जिन माता-पिता ने हमे जन्म दिया, पालन-पोषण किया, अच्छी शिक्षा दिलाकर उन्नत जीवन दिलाया
अच्छे संस्कार दिये, मगर हम सब कुछ भूलकर बुढ़ापे में उन माता-पिता को बेसहारा छोड़ देते हैं।इसी का परिणाम है विदेशों की परंपरा का अनुशरण का भारत में भी तीव्र गति से वृद्ध आश्रमों का निर्माण हो रहा है। वर्तमान पीढ़ी अपने माता द्वारा दिये संस्कारों को भूलती जा रही है। माँ अपने पेट में नौ माह रखकर अनेक कष्टों व परेशानियों को झेलते हुए बेटे को जन्म देती है, बरसात में मकान में टपकते पानी में गीले में न रखकर बेटे को रात भर गोद में सुलाती है, पिता स्वयं परेशानी उठा लेता है अभाव के बावजूद उधार लेकर बेटे का पालन-पोषण करता है तथा उसकी अच्छी शिक्षा हेतु संसाधन जुटाता है। जिस दिन बेटे को नौकरी मिलती है अथवा कारोबार का शुभारंभ होता है उस दिन माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहता है। बेटे की नौकरी लगने या विवाह होने पर माता-पिता की उपेक्षा एवं तिरस्कार का दौर प्रारंभ हो जाता है। अपने माता-पिता जिन्होंने जीवन का हर उतार चढ़ाव देखा है, हर तरह का अनुभव एवं पर्याप्त ज्ञान है, मगर बेटा बहू को उनकी हर गतिविधि असहनीय हो जाती है। पूज्य व आदरणीय परिवार के मुखिया को ताने के साथ कह दिया जाता है कि आपकी सलाह व मदद की हमें आवश्यकता नहीं है। अब जमाना बदल गया है आधुनिक जमाना है, हमें अपने हिसाब से जीवन यापन करने दीजिए, बात-बात में हस्तक्षेप करके हमारे कार्यों में बाधा न डालें तो हम पर आपकी कृपा होगी।
श्रवण कुमार द्वारा अपने अंधे माता-पिता को कावड़ में बैठाकर संपूर्ण भारत के तीर्थों के दर्शन कराये। भगवान श्री राम ने अपने पिता राजा दशरथ के आदेश को शिरोधार्य कर राजपाट छोड़ चौदह वर्ष वनवास का कष्ट मय जीवन व्यतीत किया। उक्त उदाहरण अब युवा पीढ़ी द्वारा बकवास कहे जाने लगे हैं। यहाँ मैं आपको दो उदाहरण दे रहा हूँ एक ही नगर में एक शिक्षक एवं एक पोस्टमास्टर स्थानांतरित होकर आये। दोनों ने एक बड़े मकान में आवास किराये पर लिये। दोनों के बीच परिचय हुआ, पोस्टमास्टर ने अपने परिवार का परिचय देते हुए बताया हम माता-पिता के साथ रहते हैं, पत्नी और दो बच्चे हैं। शिक्षक ने अपने परिवार का परिचय देते हुए कहा मेरे परिवार में पत्नी और तीन बच्चे हैं, वृद्ध और बीमार माँ भी हमारे साथ रहती है। इन दोनों परिवारों में हमने भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों को देखने का प्रयास किया, पोस्टमास्टर ने अपने माता-पिता का सम्मान करते हुए कहा कि हम उनके साथ रहते हैं, जबकि शिक्षक के कथन से लगता है कि माँ उनके परिवार पर भार है।
पहले संयुक्त परिवार होते थे परिवार का मुखिया परिवार का सबसे बुजुर्ग सदस्य होता था। मुखिया का पूरा अनुशासन परिवार पर रहता था। बुजुर्गों के साये में परिवार की प्रतिष्ठा और साख रहती थी। अब सब कुछ बदल गया है। अब हम जब अपने बेटे का विवाह करने बात चलाते हैं तो लड़की के पिता की पहली शर्त होती है मेरी बेटी संयुक्त परिवार में नहीं रहेगी। संयुक्त परिवार की परंपरा समाप्त कराने में पाश्चात्य संस्कृति का पूरा योगदान है। एकल परिवार की जब से परंपरा प्रारंभ हुई है तभी से वृद्ध एवं बीमार माता-पिता अभावों के बीच दुखी जीवन जीने मजबूर हो गये हैं। परिवार में आलीशान बंगला बनाया जाता है। उसमें एक कमरा कुत्ते के लिये बनाया जाता है। उसी कमरे के समीप माता-पिता के रहने कमरा बनाया जाता है। माँ, बाप के दुख-दर्द के रखबाले बेटे बहू न होकर घर का चौकीदार कुत्ता होता है। अनेक सम्पन्न परिवारों में माता-पिता की सेवा करने नौकर लगा दिये हैं। माता-पिता की सेवा करने नौकर लगाने की परंपरा की कटु आलोचना करते हुए सुप्रसिद्ध श्वेताम्वर जैन मुनि चन्द्रप्रभ जी महाराज साहब ने विगत दिनों मंगल प्रवचन करते हुए कहा कि आप इतने व्यस्त हो कि माता-पिता की सेवा करने नौकर लगा रहे हो तो फिर अपनी पत्नी से प्रेम करने के लिये भी नौकर लगा दो।
संयुक्त राष्ट्र संघ की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि भारत में बुजुर्ग वहुत उपेक्षित हैं वृद्धजन अपना दुख दर्द सार्वजनिक नहीं करते, मुंह खोलने पर परेशानी बढ़ने की आशंका के चलते वे चुप रहना ज्यादा पसंद करते हैं। माता-पिता के संरक्षण के लिये कानून भी बने है। एक कानून माता-पिता व वरिष्ठ नागरिक कल्याण अधिनियम 2007 है इसमें बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल के प्रावधान हैं। इसके बाद भारतीय समाज का कड़वा सच यही है कि जो संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में उजागर किया है। कुछ परिवार भले ही अपने बुजुर्गों का सम्मान करते हों लेकिन सभी परिवारों में वृद्धों का सम्मान नहीं हो रहा है।
वृद्ध बीमार माता-पिता का परिवार का अनादर होने, उपेक्षा होने तथा दुर्दशा होने की स्थिति में वृद्ध आश्रम बन गये हैं। जहाँ उन्हें सभी सुविधाएं उपलब्ध करायी जा रही हैं। विगत वर्षों रायपुर नगर में वृद्धों के लिये एक और प्रयास किया गया है वहाँ पेरेंट्स क्रेच, वृद्ध झूलाघर प्रारंभ किया गया है। जहाँ पर उन्हें सुबह से शाम तक रखा जाता है। नास्ता भोजन के साथ मनोरंजन के साथ विभिन्न उपयोगी कार्य प्रारंभ किये गये हैं।
परम पूज्य दिगम्बर जैनाचार्य संत शिरोमणी विद्या सागर जी महाराज की परम प्रभावक शिष्या आर्यिका रत्न पूर्ण मती माता जी ने माता पिता की उपेक्षा को दूर कर उनका सम्मान नई पीढ़ी करे इस भावना को लेकर एक अभियान चलाया है। इसका नाम दिया है जनक जननी सम्मान समारोह। आर्यिका संघ जहाँ जाता है वहाँ यह सम्मान समारोह समाज द्वारा गरिमामय तरीक़े से आयोजित किया जाता है। मेरी ससुराल शाढ़ौरा जिला अशोक नगर मई 2017 में जनक जननी सम्मान समारोह आयोजित किया गया था। साथी अनिल बाँझल ने बताया आर्यिका संघ के पावन सानिध्य में आयोजित कार्यक्रम की स्मृतियां आज भी प्रेरणादायक हैं।
ऐसा कहा गया है कि वह सौभाग्यशाली होता है जिसके सिर पर माता-पिता का साया होता है। जिनके माता-पिता नहीं है उन्हें उनकी याद जीवनभर आती है, यही भारतीय संस्कृति और संस्कार है। क्रांतिकारी राष्ट्र संत पूज्य आचार्य पुलक सागर महाराज ने विगत वर्षों सरधना मेरठ में हजारों स्कूली विद्यार्थियों के बीच प्रवचन करते हुए कहा कि माता-पिता भोजन के भूखे नहीं होते है, वे तो मात्र प्रेम के भूखे होते हैं। आपने विद्यार्थियों को संकल्प दिलाया कि जीवन में कभी भी अपने माता-पिता की आँखों में आंसू नहीं आने देंगे।
पाश्चात्य संस्कृति का ही प्रभाव है कि हम अपने जन्मदाता माता-पिता का उनके जीवन के अंतिम समय में ध्यान न रखकर उनका तिरस्कार कर रहे हैं। इस समस्या को लेकर विशेष अभियान चलाने की आवश्यकता है। यह भी कटु सत्य है अगर हमारे जन्मदाता दुखी रहेंगे तो हम भी सुखी नहीं रह सकते हैं।
नोट:- लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय वरिष्ठ उपाध्यक्ष है।
(लेखक- विजय कुमार जैन )
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वृद्ध माता-पिता परिवार में बोझ बन गये।