भारत में भारतीय जनता पार्टी का सबसे बड़ा ’गढ़‘ उत्तरप्रदेश वर्चस्व के संघर्ष का सबसे बड़ा अखाड़ा बना हुआ है, कभी मोदी के सबसे चहेते रहे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ संघर्ष के केन्द्र बने हुए है, इस संघर्ष का मूल कारण गुजरात के एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी श्री अरविंद शर्मा है, जो मोदी जी व अमित शाह दोनों के ’नाक के बाल‘ है, उन्हें पिछले दिनों मोदी-शाह ने उत्तरप्रदेश विधान परिषद का सदस्य बनवा दिया और अब योगी आदित्यनाथ पर उन्हें उप-मुख्यमंत्री बनाने का दबाव बनाया जा रहा है, जिसे योगी जी ने अस्वीकार कर दिया है। योगी श्री शर्मा को राज्य या केबीनेट मंत्री बनाने को तैयार है, किंतु मोदी-शाह उन्हें उप-मुख्यमंत्री पद पर किसी भी स्थिति में देखना चाहते है, बस यही मोदी-शाह-योगी के बीच अर्न्तकलह का कारण है।
अब यहां सवाल यह उठता है कि मोदी-शाह गुजरात मूल के पूर्व नौकरशाह को उत्तरप्रदेश जैसे अहम राज्य का उप-मुख्यमंत्री क्यों बनवाना चाहते है, इसके पीछे मूल कारण उत्तरप्रदेश की नौकरशाही में जातिवाद का विस्तार है। उत्तरप्रदेश एक ऐसा राज्य है, जहां सरकार व प्रशासन पर नौकरशाही हावी रही है, आज स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री योगी राजपूतों की नौकरशाही को प्रश्रय व महत्व दे रहे है, इस कारण से ब्राम्ह्मण तथा अत्य वर्ग के नौकरशाह काफी नाराज है और चूंकि ब्राम्बहण व अन्य वर्गों के नौकरशाहों का वहां के वोटरों पर काफी दबदबा है इसलिए मोदी-शाह चाहते है कि अरविंद शर्मा (ब्राम्हण) को प्रमुख पद पर आसीन कर गैर-राजपूत वर्ग के नौकरशाहों को आश्वस्त कर दिया जाए कि केन्द्र उनके साथ है और योगी ऐसा कतई होने नहीं दे रहे है और इसी मुद्दें पर मोदी-शाह की योगी से ठन गई है।
जहाँ तक इस पूरे मुद्दे पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सवाल है, संघ के प्रमुख मोहनराव भागवत तो इस मामले में फिलहाल मौन है, किंतु सरकार्यवाह दत्तात्रय होसबोले पूरी तरह मोदी-शाह के साथ है और वे अरविंद शर्मा को उप-मुख्यमंत्री बनाने के पक्ष में है, किंतु संघ के सामने मुख्य संकट यह आ गया है कि संघ की उत्तरप्रदेश स्थित दोनों इकाईयां (उत्तर व उत्तर पश्चिम) योगी समर्थक है और वे इस मामले में भी योगी का समर्थन कर रही है ऐसे में मोहन भागवत जी भी दुविधा में है, इधर होसबोले के साथ संघ के कुछ अन्य पदाधिकारी भी शामिल हो गए है, इस तरह संघ में भी इस मामले पर अर्न्त संघर्ष की स्थिति धीरे-धीरे पैदा हो रही है, इसी कारण से संघ प्रमुख इन दिनों काफी परेशान है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि देश पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी उत्तरप्रदेश का अपना सबसे मजबूत व प्रमुख कार्यक्षेत्र मानती है, पिछले विधानसभा चुनाव (2017) के पूर्व तक योगी आदित्यनाथ की पहचान सिर्फ एक सन्यासी सांसद के रूप में रही, उन्होंने खुद ने भी कभी कल्पना नहीं की थी कि वे कभी मुख्यमंत्री बन पाएगें, वह विधानसभा चुनाव भी बिना किसी मुख्यमंत्री के चेहरे के लड़ा गया था और तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष और मौजूदा गृहमंत्री अमितशाह की कड़ी मेहनत के बाद वहां बसपा व सपा को धूल चटवा कर भारी बहुमत से सत्ता प्राप्त की गई थी। विधानसभा ही नहीं लोकसभा चुनाव (2019) में भी अमित शाह ही की बदौलत भाजपा ने भारी जीत हासिल की थी। किंतु योगी ने अपनी कार्यशैली और अपनी नौकरशाही लॉबी के बलबूते पर अपनी धाक कायम की थी, किंतु पिछले दिनों गंगा नदी में जो लाशें बहकर आने की घटना हुई और उस घअना की खबरों ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त की, जिसके कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मोदी जी की साख प्रभावित हुई और उन्हें असहज महसूस हुआ, बस उसी के बाद मोदी व शाह की योगी से पटरी अलग हो गई और इसके बाद जब गुजराती वरिष्ठ नौकरशाह को उत्तरप्रदेश भेजकर उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाने का दबाव बढ़ाया गया, उससे योगी को महसूस हुआ कि वे अगले विधानसभा चुनाव के बाद पुन: मुख्यमंत्री नहीं बन पाएगें और उनकी जगह अरविंद शर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा, बस, योगी की यही आशंका इस अर्न्तकलह की मुख्य वजह है। इसलिए अब योगी अपनी कार्यशैली में भी बहुत बड़ा बदलाव लाकर उत्तरप्रदेश को हर कोण से अपन कब्जे में रखना चाहते है तथा उन्होंने अब अपनी खुद की ’लॉबी‘ बनाना भी शुरू कर दिया है, इसी कारण अब उन्होंने मोदी जी की माला जपना भी बंद कर दिया है।
अब उत्तरप्रदेश के दस माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में टिकिट वितरण से लेकर सरकार बनाने तक किसका वर्चस्व रहता है, यह तो भविष्य के गर्भ में है, किंतु मोदी-शाह व योगी के बीच वर्चस्व की लड़ाई तेज हो गई है और संघ हताश होकर मौन धारण कर बैठ गया है, अगले वर्ष उत्तरप्रदेश के साथ दो अन्य राज्यों में भी विधानसभा चुनाव होना है और वे चुनाव भी इस कलह से प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे।
(लेखक-ओमप्रकाश मेहता )
आर्टिकल
(सवाल वर्चस्व का....!) योगी को लेकर भाजपा-संघ में अर्न्तकलह.....?