नई दिल्ली। दिल्ली के कई शरणार्थी शिविरों में रह रहे रोहिंग्या मुस्लिमों के पास न तो इलाज के लिए पैसा है और न ही टीका लगवाने के लिए दस्तावेज हैं जिससे वह जीवित रहने के लिए खुद ही संघर्ष कर रहे हैं। सरकार ने उन लोगों के लिए जांच और टीकाकरण के दिशा निर्देशों को आसान बनाया है जिनके पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं है लेकिन कई शरणार्थियों का कहना है कि जमीनी स्तर पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ा है। झुग्गी बस्ती में रह रहे लोगों का कहना है कि नमक के पानी से गरारे कर स्थिति गंभीर होने पर अपनी तंग झुग्गियों में ही पृथक रह रहे हैं। एक युवा दिहाड़ी मजदूर आमिर में कोरोना वायरस के लक्षण दिख रहे हैं उसे नहीं पता कि हालत बिगड़ने पर क्या करेगा। ऐसा ही हाल उसके साथ रह रहे अन्य लोगों का भी है। मदनपुर खादर शिविर में करीब 20-25 लोगों में लक्षण हैं।
गैर सरकारी संगठनों के अनुसार, भारत में करीब 40,000 रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं। मदनपुर खादर, कालिंदी कुंज और शाहीन बाग में शिविरों में करीब 900 शरणार्थी रह रहे हैं। नासिर ने छह महीने पहले अपनी पत्नी को खो दिया था। उसे लगता है कि पत्नी को कोविड-19 था लेकिन वह यकीन से नहीं कह सकता। हालांकि किसी तरह वह उसे अस्पताल ले जा पाया था। उसने कहा, कोविड जैसे लक्षणों से जूझने के बाद मेरी पत्नी की मौत हो गई। मैं अपनी पत्नी को अस्पताल ले गया था, लेकिन इलाज मिलने से पहले ही उसकी मौत हो गई थी। उसने बताया कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी किए पहचान पत्र से उसे अस्पताल में भर्ती कराने में मदद मिली। कई अन्य शरणार्थी ऐसा करने से डरते हैं क्योंकि उन्हें आशंका है कि शरणार्थी के तौर पर पहचाने जाने के बाद उन्हें प्रत्यर्पित कर दिया जाएगा। पड़ोस में किराने की दुकान चलाने वाले नासिर ने यह भी कहा कि जब लोगों को लक्षण दिखते हैं तो वह डर जाते हैं।
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बिना पैसे और दस्तावेजों के कोरोना की जंग लड़ रहे हैं रोहिंग्या शरणार्थी -नासिर ने कहा कि जब लोगों को लक्षण दिखते हैं तो वह डर जाते हैं