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पीएम रहते सुरैया की दीवानगी में खो गए थे पंडित नेहरू, देविका रानी को लिखे अनगिनत पत्र

पीएम रहते सुरैया की दीवानगी में खो गए थे पंडित नेहरू, देविका रानी को लिखे अनगिनत पत्र

पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की पुण्यतिथि 27 मई को होती है। जवाहरलाल नेहरू को  राजनीति के अलावा फिल्मों का भी काफी शौक था। उस दौर की अभिनेत्रियों में वह सुरैया और देविका रानी के दीवाने थे। वह उनकी कोई भी फिल्म नहीं छोड़ते थे। 
सन 1954 में प्रदर्शित हिंदी सिनेमा की कालजयी फिल्म 'मिर्जा गालिब' में सुरैया ने नवाब जान का किरदार निभाया था, जो शायर गालिब से प्यार करती थी। फिल्म में गालिब की पांच गजलों को सुरैया ने अपनी आवाज दी। सुरैया की आवाज ही नहीं आंखों में भी कुछ ऐसा था कि जो उन्हें देखता उसमें कैद हो कर रह जाता था। नेहरू ने जब उनका गाना सुना तो सुरैया उनके दिल में समाती चली गईं।  
मन की बात मन में ही दबी रह गई। काफी दिन बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस बात का खुलासा एक समारोह में किया। सुरैया से जब उनकी मुलाकात हुई, तो नेहरू ने उनसे कहा आपने गालिब की रुह को जिंदा कर दिया। बीती पीढ़ी के राजनेताओं में जवाहरलाल नेहरू अकेले ऐसे राजनेता थे जिन्होंने अपने सिनेमा-प्रेम को कभी छिपाने की कोशिश नहीं की। बल्कि उनकी हमेशा यही कोशिश होती थी कि इसमें परिजन, पुरजन या प्रियजन उनका साथ दे। 
अकेले उन्हें किसी सिनेमाघर पहुंच कर शो का टिकट खरीदने में स्वाभाविक संकोच होता था। ऐसी फिल्मों में सिर्फ अंग्रेजी की फिल्में नहीं होती थीं, बल्कि देसी फिल्मों से भी उनको उतना ही अनुराग था जितना ब्रिटेन या हॉलीवुड में बनी फिल्मों से। 
जवाहर लाल जी उस जमाने में देविका रानी के प्रशंसक थे। वह उनकी कोई फिल्म नहीं छोड़ते थे। उन्होंने देविका रानी के अभिनय की प्रशंसा में कुछ पत्र भी लिखे थे। ऐसे ही एक पत्र में उन्होंने देविका  रानी से एक हस्ताक्षरित तस्वीर भेजने का आग्रह भी किया था। इसका देविका रानी की ओर से कोई जवाब नहीं मिल पाया। इस बात का उल्लेख स्वयं देविका रानी ने भी किया है। बंगलुरू में एक कार्यक्रम में देविका रानी ने बताया कि उन्होंने आजादी मिलने के बाद नेहरू जी के उन सभी पत्रों को राष्ट्रीय अभिलेखागार नेशनल आर्काइव्ज़ को सौंप दिया है। उनको वहां देखा जा सकता है।
देविका रानी ने बताया कि अपने काम के दिनों में उन्होंने कभी किसी प्रशंसक के पत्रों का जवाब नहीं दिया। नेहरू जी भी उसके अपवाद नहीं थे। लेकिन उनके पत्रों का महत्व उन्हें मालूम था, इस लिए उन्होंने उनके पत्रों को सुरक्षित रखा। बाद में एक बार दिल्ली में आयोजित किसी समारोह में उनकी भेंट जब जवाहर लाल नेहरू से हुई तब उन्होंने इस राज का खुलासा किया और तत्कालीन केन्द्रीय संस्कृति मंत्री हुमायूं कबीर की सलाह पर वह पत्र अभिलेखागार के सुपुर्द कर दिए गए।

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