नई दिल्ली । कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान देश के कई हिस्सों में संक्रमण फैलने पर बीमार लोगों की देखभाल करने वालों पर दबाव बढ़ गया चाहे वे पति/पत्नी हो, बच्चे हो या माता-पिता और वे अब भी इस बीमारी के तनाव से जूझ रहे हैं। बढ़ते तापमान और सिर दर्द तथा बदन दर्द के बावजूद देखभाल करने वाले लोगों को हफ्तों तक अपने मरीजों के लिए खाना पकाना पड़ा और घर की साफ-सफाई करनी पड़ी और सबसे बड़ी बात उन्हें सबकुछ इतनी सावधानी से करना पड़ा कि वे खुद संक्रमित न हो जाए।
अपने पिता मधुरकर के कोरोना वायरस से संक्रमित पाए जाने के बाद 34 वर्षीय भूषण शिंदे ने कहा, ‘कोविड-19 से संक्रमित मरीज की देखभाल करने के तौर पर सबसे बड़ी चुनौती उथल-पुथल की स्थिति में भी दिमाग शांत रखना है।’ बीमारी के संक्रामक होने के कारण आइसोलेशन और किसी दोस्त या परिवार के सदस्य के मदद न कर पाने के कारण मानसिक दबाव बढ़ता है। मुंबई में रहने वाले भूषण ने कहा कि उन्हें और उनके पिता दोनों को ही बुखार, खांसी और बदन दर्द के हल्के लक्षण दिखने शुरू हुए थे लेकिन जल्द ही उनके 65 वर्षीय पिता की हालत बिगड़ने लगी। बाद में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। उनके लिए सबसे तनावपूर्ण वह दौर रहा जब उन्हें रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए भागदौड़ करनी पड़ी और वह भी न केवल अपने पिता के इलाज के लिए बल्कि अपने 83 वर्षीय अंकल और एक रिश्तेदार के लिए भी जो उसी वक्त बीमार पड़े थे। उन्होंने कहा, ‘रेमडेसिविर की व्यवस्था करने की भागदौड़ में मुझे अपनी शारीरिक और मानसिक स्थिति को दरकिनार रखना पड़ा और इसका असर मेरे शरीर पर पड़ा।’ इस बात को दो महीने बीत चुके हैं लेकिन संघर्ष अब भी जारी है। भूषण और मधुरकर कोविड-19 के बाद के लक्षणों से जूझ रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘एक दिन आपको अच्छा महसूस होता है और फिर अगले दो-तीन दिन आप बीमार और कमजोर महसूस करते हो। कई बार मुझे लगता है कि यह बीमारी मेरे धैर्य की परीक्षा ले रही है।’ कोविड-19 विशेषज्ञ सुचिन बजाज सलाह देते हैं कि जब हालात ठीक हो जाए तो देखभाल करने वाले लोगों को आराम करना चाहिए। दिल्ली में उजाला सिग्नस ग्रुप हॉस्पिटल्स के संस्थापक बजाज ने कहा, ‘कोविड मरीज की देखभाल करने और खुद संक्रमित होने का खतरा यह होता है कि आप शायद अपनी बीमारी को बढ़ा रहे हैं। इसके दुष्परिणाम कहीं ज्यादा हो सकते हैं। इस खतरे को कम करने के लिए ज्यादा से ज्यादा आराम करना महत्वपूर्ण है।’ दवा कंपनी मर्क द्वारा सितंबर-अक्टूबर 2020 में किए एक अध्ययन के अनुसार, करीब 39 प्रतिशत भारतीय युवा आबादी ने पहली बार महामारी के दौरान बीमार लोगों की देखभाल की। मनोचिकित्सक ज्योति कपूर ने कहा कि बीमारी से जूझने का संघर्ष कहीं ज्यादा वक्त तक रह सकता है। उन्होंने कहा, ‘इसका देखभाल करने वाले लोगों पर कहीं ज्यादा मनोवैज्ञानिक असर पड़ा है।
कोविड मरीजों में तनाव बढ़ने, पैनिक अटैक और मनोविकृति के मामले बढ़ गए हैं।’मरीजों की देखभाल करने वाले कई सारे लोगों ने अपने हरसंभव प्रयासों के बावजूद इस महामारी के कारण अपने प्रियजनों को खो दिया है और डॉक्टरों ने उन्हें इसके लिए खुद को जिम्मेदार ठहराने के खिलाफ आगाह किया है। बजाज ने कहा, ‘जरूरत से ज्यादा काम का बोझ मत डालो और याद रखिए कि आप कोई सुपरमैन या सुपरवुमैन नहीं हैं तथा सबसे ज्यादा यह याद रखिए कि इसके लिए खुद को जिम्मेदार न ठहराए।’ बता दें कि मरीजों की देखभाल करना कभी आसान नहीं होता और बात जब ऐसी महामारी की हो जहां देखभाल करने वाले खुद ही अस्वस्थ हो या उनके संक्रमण की चपेट में आने का खतरा हो तो न केवल शारीरिक तनाव बल्कि भावनात्मक और मानसिक तनाव भी बढ़ जाता है।
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तनाव में जी रहे कोरोना मरीजों की देखभाल करने वाले लोग -मदद न कर पाने के कारण भी बढता है मानसिक दबाव