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मोदी सरकार की वापसी में लगाया जोर, बढ़ेगी संघ की ताकत

मोदी सरकार की वापसी में लगाया जोर, बढ़ेगी संघ की ताकत

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च में मैं भी चौकीदार अभियान शुरू किया था जो 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की मुख्य थीम बन गया। मैं भी चौकीदार अभियान में नागरिकों से राष्ट्र हित की रक्षा का आह्वान किया गया था। मोदी ने इससे पहले 2014 के चुनाव प्रचार के दौरान खुद को देश की सेवा में तैनात प्रहरी बताया था। 

चौकीदार अभियान संघ से प्रेरित
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापक केशव बलीराम हेडगेवार ब्रिटिश अनुशासन और तैयारी के बड़े प्रशंसक थे। हेडगेवार चाहते थे कि संघ के स्वयंसेवक और इसके बाद देश के सभी लोग सुरक्षाकर्मियों की तरह हर समय सतर्क और तैयार रहें। उनका मानना था राष्ट्र की सुरक्षा में तैनात लोगों को समय आने पर अपने सभी कार्यों को छोड़कर कर्तव्य पालन करना चाहिए।
आरएसएस का मानना है कि प्रत्येक भारतीय को देश की चौकसी के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। मोदी का मैं भी चौकीदार अभियान इसी मुख्य सिद्धांत पर आधारित था। हर चुनावी रैली में इसे नाटकीय तरीके से प्रस्तुत किया गया। इसके साथ ही आतंकवादी हमलों को बढ़ावा देने वाले पड़ोसी देश पर किए गए हवाई हमले का भी जिक्र किया गया और पड़ोसी देश को कड़ी चेतावनी दी गई। आरएसएस ने उम्मीद के अनुसार भाजपा की जीत को राष्ट्रीय शक्तियों की विजय बताया।

मोदी के कार्यकाल में बढ़ा संघ का काम
आरएसएस के लिए मोदी बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं। प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी के पांच वर्ष के पहले कार्यकाल में आरएसएस की पहुंच और प्रभाव काफी बढ़ा है और आने वाले समय में भी इसके लिए कोई रुकावट नहीं दिखती। मोदी सरकार के 2014 में सत्ता में आने से पहले आरएसएस की देशभर में प्रतिदिन लगभग 45,000 शाखाएं लगती थीं। यह संख्या मार्च 2019 तक बढ़कर करीब 60,000 शाखाओं पर पहुंच गई। आरएसएस के शिक्षा और संस्कृति जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले संगठन महत्वपूर्ण पदों पर अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को नियुक्त करवाने में भी सफल रहे हैं।

मोदी सरकार से कुछ नाराजगी भी
हालांकि, मोदी सरकार से आरएसएस में हर व्यक्ति खुश नहीं है। सरकार के आर्थिक एजेंडा को लेकर आरएसएस अपनी नाराजगी जाहिर कर चुका है। कुछ लोगों का मानना है कि विदेशियों और बड़े कारोबारियों के लिए रेड कारपेट बिछाने को लेकर सरकार जल्दबाजी कर रही है। कुछ इससे नाराज हैं कि सरकार ने लेबर और एग्रीकल्चर से जुड़े मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। चुनाव शुरू होने से पहले एक पुराने नेता ने टिप्पणी की थी चुनाव तक छेड़ेंगे नहीं, जीतने के बाद छोड़ेंगे नहीं। 

कई जगह संघ ने की अगुआई
चुनाव निकट आने पर आरएसएस ने भाजपा की जीत के लिए पूरा जोर लगा दिया था। केरल जैसे कुछ राज्यों में भाजपा ने आरएसएस के पीछे चलना मुनासिब समझा। राज्य में भाजपा के उम्मीदवारों के प्रचार अभियान को आरएसएस के वरिष्ठ प्रचारक सीधे नियंत्रित कर रहे थे।

मप्र की जीत में संघ का अहम योगदान
मध्य प्रदेश में वोट पर्सेंटेज बढ़ने और भाजपा के बहुत अच्छे प्रदर्शन के पीछे आरएसएस की मेहनत का योगदान बताया जा रहा है। राज्य में वोट पर्सेंटेज लगभग 10 फीसदी की वृद्धि के साथ 71 फीसदी पर पहुंच गया। ऐसा कहा जा रहा है कि आरएसएस ने गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार को पक्का करने के लिए भी काम किया था। सूत्रों ने बताया कि भाजपा का स्थानीय नेतृत्व सिंधिया के साथ सहानुभूति रखता था, लेकिन आरएसएस ने उनकी हार के लिए जोर लगा दिया था।

भाजपा के आने से बढ़ेगा संघ का दबदबा
लोकसभा में दोबारा बहुमत हासिल करने और जल्द ही राज्यसभा में भी भाजपा का दबदबा बढ़ने के साथ संघ को सरकार की नीतियों में अपनी राय को अधिक महत्व मिलने की उम्मीद है। हालांकि, मोदी और शाह अपने अधिकार क्षेत्र में बहुत अधिक दखल को शायद पसंद नहीं करेंगे। सरसंघचालक मोहन भागवत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को काफी पसंद करते हैं। उन्होंने हाल में कहा था एक राजनेता और प्रशासक के तौर पर मोदी वह करते हैं, जो राष्ट्र हित में करने की जरूरत है। उनके फैसलों के कारणों को समझना अक्सर मुश्किल हो सकता है, लेकिन देश के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है। भागवत ने कहा था कि आरएसएस निगरानी कर रहा है। 

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