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मोदी के सात साल : भारत में सत्ता की ‘सप्तपदी’....?

मोदी के सात साल : भारत में सत्ता की ‘सप्तपदी’....?

हमारे देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी अपने शासनकाल के सात साल पूरे करने जा रहे हैं, इन सात सालों का लेखा-जोखा रखने वाले तो देश-विदेश में बहुत विद्वान है, किंतु मैं आज अपनी तुच्छ बुद्धि के आधार पर इस कार्यकाल का जो विश्लेषण कर रहा हूँ, वह कई अर्थों में अन्यों से अलग ही होगा। यदि मैं इसकी शुरूआत मोदी जी के मूल प्रदेश गुजरात के उन ज्योतिष महोदय के विचारों से करूं, जिन्होंने मोदी जी की जन्मकुण्डली के आधार पर करीब ढाई दशक पहले कुछ भविष्यवाणियाँ की थी। यद्यपि उस समय मोदी जी एक साधारण भाजपा कार्यकर्ता मात्र थे, किंतु उक्त ज्योतिष महोदय ने मोदी जी को राजनीति का एक ऐसा चमकता नक्षत्र बताया था, जिसकी चमक उन्होंने करीब तीन दशक की अवधि के लिए बताई थी, यह भविष्यवाणी 1996-97 के आसपास उस समय की गई थी, जब मोदी जी भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री भी नहीं बन पाए थे। इस भविष्यवाणी का जिक्र उस समय गुजरात तथा राजनीतिक क्षेत्रों में भी किया गया था, इसके बाद ही मोदी जी पार्टी के महामंत्री बनाए गए, उन्हें मध्यप्रदेश का प्रभारी महामंत्री बनाया गया और भोपाल यात्रा के दौरान वे प्रभात झा के साथ मेरे निवास पर पधारे और कई तरह की चर्चाएँ की, उसके बाद करीब बारह वर्ष वे गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और 2014 में तीस मई को देश के प्रधानमंत्री बने, जिनके शासन के अब सात साल पूरे हो रहे हैं। 
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि जैसा कि ज्योतिष महोदय की भविष्यवाणी थी, उसी के अनुरूप मोदी जी की लोकप्रियता भी किसी चमकदार नक्षत्र से कम नहीं रही, उन्होंने अपने प्रथम प्रधानमंत्रित्व काल के पांच वर्ष देश को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने और विश्वस्तर पर भारत की साख कायम करने में व्यतीत किए और इन्हीं प्रयासों के फलस्वरूप न सिर्फ रूस, अमेरिका जैसी महाशक्तियाँ बल्कि ब्रिटेन, जापान, जर्मनी जैसे देशों के शासक भी मोदी जी के मुरीद हो गए, अपने प्रथम पंचवर्षिय कार्यकाल के दौरान ही दूसरे कार्यकाल की योजना परियोजनाओं का नक्शा तैयार किया गया, जिसे विभिन्न चरणों में पूरा किया जाना था, किंतु अंग्रेजी में एक कहावत है न- डंद च्तवचवेमेए ळवक क्पेचवेमे (अर्थात् आदमी सोचता कुछ है और भगवान करता कुछ है) वहीं स्थिति भी यहाँ भी हुई, मोदी जी के द्वारा दूसरी बार सत्ता की कमान संभालने के कुछ ही महीनों बाद कोरोना महामारी आ गई और इसने सब किए-कराए पर पानी फैर दिया। अर्थात् देश के विकास पर खर्च होने वाला पैसा वैक्सीन व इस महामारी से देश को बचाने पर खर्च करना पड़ा और कल्याण व जनहितैषि योजनाएँ सब धरी रह गई। इसी बीच इस कोरोनाकाल का दुष्प्रभाव कुछ ऐसा रहा कि प्रधानमंत्री जी से अपनी प्राथमिकताएँ चुनने में गलती हो गई और उन्होंने ‘लाॅकडाउन काल’ में देश को रोगमुक्त करने के बजाए अपनी पार्टी की सत्ता के विस्तार को प्राथमिकता दी, जिसके कारण न सिर्फ देश को भुगतना पड़ रहा है बल्कि कल तक जो देश भारत की ओर मित्रता का हाथ बढ़ा रहे थे, उन्होंने हाथ खींचकर भारत के खिलाफ प्रचार शुरू कर दिया, जिसका ताजा उदाहरण अमेरिका का प्रसिद्ध अखबार ‘न्यूयार्क टाईम्स’ है, जिसने भारत में कोरोना से मृतकों की संख्या चालीस लाख बताकर भारत की तीखी आलोचना की, भारत में भी सत्ता की प्राथमिकता बदलने से यहां के लोगों को वो सब कुछ नहीं मिल पाया जिसकी कि मोदी सरकार से उन्हें अपेक्षा थी, जिसके कारण मोदी जी की लोकप्रियता का पारा जो 68 पर था, वह घटकर 42 पर आ गया, अर्थात् लोकप्रियता 26 फीसदी नीचे आ गई। ....और इस कारण अब तो उन गुजराती भविष्यवक्ता महोदय की वह भविष्यवाणी भी सच होती नजर आ रही है कि- ‘‘मोदी जी अपनी उम्र के सातवें दशक में सन्यास गृहण कर हिमालय हेतु प्रस्थित हो जाएगें...।’’ 
अब जो भी हो.... अभी मोदी जी के शासनकाल के तीन वर्ष और शेष बचे है और पूरे देश की प्रभु से यही वंदना है कि ये तीन साल सकुशलता से पार हो जाए....। क्योंकि अभी तो देश की जनता बहादूरशाह जफर साहब की प्रसिद्ध गजल के मुखड़े में सुधार कर गा रही है...। 
‘‘सियासत राज से मांग कर लाए थे सात साल
पाँच आरजू मंे गुजर गए, दो इंतजार में।’’
(लेखक - ओमप्रकाश मेहता)

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