यह सदियों में होने वाला अत्यंत दुष्कर समय है । जहाँ हम पड़ोस की किसी एक अकाल मृत्यु से विचलित हो जाते थे उसी देश मे अब तक सवा तीन लाख मृत्यु कोरोना से हो चुकीं हैं , यदि अब दुनिया को ग्लोबल विलेज मानते हैं तो आंकड़े गम्भीर हैं । और यह तो केवल मृत्यु के आंकड़े हैं । कितने ही लोग बुरी तरह से स्वास्थ्य , आर्थिक , रोजगार या अन्य तरह से महामारी से प्रभावित हैं । और इस सबका अंत तक सुनिश्चित नहीं है ।
ऐसी भयावहता में केवल सकारात्मक होना ही हमें बचा सकता है । रात के बाद सुबह जरूर होगी पर तब तक धैर्य और जीवन बचाये रखना होगा । यह तभी सम्भव है जब समाज समवेत प्रयास करे । व्यक्ति अपनी रचनात्मक वृत्तियों को एकाकार करे । जिस तरह पायल से आती मधुर झंकार में हर घुंघरू की आवाज शामिल होती है , किन्तु किस घुंघरू की आवाज का समवेत मधुर ध्वनि में क्या योगदान है कहा नही जा सकता , वैसे सकारात्मक माहौल से ही व्यक्ति व समाज इस नकारात्मकता पर विजय पा सकेगा ।
किन्तु दुखद है कि आज राजनेता आरोप प्रत्यारोप में उलझे हैं , मुनाफाखोरी कालाबाजारी चरम पर है । चिकित्सा शास्त्रों की लड़ाई हो रही हैं । राष्ट्र वर्चस्व और विस्तार की लड़ाई लड़ रहे हैं ।
ऐसे कठिन समय में साहित्य का दायित्व है कि समवेत सकरात्मकता के एकात्म का विचार विश्व में अधिरोपित करे ।
जिससे यह सुंदर विश्व पुनः सामान्य हो सके ।
(लेखक-विवेक रंजन श्रीवास्तव / ईएमएस)
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पायल से आती मधुर झंकार में हर घुंघरू की ध्वनि होती है , ऐसी सकारात्मकता ही विजय दिला सकती है महामारी पर