित्त वर्ष 2018-19 (अप्रैल-मार्च) के शुरुआती 11 महीनों में भारत का राजकोषीय घाटा बजटीय लक्ष्य का 134.2 फीसदी हो गया। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्ष (सीजीए) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष के शुरुआती 11 महीनों में राजकोषीय घाटा उस साल के लक्ष्य का 120.3 फीसदी था। वित्त वर्ष 2019-20 में राजकोषीय घाटा 7.04 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है जो सकल घरेलू उत्पाद का 3.4 फीसदी है। राजकोषीय घाटे को काबू में रखना और सरकारी खर्च बढ़ाना एक तरह से संतुलन साधने की चुनौती मोदी सरकार के सामने होगी।
-देश पर बढ़ता कर्ज:
देश पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। इसे काबू में लाना भी मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। सितंबर, 2018 तक के लिए ही जारी रिपोर्ट के अनुसार भाजपा सरकार के कार्यकाल में देश पर कर्ज 49 प्रतिशत बढ़कर 82 लाख करोड़ पहुंच गया है।
-कच्चे तेल और महंगाई की चुनौती:
अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर अमेरिका-चीन के बीच ट्रेड वॉर से तनाव बढ़ा है और अमेरिका ने ईरान से तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसकी वजह से कच्चे तेल की कीमत बढ़ने लगी है। ब्रेंड क्रूड ऑयल का रेट करीब 69 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया है। देश की खुदरा महंगाई अप्रैल में 2.92 फीसद रही जो मार्च के 2.86 फीसद की तुलना में अधिक है। वास्‍तव में, खाद्य पदार्थों के दामों में हुई बढ़ोतरी की वजह से अप्रैल में मार्च की तुलना में खुदरा महंगाई में इजाफा हुआ है।  
-मॉनसून और प्री-मॉनसून :
आगे अर्थव्यवस्था क्या मोड़ लेती है, इसके लिए कच्चे तेल की कीमतों के अलावा मॉनसून पर भी नजर रखनी होगी। इस साल मार्च से मई महीने के दौरान होने वाले प्री-मॉनसून बारिश में 22 फीसदी की गिरावट आई है। इस गिरावट से गन्ना, सब्जियों, फलों और कपास जैसे फसलों के उत्पादन पर विपरीत असर पड़ सकता है। मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली निजी एजेंसी स्काईमेट के मुताबिक इस बार मॉनसून दो दिन की देरी से आ सकता है। एजेंसी ने मानसून के 4 जून को केरल पहुंचने का पूर्वानुमान लगाया है। मॉनसून के सामान्य से नीचे 93 फीसदी तक रहने की संभावना है।

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