हाल ही में मुंबई में २४ साल की डॉक्टर पायल तड़वी की आत्महत्या को लेकर हर तरफ आक्रोश का माहौल है. शिवसेना ने भी अपने मुखपत्र सामना में सवाल उठाए हैं. शिवसेना की ओर से कहा गया है कि पायल तड़वी की दर्दनाक दास्तान महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य कहलाने वाले समाज पर सवालिया निशान खड़ा करती है. रैगिंग विरोधी कानून बने दो दशक बीत चुके हैं लेकिन हालात वैसे के वैसे हैं. अभी तक रैंगिंग का भूत बोतल में बंद नही हो सका है और यह इस समाज की भयंकर सच्चाई है. सामना में आगे कहा गया है कि रैगिंग सिर्फ कानून से नियंत्रित नहीं हो सकती. रैगिंग का भस्मासुर बेलगाम हो चुका है. ऐसे में सवाल यह है कि पायल की आत्महत्या के बाद क्या इस पर लगाम लगेगी? इसके लिए सरकार, शैक्षणिक तंत्र और समाज को रैगिंग का जवाब ढूंढना होगा. बता दें कि डॉक्टर पायल तडवी बीवाईएल नायर हॉस्पिटल से एमडी की पढ़ाई कर रही थीं. उनका दूसरा साल चल रहा था. परिजनों का आरोप है कि आरोपी डॉक्टर्स उनकी बेटी का मानसिक उत्पीड़न के साथ ही जातीय टिप्पणी भी करते थे. सीनियर्स के इस व्यवहार से पायल बेहद परेशान रहती थी. इस मामले में अखिलेश यादव, जिग्नेश मेवानी के अलावा जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार ने ट्वीट कर रोष जाहिर किया है. कन्हैया ने लिखा है- जातिवाद ने पायल जैसी प्रतिभाशाली डॉक्टर की जान ले ली. दोषियों को सज़ा दिलाने की मांग करने के साथ जातिगत भेदभाव के तमाम मामलों में न्याय दिलाने के लिए पूरे देश के स्तर पर आंदोलन करने की जरूरत है. रोहित वेमुला के मामले में भी अभी तक दोषियों को सज़ा नहीं मिली है.