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प्रधान मंत्री का एकाधिकार ही गिरावट  का कारण   एको हि पुरुषः केशु नाम  कार्येरश्वातमानं विभजते (१०/८१)

प्रधान मंत्री का एकाधिकार ही गिरावट  का कारण   एको हि पुरुषः केशु नाम  कार्येरश्वातमानं विभजते (१०/८१)


            अकेला आदमी अपने को किन किन कार्यों में नियुक्त कर सकता हैं ?नहीं कर सकता .सारांश यह हैं की राजकीय बहुत से कार्य होते हैं ,उन्हें अकेला मंत्री किस प्रकार सम्पन्न कर सकता हैं ?नहीं कर सकता ,अतएव अलग अलग विभागों के लिए बहुत से मंत्री आदि सहायक होने चाहिए .
            जैमिनी विद्वान् ने कहा हैं की "जो राजा अपनी मूर्खता से एक मंत्री को ही रखता हैं व दूसरे सहायकों को नहीं रहता ,इससे उसके बहुत से राजकार्य नष्ट हो जाते हैं .
               इस हिसाब ने हमारे प्रधान मंत्री ने पूरे देश की बागडोर  अपने ऑफिस के अंतरगत रखा हैं जिससे अधिकतम विफलता देखने मिल रही हैं .यानी एकाधिकार के कारण हर क्षेत्र में विफलता मिल रही हैं .इसी बात की पुष्टि निम्म लेख से मिल सकती हैं
            भारत में कहर ढा रही कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने समाज के हर तबके को प्रभावित किया है। वायरस की पहली लहर इतनी अधिक भयावह नहीं थी। मई के पहले सप्ताह में एक दिन में संक्रमित लोगों का आंकड़ा चार लाख और मृतकों की संख्या चार हजार से अधिक हो चुकी है। अस्पतालों में लोग बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर और दवाइयों की कमी से जूझ रहे हैं। मध्यम वर्ग के बहुत बड़े हिस्से पर संकट की जबर्दस्त मार पड़ी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करने वाला यह वर्ग अब बेचैन है। वह मोदी के खिलाफ सोशल मीडिया पर सामने आया है। ग्लोबल लीडर्स एप्रूवल रेटिंग ट्रैकर के अनुसार मोदी की लोकप्रियता में 13% की गिरावट आई है।
          वायरस का प्रकोप शुरू होने के बाद पिछले साल मध्यम वर्ग के कई लोग मंदी से प्रभावित हुए थे। वाशिंगटन स्थित प्यू रिसर्च सेंटर का अनुमान है, बीते वर्ष मध्यम वर्ग के लोगों की संख्या तीन करोड़ 20 लाख कम हो गई है। पूर्व आईपीएस अधिकारी और कांग्रेस पार्टी के नेता अजय कुमार कहते हैं, लोग पहली लहर में कोविड-19 से दूसरे लोगों की मौत की खबर सुनते थे। अब तो स्वयं उनके परिजन प्रभावित हो रहे हैं।
          दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल की एक महिला डॉक्टर बताती हैं, वे मध्यम वर्ग के कई लोगों का इलाज कर रही हैं। लोग अपने पिता, मां, बच्चों या पत्नी की जान की भीख मांगते हैं। वे असहाय हैं, क्रोधित हैं। इस महिला डॉक्टर को ही अपनी मां को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए सीनियर डॉक्टरों से मिन्नत करना पड़ी थी। उन्हें ब्लैक में दस हजार रुपए देने के बाद भी रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिला। वे बताती हैं, उन्हें बहुत गुस्सा आया लेकिन क्या किया जा सकता था। नई दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े फराज मिर्जा की भी ऐसी ही भावनाएं हैं। 21 अप्रैल को सेंट स्टीफन अस्पताल में उनके पिता की मृत्यु हो गई। अधिकृत कारण दिल का दौरा बताया गया, लेकिन उस दिन अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म हो गई थी।
                   भारतीय मध्यम वर्ग का बड़ा हिस्सा मोदी की भारतीय जनता पार्टी का समर्थक रहा है। विश्लेषकों का कहना है, अब यह मोदी के खिलाफ खड़ा हो रहा है। सेंटर फॉर स्टडी डेवलपिंग सोसायटीज में चुनावी राजनीति के रिसर्च प्रोग्राम लोकनीति के सह डायरेक्टर संजय कुमार कहते हैं, मोदी ने बहुत लोगों को निराश किया है। इनमें मध्यम वर्ग का बड़ा हिस्सा शामिल है। प्रधानमंत्री के काम को नापसंद करने वालों लोगों की संख्या अगस्त 2019 के 12% से इस वर्ष अप्रैल में बढ़कर 28% हो गई है। कुमार कहते हैं, लगता है,मोदी ने संकट पर अधिक ध्यान नहीं दिया और लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया।
            चुनाव बताएंगे मोदी से मध्यम वर्ग कितना नाराज
            2020 में कुछ घंटे के नोटिस पर लागू लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था में नाटकीय गिरावट पैदा की थी। अक्टूबर 2020 में औसत पारिवारिक आमदनी पिछले साल के मुकाबले 12% कम हो गई। प्यू रिपोर्ट के अनुसार गरीबों के साथ लोअर मिडिल क्लास पर भी आर्थिक बोझ पड़ा है। भारत में 2024 तक आमचुनाव नहीं होंगे। लेकिन, राज्य विधानसभा के चुनावों खासकर बंगाल में भाजपा को निराशा हाथ लगी है। हालांकि वर्तमान संकट के व्यापक राजनीतिक प्रभाव का आकलन  करना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन मोदी की रेटिंग उतार पर है।
            मॉर्निंग कंसल्ट ग्लोबल लीडर्स एप्रूवल रेटिंग ट्रैकर और अन्य सर्वे डेटा के अनुसार अगस्त 2019 से जनवरी 2021 के बीच मोदी की एप्रूवल रेटिंग लगभग 80% के आसपास रही। मतलब इतने प्रतिशत लोग उनके कामकाज को पसंद करते थे। इस वर्ष अप्रैल में रेटिंग 67% हो गई है। यानी मोदी की लोकप्रियता  13% कम हो गई है। अगले साल उत्तरप्रदेश सहित कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों से कोविड-19 के राजनीतिक असर का आकलन हो सकेगा। विशेषज्ञ कहते हैं, संकट का सामना सही तरीके से ना करने और स्थिति की गंभीरता की अनदेखी के कारण मोदी का मध्यम वर्गीय आधार प्रभावित हो सकता है।
27.30 करोड़ व्यक्ति गरीबी की रेखा से बाहर निकलकर मध्यम वर्ग में शामिल हुए थे देश में 2006 से 2016 के बीच।
60 करोड़ के आसपास मध्यमवर्ग की आबादी। इनमें डॉक्टर, आईटी वर्कर, छोटे व्यवसायी, सरकारी कर्मचारी शामिल हैं।
(लेखक -विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन )

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