भारत में ग्राहक की संख्या के लिहाज से देश की सबसे बड़ी टेलिकॉम कंपनी वोडाफोन आइडिया को मर्जर के बाद एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।यह चुनौती ग्राहकों का मनोबल बरकरार रखने से जुड़ी है। वोडाफोन और आइडिया के मर्जर से बनी वोडाफोन आइडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया,मनोबल काफी कमजोर है। हम लोगों को जानकारी मिली हैं कि प्रत्येक व्यक्ति की नौकरी खतरे में है, जिससे परफॉर्मेंस पर असर पड़ रहा है।
एक अग्रेंजी अखबार ने वोडाफोन आइडिया के 14 कर्मचारियों और जॉब जानकारों से कंपनी के माहौल के बारे में बात की। इन सभी ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर जानकारी दी। अगस्त 2018 में मर्जर से पहले वोडाफोन आइडिया ने 4,000-5,000 कर्मचारी की छंटनी की थी। कंपनी के मौजूदा कर्मचारी की संख्या लगभग 12,500 है। मर्जर से पहले दोनों कंपनियों के कर्मचारियों की संयुक्त संख्या 17,000 से अधिक थी। मर्जर के बाद अपनी जॉब बरकरार रखने में सफल रहे एक मिड-लेवल कर्मचारी ने कहा,प्रत्येक दिन हम ऑफिस और पिंक स्लिप के बारे में सुनने के लिए आते हैं। वहीं इस बारे में वोडाफोन आइडिया के सीईओ बालेश शर्मा ने कंपनी के मौजूदा कर्मचारी की संख्या और छंटनी के बारे में कुछ नहीं बताया। हालांकि, उनका कहना था कि दोनों कंपनियों का इंटीग्रेशन ठीक चल रहा है। शर्मा ने कहा कि कंपनी ने मर्जर की घोषणा के साथ ही नियुक्त रोक दी थी। इस महीने से नियुक्त दोबारा शुरू की गई है, लेकिन यह केवल अंदरुनी कर्मचारियों के लिए है। उन्होंने बताया, पहले दिन से हम इस लेकर स्पष्ट थे कि इस मर्जर और इंटीग्रेशन की सफलता कर्मचारी पर निर्भर करेगी। हमें यह पता था कि दोनों कंपनियों की संस्कृति में अंतर हो सकते हैं।'
हालांकि, वोडाफोन आइडिया के कर्मचारी और कंसल्टेंट्स से यह संकेत मिला कि कर्मचारी के लिए इंटीग्रेशन का प्रोसेस तनावपूर्ण है। हैदराबाद में प्राफेसर कविल रामचंद्रन ने कहा कि दोनों कंपनियों समान मार्केट में बिजनस के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही थी और उनकी संस्कृतियां भी अलग थी। उनका कहना था, कर्मचारी अपनी पैरेंट कंपनी या जिस टीम के साथ उन्होंने कार्य किया है उसके करीब महसूस करेगा। कंपनी के एक सीनियर अधिकारी का कहना था,कर्मचारियों की वफादारी अपनी पैरेंट कंपनियों के साथ बरकरार है। हालांकि, शर्मा ने कहा कि कर्मचारी एक साथ अच्छा कार्य कर रहे हैं। दोनों कंपनियों के सैलरी लेवल में भी अंतर था। इन कंपनियों के खर्च करने के तरीके भी अलग थे। वोडाफोन मल्टीनैशनल कंपनी होने के कारण अधिक खर्च करती थी, जबकि आइडिया खर्च पर नियंत्रण रखने पर ध्यान देती थी।
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वोडाफोन आइडिया के कर्मचारी के सामने जाब सुरक्षा की चिंता