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संघ का मुस्लिम प्रेम   हिन्दू-मुसलमान: डीएनए: भागवत ज्ञान 

संघ का मुस्लिम प्रेम   हिन्दू-मुसलमान: डीएनए: भागवत ज्ञान 

पिछले सात सालों से नरेन्द्र भाई मोदी के सामने ’नतमस्तक‘ संघ क्या पुन: ’उपदेशक‘ संरक्षक की भूमिका में आ गया है? समाज सेवा को अपना ध्येय मानने वाला संघ औरउसके नेता अब ”राजनीतिक नेता“ की सोच रखने लगे है और अपनी कट्टर हिन्दूत्व की छवि को छिपाकर वोट की राजनीति करने लगे है और उसी के अनुरूप सम्बोधन भी करने लगे है और इसका शुभारंभ भी संघ प्रमुख भागवत जी ने ही किया है, उनके ताजे चर्चित बयान से तो यही परिलक्षित होता है? डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा कि सभी भारतवासियों का डीएनए एक ही है, इसलिए देश  में कोई भी किसी के लिए भी अछूत नहीं है और जो लोग ’लिंचिंग‘ की आड़ में कुछ लोगों को भारत छोडकर पाकिस्तान जाने की सलाह देते है, वे गलत है, उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिये। भारत में हरने वाला हर मजहब का शख्स भारतीय है।  
अब देश में यह अहम सवाल उठाया जा रहा है कि आखिर अचानक संघ प्रमुख की सोच में यह परिवर्तन कैसे आ गया? क्या उन्हें कोई खास ज्ञान प्राप्त हुआ है या समझ और स्थिति के अनुरूप वे अपने आपको गैर साम्प्रदायिक दिखाने की कोशिश कर रहे है? भारतीय जनता पार्टी के सूत्रों का कहना है कि पिछले दिन भाजपा-संघ सहित सभी हिन्दूवादी संगठनों की संयुक्त बैठक हुई थी, जिसमें विचार का प्रमुख विषय देश में सत्तारूढ़ भाजपा तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घटती लोकप्रियता था, इस मुद्दे पर गंभीर चिंतन के बाद यह तय किया गया कि चूंकि देश में हिन्दूओं के बाद वोटरों का सर्वाधित प्रतिशत मुसलमानों का है, इसलिए संघ, विहिप, बजरंग दल जैसे कट्र हिन्दू संगठन अपनी नीति में अस्थाई रूप से बदलाव लाए और मुस्लिम वोटरों को भाजपा के पाले में लाने का प्रयास करें, क्योंकि यदि हिन्दूओं और मुसलमानां का पूरा सहयोग भाजपा को मिल जाता है तो फिर विश्व की कोई भी ताकत तीन साल बाद होने वाले लोकसभा के चुनाव में भाजपा को सरकार बनाने से हनीं रोक सकती और उस बैठक में लिये गये फैसले की शुरूआत संघ प्रमुख भागवत जी ने की है, बताया जाता है कि जब कट्टर हिन्दूवादी संगठनों विहिप, बजरंग दल आदि ने बैठक में लिए गए फैसले के प्रति असहमति व्यक्त की तो उन्हें अपने मूंह बंद रखने की सख्त हिदायत दे दी गई और इन संगठनों ने मौन धारण कर लिया।  
किंतु कट्टर हिन्दूवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख के इस चमत्कारी बयान से देश के सियासी व मजहबी हलकों में खलबली तो मचना ही थी, वह मची और उसी का परिणाम था कि पूर्व प्रधानमंत्री पी.व्ही. नरसिंह के प्रमुख सलाहकार रहे डॉ. ख्वाजा इतीखार के विचार सामने आ गए, जिन्होंने संघ व मुस्लिमों के बीच संवाद व सहमति की तुरंत वकालत कर दी तथा देश के मुसलमानों से अपील भी कर दी कि देश को विश्व में अग्रिम राष्ट्र बनाने में संघ की मौजूदा विचारधारा को समझकर अपना योगदान दें।  
वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह जी ने भागवत जी को सलाह दे दी कि वे अपने आगे पीछे घूमने वालों को मुस्लिम विरोधी बयान देने से रोके और जो लोग अब तक मुस्लिम प्रताड़ना के दोषी ठहराये गए है, उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करके दिखाए, दिग्विजय ने भागवत पर कथनी और करनी में अंतर का आरोप भी लगाया और कहा कि इस सदी के शुरू में गुजरात में हुए दंगों के घोषित-अघोषित अपराधियों को, चाहे वे किसी भी बड़े पद पर विराजित हो, सबसे पहले दण्डित किया जाए।  
इस प्रकार भागवत जी के ताजा बयानों को लेकर देश की राजनीति में उबाल सा आ गया है, देश के प्रमुख मुस्लिम नेता औबेसी ने भी इस बयान को लेकर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है तथा गोड़से की प्रवृत्ति को इंगित करते हुए संघ को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है।  
अभी तो शुरूआत है, आगे-आगे देखिये, यह बात कितनी दूर तक जाती है और इसका क्या हश्र होता है? 
(लेखक -ओमप्रकाश मेहता)

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