नई दिल्ली । मॉकड्रिल मामले में श्रीपारस हॉस्पिटल को प्रशासन ने क्लीनचिट दे दी है। देर रात जारी की गई मजिस्ट्रेटी जांच और डेथ ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया कि 26 अप्रैल की सुब 96 मरीजों पर मॉकड्रिल नहीं की गई। हालांकि 26-27 अप्रैल को सात की जगह 16 मौतों को स्वीकार किया है। नौ दिन बाद जारी की गई जांच रिपोर्ट में सबसे पहले अस्पताल संचालक अरिंजय जैन के बयान का उल्लेख है। जिसमें बताया गया कि हॉस्पिटल में पांच मिनट की मॉकड्रिल करने और 22 मरीजों की छंटनी का गलत अर्थ निकाला जा रहा है। आरोप निराधार हैं। ऑक्सीजन बंद कर मॉकड्रिल नहीं की गई और न ही इसका प्रमाण है। यदि ऐसा होता तो 26 अप्रैल को सुबह 22 मृत्यु होनी चाहिए थी, जो कि नहीं हुईं। संचालक ने कहा कि अस्पताल में ऑक्सीजन थी लेकिन भविष्य में आपूर्ति का संकट था। ऑक्सीजन का असिस्मेंट ही मॉकड्रिल है। हाइपोक्सिया के लक्षण एवं ऑक्सीजन सेचुरेशन लेवल को मॉनीटर करते हुए मरीजों की ऑक्सीजन आपूर्ति को विनिंग प्रोसेस का पालन किया, जिससे ये प्रतीत हुआ कि भर्ती मरीजों में 22 अतिगंभीर हैं। रिपोर्ट में है कि प्रबंधन द्वारा मरीजों को ऑक्सीजन की कमी का हवाला देते हुए डिस्चार्ज करने की बात सामने आई है। इसलिए अस्पताल प्रबंधन द्वारा भ्रम पैदा करना माना गया। उनके खिलाफ महामारी अधिनियम 1897 के तहत 180/21 अंतर्गत धारा 25/5 महामारी अधिनियम आईपीसी की धारा 118/505 में मुकदमा पंजीकृत किया गया। जिसकी पुलिस विवेचना कर रही है। वहीं सीएमओ ने श्रीपारस हॉस्पिटल के लाइसेंस को निलंबित कर सील कर दिया है। इस संबंध में अस्पताल प्रबंधन का जो भी जवाब आएगा। उसके अनुसार सीएमओ द्वारा कार्रवाई की जाएगी। डीएम ने बताया कि इस आधार पर एसएनएमसी एनेस्थीसिया के विभागाध्यक्ष डॉ. त्रिलोक चंद पीपल, मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. बलवीर सिंह, सह आचार्य फार्नेसिक डॉ, रिचा गुप्ता और डिप्टी सीएमओ डॉ. पीके शर्मा को शामिल कर डेथ ऑडिट टीम बनाई गई।
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ऑक्सीजन मॉक ड्रिल से नहीं हुई थीं 16 मौतें