YUV News Logo
YuvNews
Open in the YuvNews app
OPEN

फ़्लैश न्यूज़

आर्टिकल

ब्लैक फंगस ,वाइट फंगस और येलो फंगस का खतरा?जिंक का सेवन करने वालों को ज्यादा है  (महत्वपूर्ण जानकारी )

ब्लैक फंगस ,वाइट फंगस और येलो फंगस का खतरा?जिंक का सेवन करने वालों को ज्यादा है  (महत्वपूर्ण जानकारी )

कोविड-19  से बचाव या इसके इलाज में लोगों ने भारी मात्रा में जिंक का सेवन किया है। जिसके बाद इसी से ब्लैक फंगस  के मामले बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
कोविड-19 के मरीजों में ब्लैक फंगस के मामलों ने नया खतरा देश के सामने ला दिया है। देश के कई राज्यों में ब्लैक फंगस के मामले अचानक बढ़ने लगे हैं। इसी के चलते तमिलनाडु, गुजरात, बिहार समेत कई राज्यों ने ब्लैक फंगस (म्यूकॉरमायकोसिस) को महामारी घोषित कर दिया है। अब एक्सपर्ट्स ने आशंका जताई है कि कोरोना के मरीजों में ब्लैक फंगस  का खतरा बढ़ने के पीछे कोरोना के इलाज के लिए जिंक का अत्यधिक सेवन भी बड़ी वजह हो सकती है।
जिंक और आयरन जैसे मेटल का शरीर में अधिक मात्रा में होना ब्लैक फंगस के संक्रमण को फैलने का उचित वातावरण प्रदान करता है। चूंकि, कोरोना से बचाव व इसके इलाज के लिए लोगों ने जिंक का भारी मात्रा में सेवन किया है, इसलिए ब्लैक फंगस  के बढ़ते मामलों के पीछे यह भी एक वजह हो सकती है। जिसके बारे में आगे जांच व अध्ययन किया जाना चाहिए।
कोविड-19 पेशेंट में स्टेरॉयड का अत्यधिक इस्तेमाल भी ब्लैक फंगस के बढ़ने का कारण हो सकता है। इसके साथ ही मधुमेह के रोगी और स्टेरॉयड के कारण ब्लड शुगर का लेवल बढ़ना भी एक जोखिम हो सकता है। वहीं, यह भी देखा गया है कि लंबे समय तक ऑक्सीजन सिलेंडर के मास्क का उपयोग और उससे जुड़े ह्यूमिडिफायर में नल का पानी भरने से भी संक्रमण का खतरा बढ़ गया है।
इसके अलावा औद्योगिक ऑक्सीजन का उपयोग से भी बहुत अधिक दुष्परिणाम देखने मिले हैं जो जाँच का विषय होना चाहिए .इसके साथ मधुमेह रोगियों के अलावा अन्य को भी दुष्परिणामों  से भी सामाना करना पड़ा हैं
ब्लैक फंगस
कोरोना के मरीजों को ब्लैक फंगस यानी म्यूकॉरमायकोसिस ) से सबसे ज्यादा खतरा क्यों है? क्या ब्लैक फंगस से बचाव किया जा सकता है।
कोविड-19  के बाद ब्लैक फंगस ने भारत में डर का माहौल गहरा दिया है। इसकी गंभीरता को देखते हुए कई राज्य सरकारों ने इसे भी महामारी घोषित कर दिया है।
म्यूकोरमायकोसिस यानी ब्लैक फंगस क्या है?
ब्लैक फंगस का मेडिकल नाम म्यूकॉरमायकोसिस है। जो कि एक दुर्लभ व खतरनाक फंगल संक्रमण है। ब्लैक फंगस इंफेक्शन वातावरण, मिट्टी जैसी जगहों में मौजूद म्यूकॉर्मिसेट्स नामक सूक्ष्मजीवों की चपेट में आने से होता है। इन सूक्ष्मजीवों के सांस द्वारा अंदर लेने या स्किन कॉन्टैक्ट में आने की आशंका होती है। यह संक्रमण अक्सर शरीर में साइनस, फेफड़े, त्वचा और दिमाग पर हमला करता है।
कोरोना और ब्लैक फंगस  में क्या है रिश्ता?
वैसे, तो हमारा इम्यून सिस्टम यानी संक्रमण व रोगों के खिलाफ लड़ने की क्षमता ब्लैक फंगस यानी म्यूकॉरमायकोसिस के खिलाफ लड़ने में सक्षम होता है। लेकिन, कोविड-19 (कोरोनावायरस) हमारे इम्यून सिस्टम  को बेहद कमजोर कर देता है। इसके साथ ही कोविड-19 के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयां व स्टेरॉयड भी इम्यून सिस्टम पर असर डाल सकते हैं। इन प्रभावों से कोरोना के मरीज का इम्यून सिस्टम बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाता है। इसी कारण, कोविड-19 के मरीज का इम्यून सिस्टम ब्लैक फंगस के कारक सूक्ष्मजीवों (म्यूकॉर्मिसेट्स) के खिलाफ लड़ नहीं पाता।
किन लोगों को ज्यादा है ब्लैक फंगस का खतरा?
यह फंगल इंफेक्शन किसी भी उम्र व लिंग के लोगों को हो सकता है। हम अपनी जिंदगी में कई बार इसके संपर्क में आकर ठीक भी हो जाते होंगे और हमें पता भी नहीं लगता। क्योंकि, हमारा इम्यून सिस्टम म्यूकॉरमायकोसिस के खिलाफ आसानी से लड़ सकता है। मगर, जिन लोगों में किसी गंभीर बीमारी या दवाइयों के कारण इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है, उन्हें इस फंगल इंफेक्शन का खतरा ज्यादा होता है। जैसे
- एचआईवी या एड्स, कैंसर, डायबिटीज, ऑर्गन ट्रांसप्लांट व्हाइट ब्लड सेल का कम
होना ,लंबे समय तक स्टेरॉयड का इस्तेमाल ,ड्रग्स का इस्तेमाल ,पोषण की कमी, प्रीमैच्योर बर्थ, आदि
म्यूकॉरमायकोसिस ब्लैक फंगस के लक्षण
म्यूकॉरमायकोसिस के लक्षण हर मरीज में अलग-अलग हो सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करते हैं कि यह फंगस आपके शरीर के किस भाग पर विकसित हो रहा है।
बुखार ,आंखों में दर्द, खांसी ,आंख की रोशनी कमजोर होना, छाती में दर्द सांस का फूलना साइनस कंजेशन, मल में खून आना ,उल्टी आना, सिरदर्द, चेहरे के किसी तरफ सूजन, मुंह के अंदर या नाक पर काले निशान, पेट में दर्द, डायरिया ,शरीर पर कुछ जगह लालिमा, छाले या सूजन आना
ब्लैक फंगस की जांच
ब्लैक फंगस (म्यूकॉरमायकोसिस) का पता लगाने के लिए  आपके शरीर का फिजिकल एग्जामिनेशन करना । इसके अलावा, आपके नाक व गले से नमूने लेकर जांच करवा सकता है।
संक्रमित जगह से टिश्यू बायोप्सी करके भी इस संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। जरूरत होने पर एक्सरे, सीटी स्कैन व एमआरआई भी किया जा सकता है। जिससे यह पता लगाया जा सके कि फंगल इंफेक्शन शरीर के किस-किस भाग तक पहुंच गया है।
म्यूकॉरमायकोसिस व ब्लैक फंगस का इलाज
म्यूकॉरमायकोसिस का पता लगते ही आपको जल्द से जल्द इसका इलाज शुरू कर देना चाहिए। जिससे शरीर में संक्रमण को तुरंत खत्म या नियंत्रित किया जा सके। इसके लिए आपको डॉक्टर एंफोटेरिसिन-बी , पोसाकोनाजोल  जैसी कुछ एंटीफंगल ड्रग्स को आईवी या गोली के द्वारा लेने की सलाह  दे सकता है। कुछ गंभीर मामलों में संक्रमित क्षेत्रों से सर्जरी के द्वारा टिश्यू हटाए जाते हैं, ताकि यह दूसरे क्षेत्रों तक न फैले।
ध्यान रखें कि यह जानकारी सिर्फ जागरुकता के लिए दी गई है। किसी भी दवा का इस्तेमाल या इस बीमारी का इलाज खुद न करें। डॉक्टर से सलाह लेना ही उचित है। यह जानकारी किसी भी डॉक्टरी सलाह का विकल्प नहीं है।
व्हाइट फंगस के लक्षण बिल्कुल कोविड-19 जैसे होते हैं, जिसकी जांच चेस्ट एक्सरे या एचआरसीटी के द्वारा की जाती है।
भारत के लोगों के लिए एक के बाद एक परेशानी सामने आती जा रही है। पहले कोविड-19 की दूसरी लहर ) ने देश को हिलाकर रख ही रखा था, तो उसके बाद ब्लैक फंगस  ने लोगों की हालत खराब कर दी। इतना ही नहीं, ब्लैक फंगस के बाद व्हाइट फंगस के मामले भी पटना में देखने को मिले।
एक्सपर्ट के मुताबिक व्हाइट फंगस, ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरनाक है।
 कोविड-19 और व्हाइट फंगस का सबसे बड़ा और आम रिश्ता यह है कि इस फंगल इंफेक्शन के फेफड़ों  तक पहुंचने के बाद दिखने वाले लक्षण बिल्कुल कोरोना के लक्षणों से मेल खाते हैं। मरीज कोविड-19 टेस्ट  करवाते रहते हैं, लेकिन रिजल्ट नेगेटिव आने के साथ लक्षण बने रहते हैं। यह फंगल संक्रमण भी कमजोर इम्यून सिस्टम (रोग व संक्रमण से लड़ने की शारीरिक क्षमता) वाले लोगों को शिकार बनाता है। चूंकि, कोरोनावायरस पहले ही शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर कर देता है, इसलिए व्हाइट फंगस के लिए मरीज को अपना शिकार बनाना आसान हो जाता है। एचआरसीटी के माध्यम से व्हाइट फंगस के कारण भी फेफड़ों में कोरोना जैसे पैच दिखाई दे सकते हैं।
अभी तक व्हाइट फंगस के फैलने के पीछे का सटीक कारण मालूम नहीं हो पाया है। लेकिन कई एक्सपर्ट्स ने कोरोना पेशेंट्स के शरीर में इस संक्रमण के पहुंचने की आशंका ऑक्सीजन सिलेंडर के जरिए बताई है। उनके मुताबिक, गंदे-मैले ऑक्सीजन सिलेंडर या ऑक्सीजन सिलेंडर से जुड़े ह्यूमिडिफायर में नल का पानी इस्तेमाल करने से व्हाइट फंगस इंफेक्शन हो सकता है। इसके साथ ही, स्टेरॉयड का अधिक इस्तेमाल भी एक वजह हो सकती है।
क्यों ब्लैक फंगस  से ज्यादा खतरनाक है व्हाइट फंगस ?
व्हाइट फंगस भी ब्लैक फंगस की तरह शरीर के कई भागों जैसे फेफड़े, त्वचा, दिमाग आदि पर हमला करता है। लेकिन जो कारण इसे ब्लैक फंगस यानी म्यूकॉरमायकोसिस से ज्यादा खतरनाक बनाता है, वो है शरीर में इसके फैलने की तीव्रता और गंभीरता। यह ब्लैक फंगस  के मुकाबले ज्यादा तेजी से फेफड़ों व शरीर के अन्य महत्वपूर्ण अंगों जैसे दिमाग, पाचन तंत्र, किडनी, नाखून व गुप्तांगों तक फैलता है और गंभीर क्षति पहुंचाता है। कोविड-19 के मरीजों के फेफड़े पहले से ही कमजोर होते हैं और फिर इस संक्रमण के तेज और गंभीर हमले को झेल नहीं पाते। व्हाइट फंगस ) के खतरनाक होने के पीछे अभी तक यही वजह दिखाई देती है।
देश में व्हाइट फंगस के शुरुआती मामले को एस्परगिलस और कैंडिडा फंगल इंफेक्शन  का मिला-जुला रूप माना जा रहा है। यह दोनों ही फंगल इंफेक्शन हैं। जहां कैंडिडा मुख्य रूप से त्वचा के किसी भी भाग पर हो सकता है, वहीं एस्परगिलस एक एलर्जी है, जो त्वचा से लेकर फेफड़े, दिमाग, किडनी आदि को नुकसान पहुंचा सकती है। व्हाइट फंगस में एस्परगिलस का रूप ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।
वातावरण, मिट्टी, पेड़-पौधे में आमतौर पर मिलने वाले सूक्ष्मजीवों के सांस द्वारा शरीर में जाने पर एस्परगिलस इंफेक्शन हो सकता है। अमूमन हमारा शरीर इस प्रकार के इंफेक्शन से लड़ने में सक्षम होता है। मगर कोरोना, एचआईवी-एड्स, मधुमेह, अस्थमा जैसी किसी बीमारी के कारण कमजोर हुआ इम्यून सिस्टम ढंग से लड़ नहीं पाता। इसके बाद शरीर में निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं।
बुखार कमजोरी खांसी में खून के थक्के सांस फूलना वजन घटना जोड़ों में दर्द ,नाक से खून आना त्वचा पर निशान, आदि
       जांच कैसे की जाती है?
       व्हाइट फंगस की जांच के लिए डॉक्टर निम्न टेस्ट का सुझाव दे सकता है। जैसे
     चेस्ट एक्सरे, ब्लड टेस्ट,सीटी स्कैन, आदि
      व्हाइट फंगस का इलाज व बचाव
      व्हाइट फंगस के इलाज के लिए एंटीफंगल मेडिसिन इस्तेमाल कर सकते हैं। आमतौर पर, एस्परगिलस के इलाज के लिए एंफोटेरिसिन-बी, वोरीकोनाजोल आदि ड्रग्स का इस्तेमाल किया जा सकता है। वहीं, व्हाइट फंगस का एकदम पुख्ता बचाव नहीं किया जा सकता, लेकिन फिर भी कुछ हद तक एहतियात बरती जा सकती है। जैसे
धूल-मिट्टी या गंदगी वा  ली जगह पर न जाना
मास्क का प्रयोग करना
इम्यून सिस्टम को मजबूत करने वाले खाद्य पदार्थ खाना
योग व एक्सरसाइज
     यलो फंगस  का पहला केस मिला है। यह केस उत्तर प्रदेश  के गाजियाबाद  में पाया गया। डॉक्टरों ने मरीज की सर्जरी की है। डॉक्टरों का कहना है कि यह फंगस  जानलेवा हो सकता है। यह अभी तक रेपटाइल में पाया जाता था। पहली बार इंसान में मिला है।
     ब्लैक फंगस, वाइट फंगस के बाद अब देश में यलो फंगस का पहला मामला मिला है। यलो फंगस का मरीज मिलने के बाद डॉक्टरों की चिंता बढ़ गई है। यह वायरस मरीज के लिए जानलेवा हो सकता है। उसमें नंजल एंडोस्कोपी के बाद यलो फंगस का पता चला। यह फंगस इंसान में पहली बार पता चला है।
      रेपटाइल्स में होता है यलो फंगस
      यह यलो फंगस छिपकली जैसे रेपटाइल्स में होता था। यह जिस रेपटाइल को होता है वह जिंदा नहीं बचता। इसलिए यह जानलेवा माना जाता है। लेकिन पहली बार यह इंसान में मिला है।  यह म्युकस सेप्टिकस होता है। इंसान के शरीर में घाव बनाता है। इसे हीलिंग होने में समय लगता है। सेप्टीसीमिया पैदा कर सकता है। यहां तक कि सारे ऑर्गन डैमेज कर सकता है।
   यलो फंगस के लक्षण
    नाक का बंद होना
   शरीर के अंगों का सुन्न होना।
- शरीर में टूटन होना और दर्द होना।
- कोरोना से ज्यादा शरीर में वीकनेस होना।
- हार्ट रेट का बढ़ जाना।
- शरीर में घावों से मवाद बहना।
- शरीर कुपोषित सा दिखने लगना।
      यलो फंगस का कारण
डॉक्टरों की मानें तो यलो फंगस के पीछे कारण गंदगी है। यह फंगल सामान्यता जमीन पर पाया जाता है। जिस रेपटाइल की इम्युनिटी वीक होती है यह उसे पकड़ लेता है और उसके लिए जानलेवा बनता है। हो सकता है कोरोना में अब इंसानों की इम्युनिटी कम हो रही है तो यह फंगस उन्हें अपनी चपेट में ले रहा हो।
     यलो फंगस से बचाव
-    घर की और आसपास की साफ-सफाई का ध्यान रखें।
-     खासकर कोरोना से ठीक हुई मरीज की हाइजीन का खास ध्यान रखें, क्योंकि उनकी इम्युनिटी बहुत कमजोर होती है।
-     खराब या बासी खाने का प्रयोग न करें।
-       घर पर नमी न होने दें क्योंकि फंगस और बैक्टीरिया नम जगहों पर ज्यादा ऐक्टिव होता है।
-       हो सके तो घर की नमी नापने के लिए यंत्र रखें।
-       घर में 30 से 40 फीसदी से ज्यादा नमी खतरनाक हो सकती है।
-       इम्युनिटी स्ट्रॉन्ग रखें।
-       हेल्दी डाइट लें, ताजा खाना खाएं।
       खूब पानी पिएं और ध्यान रखें कि पानी भी साफ होना चाहिए।
          वर्तमान में यह रोग प्रचलन में नहीं आया हैं जैसे ही लक्षण मिले तत्काल नाक कान गला विशेषज्ञ से जाँच कराये और निर्देशानुसार इलाज़ कराये
               उपरोक्त जानकारी के आधार पर यह निश्चित किया जा सकता हैं की कोरोना की चिकित्सा के बाद अधिक मात्रा में जिंक आयरन आदि लेने की अपेक्षा प्राकृतिक रूप से पाने वाले विटामिन का उपयोग करना अधिक लाभकारी होगा  बीमारी के बाद इम्युनिटी और कमजोरी पर ध्यान रखना चाहिये
                इलाज़ के दौरान हॉस्पिटल में कर्टिकॉस्टरॉइड दिया जाता हैं ,इसमें चिकित्सकों को सावधानी रखना चाहिए
             वाइट फंगस का एक कारण ऑक्सीजन की शुद्धता का होना अनिवार्य हैं
              येलो फंगस में  गन्दगी का विशेष ध्यान रखना होगा .
(लेखक- डॉ.अरविन्द प्रेमचंद जैन)

Related Posts